Sunday, March 12, 2023

रंग चैत्र महीने के

 रंग चैत्र के ...


  चैत्र का महीना बदलाव का महीना है , नए रंग में कुदरत जैसे खुद से मिला कर सम्मोहित करती है। 

  अमृता ने इसी महीने से जुड़ा बहुत कुछ लिखा जो अद्भुत है। मुझे भी यह महीना बहुत ही आकर्षित करता है ।


चैत्र...

अमृता प्रीतम की रचनाओं में चैत्र बहुत खूबसूरती से रचा बसा है। इस चैत्र का महत्व उनकी कविता में क्यों और कैसे है। इस संबंध में अमृता ने लिखा है__

"साहिर को मिलने से पहले मेरे जीवन में सिर्फ रिक्तता थी।रिक्तता को किसी तिथि या ऋतु से नहीं जोड़ा जा सकता,पर साहिर से जब मुलाकात हुई वह चैत्र का महीना था। पहली बार भी और आगे एक चमत्कार की तरह ,कई बार ।"


  जब वह पहली बार मिला मेरी उम्र बीस या इक्कीस वर्ष की थी। दीवानगी का आलम तब भी देखा था, पर जब मेरी मोहब्बत ने दीवानगी के शिखर को छू लिया,वह 1953 के चैत्र में घटित हुआ।उसका मिलन था।इस मिलन में से मैने " सुनहेडे" संग्रह की सभी कविताएं लिखी। केवल एक कविता को छोड़ कर । जबकि यह पुस्तक 1955 में प्रकाशित  हुई पर उसके आरंभिक पेज पर 1953 के नाम पर " लिखा है।


कई चैत्र ऐसे भी आए,जब उससे मिलन नहीं हुआ,पर ऐसे जैसे चैत्र के महीने में चैत्र न आया हो। कविताएं हर चैत्र में लिखीं और फिर लिखने का प्रत्येक समय मेरे लिए चैत्र हो गया। इसी कारण आज उन सभी कविताओं को जिनमें मेरी मोहब्बत की दीवानगी है, चैत्र नामा भी कह सकती हूं।( मैं जमा तू)


  इस तरह अमृता की कविता में चैत्र एक प्रतीक की तरह फैलता है और उसकी सम्पूर्ण कविता की प्रतीकात्मक योजना में विशेष महत्व का बन जाता है।

जैसे ....

चैत्र ने पासा मोड़िआ

रंग दे मेले वास्ते फुल्ला ने रेशम जोड़ियां

तू नहीं आइया...


हिंदी अनुवाद 


चैत्र ने करवट बदली

रंगों के मेले के लिए 

फूलों ने रेशम जोड़ा

तू नहीं आया।


2) चैत्र दा वंजारा आइआ

बुचकी मोढ़े चाई वे।

असी विहाझी पिआर कथुरी

वेहंदी रही _ लुकाई वे।


हिंदी अनुवाद


चैत्र का बंजारा आया

गठरी कंधे पर उठाए

हमने खरीदी प्यार कस्तूरी

देखता रहा ,पूरा लोक।


3/

पंजा उत्ते है वीह सौ पंज समंत

चढ़िआ चैत्र महीने ते होई नावी

 हत्थी आपणी लिखे सुनेहडे मैं _

हत्थी आपणी आप वसूल पावीं।


हिंदी अनुवाद 

पांच ऊपर है बीस सौ पांच सम्वत

चढ़ा चैत्र का महीना हुई नौवीं

अपने हाथ से लिखे संदेश मैने

अपने ही हाथों से उन्हें वसूल पाना।


4)

चैत्र ने बूहा खड़काइआ

अज्ज दा गीत इस तरा बणिआ।


चैत्र ने द्वार खटखटाया

आज का गीत इस तरह बना।


5)

वहीआं लै के चैत्र आइआ

सज्जी अक्ख जिमी दी फरकी।


बही खाते को लेकर चैत्र आया 

दाईं आंख जमीं की फड़की।


6

एक चैत्र दी पुनिआं सी

कि चिट्टा दुध मेरे इश्क दा घोड़ा

देशा ते बदेशां नू गाहण तुरिया ( चैत्र नामा)


एक चैत्र की पूर्णिमा थी 

कि सफेद दूध सा मेरे इश्क का घोड़ा

देश विदेश को नापने चला।


अमृता ने प्रेम से जुड़ी अपनी सभी कविताओं को " चेतरनामा"कहा।इसी कारण चैत्र का प्रतीक इन कविताओं का स्थाई हिस्सा बना।


  यह प्रतीक कविता में फैलते हैं और अर्थ की बहु दिशाओं की ओर संकेत करतें हैं।अमृता का काव्य शिल्प इन प्रतीकों के सामर्थ्य और उसके विश्वास के साथ जुड़ा हुआ है। यह प्रतीक विधान उसका संदेश बनता है।वह कहती है__ 

नवीं रूत्त दा कोई संदेश देवां

ऐस कानी दी लाज नूं पालणा वे। ( सुनेहड़े)

( नई ऋतु का कोई संदेश दूं/ इस कलम की लाज को पालना है।)


तो इस संदेश में प्रतिकात्मक दृष्टि से रात से लेकर प्रभात के सूर्य तक सपनों से निकलते हुए एक यात्रा है। इसलिए कई बार वह इस प्रतीक विधान के उस संदेश से जुड़ते हुए कहती है__

 रात है काली बड़ी 

 उम्रां किसे ने बालीआं

चन सूरज कहे दीवे 

अजे वी बलदे नहीं।


रात है काली बड़ी

उम्र किसी ने जलाई

चांद सूरज कैसे हैं दीपक

अभी भी जलते नहीं।

    इसी के साथ अमृता के लिए सशक्त कविता की शक्ति आज़ादी का एहसास देने में है।उन्होंने रसीदी टिकट में लिखा

आग की बात है, तूने ही यही बात कही थी। लिख कर ऐसा लगा जैसे चौदह वर्ष का वनवास भोग कर स्वतंत्र हूं।

Tuesday, February 14, 2023

अमृत उद्यान

 फिर छिड़ी बात फूलों की ...


इस वक्त दिल्ली का हर कोना रंग बिरंगे फूलों से गुलजार है। मुगल गार्डन जिसका नाम अभी अभी बदल कर अमृत उद्यान किया गया ,खूबसूरत रंगबिरंगे फूलों से महक रहा है। हर तरह के फूल ,सौ से ज्यादा गुलाब की किस्में , ट्यूलिप के कई रंग के फूल ,औषधीय पौधे ,जिसमें पुदीना, लेमन ग्रास , अजवाइन, और भी कई किस्में ,बोनसाई उद्यान, और संगीत पर झूमते फाउंटेन , एक जादुई सा वातावरण जैसा दिखता है । 


लगभग पंद्रह सौ एकड़ में फैले इस उद्यान में खुशबू है ,पक्षियों की चहचहाट है, बंदरों की उछल कूद और मोर भी है।इन सब के साथ  स्कूल के आए बच्चों की हंसी वाकई अमृत उद्यान के इस उत्सव के नाम को सार्थक कर देती है। 


 यह अभी 26 मार्च तक है । ऑनलाइन बुकिंग फ्री है। आपको अपने हिसाब से टाइम स्लाट स्लेक्ट करने हैं। कुदरत के इस सुंदर नजारे को जी भर कर देख आइए।


इस लिंक पर आप इस सुंदर जगह को देख सकते हैं

अमृत उद्यान









Tuesday, February 07, 2023

जॉय गांव पिकनिक

 ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए,

मौसम नहीं मन चाहिए,

हर राह आसान हो जाएगी,

बस उसे करने का संकल्प चाहिए..














उम्र के साथ सीनियर सिटीजन जुड़ा हो और मन में घूमने की ललक हो तो फिर बात ही क्या है। इस बीते संडे को सीनियर सिटीजन ग्रुप के साथ "जॉय गांव पिकनिक स्पॉट" पर जाने का प्रोग्राम बना। जिसमे सब उमंग से भरे हुए थे ।

दस लोगों के ग्रुप में मेरी कॉलेज की फ्रेंड Kavita Nagi और उसके पतिदेव भी साथ थे। हम लोग पांच साल बाद मिल रहे थे तो वो खुशी बहुत ज्यादा थी। खूब एंजॉय किया। खूब बड़ा बना हुआ झज्जर रोड पर  यह गांव बहुत ही अच्छा लगा। बच्चों की तरह खूब झूले झूले । 7 डी मूवी देखी। बहुत टाइम से इच्छा थी "जिपलाइन "करने की वो की। मतलब एक बार फिर से हम सब ने बचपन को  जी लिया।कठपुतली तमाशा ,जादू के खेल ,मेंहदी ,गांव का खाना माहौल पानी भरना ,जो भी था सब खूब एंजॉय किया। सब लोगों का साथ बहुत ही प्यारा था। बाकी सब सदस्य पहली बार मिल रहे थे पर लगा ही नहीं कि अजनबी हैं। 


कल के बीते दिन की खूबसूरत झलक नीचे दिए लिंक में देख सकते हैं।

   जॉय गांव की वीडियो


 घूमते हुए यही पंक्तियां घूम रही थी 


उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में

फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

- बशीर बद्र

Thursday, January 26, 2023

खालीपन

 


खालीपन

जब भी खाना बनाती हूं

तो सामने वाले घर में भी वो भी खाना बना रही होती है

आमने सामने की खिड़की से अक्सर एक दूसरे को देखते हैं हम

जानती नहीं मैं उसे

पर जैसे हमारी आंखें बात कर रही होती हैं

क्या बनाया आज? क्या उन्हें पसंद आएगा? क्या बच्चे खाएंगे?

फिर एक खामोशी ,फिर नजरों का मिलना और पूछना

क्यों परिवार होते हुए भी अकेले हैं हम?

आंखों में खालीपन  क्यों है, इधर भी उधर भी?

आखिर किसको ढूंढा रहे हैं इस खिड़की से बाहर झंकते हुए हम?

इन्हीं सवालों के साथ खिड़की यहां भी बंद और वहां भी बंद


नीचे लिंक पर आप सुन भी सकते हैं 

Written by my daughter megha sahgal



बदला रंग मौसम का

 बदला रंग मौसम का



ली अंगडाई

सर्दी ने ....

मौसम की

बुदबुदाहट में ...

हवा के

खिलते झोंकों से ..

बहती मीठी बयार से

फ़िर पूछा है ..

प्रेम राही का पता


खिलते

पीले सरसों के फूल सा

आँखों में ...

हंसने लगा बसंत

होंठो पर

थरथराने लगा

गीत फ़िर से

मधुमास का ..

अंगों में चटक उठा

फ्लाश का चटक रंग

रोम रोम में

पुलकित हो उठा

अमलतास ...

कचनार सा दिल

फ़िर से जैसे बचपन हो गया


कैसा यह बदला

रंग मौसम का

अल्हड सा

हर पल हो गया......


बसंत पंचमी की आप सभी को बहुत बहुत बधाई 


 Ranju Bhatia...

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जश्न जारी है

 इमरोज़ होना आसान नहीं ...



इमरोज़ का जन्मदिन


Amrita Pritam ke saath चालीस साल जी कर लिखी 

इमरोज़ की कविताएं


"जश्न जारी है" जी की किताब से कुछ सुंदर रचनाएं


तेरे साथ जिए

वे सब खूबसूरत

दिन रात

अब अपने आप

मेरी कविताएं

बनते जा रहे हैं....


कब  और किस दिशा में कुछ सामने आएगा ,कोई सवाल पूछेगा ,यह रहस्य पकड़ में नही आता ..एक बार मोहब्बत और दर्द के सारे एहसास ,सघन हो कर आग की तरह लपट से पास आए और इश्क का एक आकार ले लिया ..


उसने पूछा ..कैसी हो ? ज़िन्दगी के दिन कैसे गुजरते रहे ?


जवाब दिया ..तेरे कुछ सपने थे .मैं उनके हाथों पर मेहन्दी रचाती रही .

उसने पूछा ..लेकिन यह आँखों में पानी  क्यों है ?


कहा ..यह आंसू नही सितारे हैं ...इनसे तेरी जुल्फे सजाती रही ..


उसने पूछा ...इस आग को कैसे संभाल कर रखा ?


जवाब दिया ...काया की डलिया में छिपाती रही


उसने पूछा -बरस कैसे गुजारे ?


कहा ....तेरे शौक की खातिर काँटों का वेश पहनती रही..


उसने पूछा ...काँटों के जख्म किस तरह से झेले?


कहा... दिल के खून में शगुन के सालू रंगती रही..


उसने कहा और क्या करती रही?


कहा -कुछ नही तेरे शौक की सुराही से दुखों की शराब पीती रही


उसने पूछा .इस उम्र का क्या किया


कहा कुछ नही तेरे नाम पर कुर्बान कर दी .[यह एक अमृता का साक्षात्कार है जो एक नज्म की सूरत में है ..]


अमृता ने एक जगह लिखा है कि वह इतिहास पढ़ती नही .इतिहास रचती है ..और यह भी अमृता जी का कहना है वह एक अनसुलगाई सिगरेट हैं ..जिसे साहिर के प्यार ने सुलगाया और इमरोज़ के प्यार ने इसको सुलगाये रखा ..कभी बुझने नही दिया ..अमृता का साहिर से मिलन कविता और गीत का मिलना था तो अमृता का इमरोज़ से मिलना शब्दों और रंगों का सुंदर संगम ....हसरत के धागे जोड़ कर वह एक ओढ़नी बुनती रहीं और विरह की हिचकी में भी शहनाई को सुनती रहीं ..


  प्रेम में डूबी हर स्त्री अमृता होती है या फिर होना चाहती है. पर सबके हिस्से कोई इमरोज नहीं होता, शायद इसलिए भी कि इमरोज होना आसान नहीं. ... किसी ऐसी स्त्री से से प्रेम करना और उस प्रेम में बंधकर जिन्दगी गुजार देना, जिसके लिए यह पता हो कि वह आपकी नहीं है।


जन्मदिन मुबारक इमरोज़


इस लिंक पर सुने इमरोज़ की कविताएं






Thursday, December 29, 2022

दुनिया के सात अजूबे दिल्ली में

 सात अजूबे


यह दिल्ली है,बस इश्क मोहब्बत प्यार .... सर्दी में दिल्ली की कुछ जगह बहुत ही सकून और गर्माहट से भर देती है। दिल्ली के पार्क और नई बनी यह कुछ जगह बढ़िया है देखने लायक ।


 #WasteToWonder एक ऐसी ही जगह है । यह निजामुद्दीन मेट्रो स्टेशन के पास है। यहां पुराने स्क्रैप से दुनिया के सात अजूबे बना रखें हैं। यह जगह inderprasthapark के बिल्कुल करीब है। और बहुत अच्छे से मेंटेन है। (near Hazrat Nizamuddin Metro Station, Block A, Ganga Vihar, Sarai Kale Khan, New Delhi, Delhi 110013)


  इसमें जाने का टाइम सुबह 11 से शाम 11 बजे तक है। टिकट सीनियर सिटीजन 65 से ऊपर की फ्री एंट्री है। 13 से 64 उम्र तक फिफ्टी रूपीज और बच्चों की 25 rs है। रात को साउंड एंड लाइट शो भी है। और यह स्क्रैप से बने सात अजूबे खूब सुंदर रोशनी से भर जाते हैं। अभी ठंड के कारण हमने रात वाले नजारे देखे नहीं, पर वाकई यह बहुत सुंदर दिखेंगे।


खाने की कोई वस्तु अंदर नहीं ले  जा सकते, किंतु अंदर बहुत सारे फूड स्टॉल है। जहां आप वेज नॉन वेज सब ले सकते हैं। रेट वाजिब है । कुछ महंगे कुछ ठीक ठाक।


   अंदर फूल ,पौधे और झरना भी है जिसकी कल कल पानी की आवाज़ मन मोह लेती है ,मेडिटेशन सा माहौल बना देती है। हर जगह सफाई और सुंदर फूलों से सजा हुआ है।  दिल्ली की सर्दी में इस सुंदर जगह में घूम आइए जब भी मौका लगे।



Sunday, December 25, 2022

हैप्पी क्रिसमिस

 

 हैप्पी क्रिसमिस


 क्रिसमस का त्योहार आते ही बच्चो की खुशी का ठिकाना नही रहता . सांता क्लाज  आयेंगे ढेर से तोहफे लायेंगे , यही उम्मीद लिए सारी दुनिया के बच्चे इनका इंतज़ार करते हैं । शायद ही दुनिया का कोई बच्चा ऐसा होगा जिसे इनका इंतज़ार न होगा।

   

 दुनिया भर का प्यार समेटे अपनी झोली में यह आते हैं और बच्चो को इंतज़ार होता है अपने तोहफों का जो वो चिठ्ठी [पाती] लिख के अपनी मांग उनको लिख के भेजते हैं . क्या आप जानते हैं कि " सांता क्लाज" को हर साल कितनी पाती मिलती है? आपको यकीन नही होगा लेकिन यह सच है कि हर साल उन्हें ६० लाख से भी ज्यादा पाती मिलती है और सांता उनका जवाब देते हैं .


 सयुंक्त राष्ट्रीय की  यूनीवर्सल   पोस्ट यूनियन के अनुसार "सांता क्लाज़ को ढेरों नन्हें मुन्ने बच्चों की  पाती मिलती हैं "सांता कितने लोकप्रिय हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगया जा सकता है कि कम से कम २० देशों के डाक विभाग सांता के नाम से आने वाली चिट्ठियों  को अलग करने और फ़िर उनका जवाब देने के लिए अलग से कर्मचारी भरती करते हैं .....कई पाती पर तो सिर्फ़ इतना ही लिखा होता है "सांता क्लाज़ नॉर्थ पोल .."इन चिट्ठियों का  दिसम्बर में तो अम्बार लग जाता है।  कनाडा  डाक विभाग २६ भाषा में इनका जवाब देता है जबकि जर्मनी  की "डयुश    पोस्ट  " १६ भाषा में  इन का जवाब देती है कुछ देशो में तो ई-मेल से भी जवाब दिए जाते हैं पर सांता रहते कहाँ है यह  अभी साफ साफ नही पता चल पाया है :) पर कनाडा और फ्रांस के डाक कर्मी सबसे ज्यादा व्यस्त  रहते हैं क्यूंकि इन दोनों देशों  में १० लाख से भी ज्यादा नन्हें मुन्ने चिट्ठी लिखते हैं।


सर्दियों में मनाया जाने वाला यह त्योहार लगभग सभी देशों में मनाया जाता है लेकिन सांता को कई नामों से जाना जाता है कहीं फादर क्रिसमस ,तो कहीं सेंट निकोलस ,रूस में इन्हे "डेड मोराज़" के नाम से जाना जाता है


1)_यह तो हम सभी जानते हैं कि क्रिसमस पर सबको उपहार देने की परम्परा है लोग तरह तरह के उपहार देते हैं ..पर एक उपहार अब तक का सबसे व्यक्तिगत उपहार माना जाता है...वह था १९६९ की क्रिसमस की पूर्व संध्या पर अरबपति अमेरिकी व्यवसायी रास  पैरेट ने वियतनाम में अमेरिकी युद्धबंदियों के लिए विमान सेवा से २८ टन दवाइयां और उपहार भिजवाये थे |यह अब तक का सबसे बड़ा व्यक्तिगत  उपहार माना जाता है |


2)नेशनल क्रिसमस   ट्री एसोसिएशन के अनुसार अमेरिका में हर साल ३७.१ मिलियन क्रिसमस ट्री खरीदे जाते हैं |अमेरिका का राष्ट्रीय क्रिसमिस वृक्ष कैलोफोर्निया के किंग कैनन नैशनल पार्क में हैं | ३०० फीट ऊँचे इस सिकाओ वृक्ष को यह दर्जा १९२५ में दिया गया |


3) पूरी दुनिया में    क्रिसमस २५ दिसम्बर को मनाया जाता है पर सिर्फ़ यूक्रेन में यह ७ जनवरी को मनाया जाता है इसकी वजह यह है कि यहाँ पर रोमन कैथोलिक गेग्रोरियन कैलेंडर के साथ ही आर्थोडाक्स जुलियन कैलेंडर भी समान रूप से प्रचलित है


यूक्रेन   का क्रिसमस कुछ और कारणों से भी बहुत ख़ास है ..यहाँ क्रिसमस ट्री पर नकली मकडी और उसका जाल सजाया जाता है इस से यह माना जाता है कि घर में गुड़ लक आता है | यहाँ क्रिसमस की रात घरों में दावत की जबरदस्त तैयारी होती है और घर का सबसे छोटा बच्चा इवनिंग स्टार को देखने के बाद पार्टी शुरू करने का संकेत देता है


4)ग्रीस में क्रिसमस ट्री को सजाने और उपहार देने की परम्परा नहीं है | क्रिसमस की सुबह स्थानीय पादरी गांव के तालाब  में एक छोटा सा क्रास इस विश्वास के साथ फेंकता है  कि वह अपने साथ बुरी आत्माओं को भी डुबो देगा | इस के बाद पादरी गांव  के घर घर जा कर पवित्र जल फेंकते हैं ताकि घर से बुरी आत्माएं निकल जाए | इस बुरी आत्माओं को भगाने के प्रयास में ही वहां के लोग पुराना जूता या नमक जलाते हैं |


5)नार्वे में क्रिसमस पर रात्री भोज और उपहार को खोलने के बाद घर के झाडू को छुपा दिया जाता है |इस के पीछे यह मान्यता है कि हर रात बुरी आत्माएं  बाहर निकलती है और वह झाडू को चुरा कर उस पर सैर करती हैं |


6)अमेरिका में बच्चे क्रिसमस की रात सांता क्लाज से उपहार लेने के लिए जुराबे टांग  देते हैं   तो नीदरलैंड में बच्चे नवम्बर से ही अपने जुटे इस विश्वास के साथ टांग देते हैं घर के बाहर की सांता क्लाज उन्हें उपहार दे जायेंगे |


इस तरह क्रिसमस के रंग हर देश में खूब नए तरीके से मनाये जाते हैं ..किसी भी तरह मनाया जाए पर    यह बच्चो को तो बहुत ही प्यारा त्यौहार लगता है क्यों कि बहुत सारे उपहार जो मिलते हैं ..और सब तरफ शान्ति रहे सब को सदबुद्धि    मिले इसी दुआ के साथ आप सबको 

#happychristmas


Wednesday, December 14, 2022

होता है कभी ऐसे भी ...

 होता है कुछ ऐसा भी ......

कवि निराला जी के बारे में एक घटना पढ़ रही थी कि ,वह एक दिन लीडर प्रेस से रोयल्टी के पैसे ले कर लौट रहे थे | उसी राह में महादेवी जी का घर भी पड़ता था |उन्होंने सोचा की चलो मिलते चलते हैं उनसे .|ठण्ड के दिन थे अभी कुछ दूर ही गए होंगे कि सड़क के किनारे एक बुढिया उन्हें दिखायी दी जो ठण्ड से कांप रही थी और याचक भाव से उनकी तरफ़ देख रही थी | उस पर दया आ गई उन्होंने उसको न सिर्फ़ अपनी रोयल्टी के मिले पैसे दे दिए बलिक अपना कोट भी उतार कर दे दिया ..., और महदेवी के घर चल दिए किंतु चार दिन बाद वह यही भूल गए कि कोट क्या हुआ | उस को ढूढते हुए वह महादेवी जी के घर पहुँच गए ,जहाँ जा कर उन्हें याद आया कि वह कोट तो उन्होंने दान कर दिया था |


पढ़ कर लगा कि इस तरह जो डूब कर लिखते हैं या प्रतिभाशाली लोग होते हैं ,वह इस तरह से चीजो को भूल क्यों जाते हैं ? क्या किसी सनक के अंतर्गत यह ऐसा करते हैं ? या इस कद्र डूबे हुए होते हैं अपने विचारों में कि आस पास का कुछ ध्यान ही नही रहता इन को ।विद्वान मन शास्त्री का यह कहना है कि जब व्यक्ति की अपनी सारी मानसिक चेतना एक ही जगह पर केंद्रित होती है वह उस सोच को तो जिस में डूबे होते हैं कामयाब कर लेते हैं पर अपने आस पास की सामान्य कामो में जीवन को अस्तव्यस्त कर लेते हैं जो की दूसरों की नज़र में किसी सुयोग्य व्यक्ति में होना चाहिए |


इसके उदाहरण जब मैंने देखे तो बहुत रोचक नतीजे सामने आए .,.जैसे की वाल्टर स्काट यूरोप के एक प्रसिद्ध कवि हुए हैं ,वह अक्सर अपनी ही लिखी कविताओं को महाकवि बायरन की मान लेते थे और बहुत ही प्यार से भावना से उनको सुनाते थे |उन्हें अपनी भूल का तब पता चलता था ,जब वह किताब में उनके नाम से प्रकशित हुई दिखायी जाती थी |


इसी तरह दार्शनिक कांट अपने ही विचारों में इस तरह से गुम हो जाते थे कि , सामने बैठे अपने मित्रों से और परिचितों से उनका नाम पूछना पड़ता था और जब वह अपने विचारों की लहर से बाहर आते तो उन्हें अपनी भूल का पता चलता और तब वह माफ़ी मांगते |


फ्रांस के साहित्यकार ड्यूमा ने बहुत लिखा है पर उनकी सनक बहुत अजीब थी वह उपन्यास हरे कागज पर ,कविताएं पीले कागज पर ,और नाटक लाल कागज पर लिखते थे | उन्हें नीली स्याही से चिढ थी अत जब भी लिखते किसी दूसरी स्याही से लिखते थे |


कवि शैली को विश्वयुद्ध की योजनायें बनाने और उनको लागू करने वालों से बहुत चिढ थी | वह लोगो को समझाने के लिए लंबे लंबे पत्र लिखते |पर उन्हें डाक में नही डालते, बलिक बोतल में बंद कर के टेम्स नदी में बहा देते और सोचते की जिन लोगो को उन्होंने यह लिखा है उन तक यह पहुँच जायेगा | इस तरह उन्होंने कई पत्र लिखे थे |


जेम्स बेकर एक जर्मन कवि थे वह ठण्ड के दिनों में खिड़की खोल कर लिखते थे कि , इस से उनके दिमाग की खिड़की भी खुली रहेगी और वह अच्छा लिख पायेंगे |


चार्ल्स डिकन्स को लिखते समय मुंह चलाने की और चबाने की आदत थी | पूछने पर कि आप यह अजीब अजीब मुहं क्यों बनाते लिखते वक्त ..,तो उसका जवाब था कि यह अचानक से हो जाता है वह जान बूझ कर ऐसा नही करते हैं |


बर्नाड शा को एक ही अक्षर से कविताएं लिखने की सनक थी |उन्होंने अनेकों कविताएं जो एल अक्षर से शुरू होती है उस से लिखी थी ..,पूछने पर वह बताते कि यह उनका शौक है |


तो आप सब भी प्रतिभशाली हैं ,खूब अच्छे अच्छे लेख कविताएं लिखते हैं .| सोचिये- सोचिये आप किसी आजीबो गरीब सनक के तो शिकार नही :) कुछ तो होगा न जो सब में अजीब होता है .. | जब मिल जुल कर हम एक दूसरे के अनुभव, कविता, लेख पढ़ते हैं तो यह क्यूँ नही ।:) वैसे मेरी सनक है बस जब दिल में आ गया तो लिखना ही है ....और जब दिल नहीं है तो नहीं लिखना ......चाहे कितना भी जरुरी क्यों नहीं हो ...मतलब मूड स्विंग्स :)जल्दी जल्दी लिखे आप सब में क्या अजीब बात है मुझे इन्तजार रहेगा आप सब की सनक को जानने


का ॥:)#रंजू भाटिया

Monday, December 12, 2022

मुस्कान

 


कोई भी" दर्द "

मारता है 'तिल तिल 

फैलता है ,होले से 

और विदा होने से पहले 

वसूलता है ....

अपने रहने "का हर दाम 

कभी लफ़्ज़ों में ,

कभी कहानियों में

कभी किस्सों में 

और कभी "नम आँखों की बारिश में "

हर दाम चुकाने के बाद ही देता है "मुस्कान" किश्तों में धीरे धीरे !

#रंजूभाटिया

Thursday, December 01, 2022

कोलाज

 बने अब

शब्दों के कुछ कोलाज

जो ज़िन्दगी के सब रंग दिखाए

दुःख के भीगे पल

जो थमे हैं कहीं

वो अब ख़ुशी के साए में

लिपटे नजर आये !!!


ज़िन्दगी कभी अपनों की तरह मिल ..क्यों किसी गैर की तरह सताती है मुझे :)


@ra


nju bhatia

Saturday, November 19, 2022

प्रीत की रीत

 प्रीत की रीत 



जब तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार उमड़ आये,

और वो तुम्हारी आँखो से छलक सा जाए.......

मुझसे अपनी दिल के बातें सुनने को

यह दिल तुम्हारा मचल सा जाए..........

तब एक आवाज़ दे कर मुझको बुलाना

दिया है जो प्यार का वचन सजन,

तुम अपनी इस प्रीत की रीत को निभाना ............


तन्हा रातों में जब सनम

नींद तुम्हारी उड़ सी जाये.......

सुबह की लाली में भी मेरे सजन,

तुमको बस अक़्स मेरा ही नज़र आये......

चलती ठंडी हवा के झोंके ....

जब मेरी ख़ुश्बू तुम तक पहुंचाए .

तब तुम अपना यह रूप सलोना ....

आ के मुझे एक बार दिखा जाना

दिया है जो प्यार का वचन साजन

तुम अपनी इस प्रीत की रीत को निभा जाना


बागों में जब कोयल कुके.....

और सावन की घटा छा जाये.......

उलझे से मेरे बालों की गिरहा में.....

दिल तुम्हारा उलझ सा जाये .....

आ के अपनी उंगलियो से....

उस गिरह को सुलझा जाना

जो हो तुम्हारे दिल में भी कुछ ऐसा.....

तब तुम मेरे पास आ जाना


पहले मिलन की वो मुलाक़ात सुहानी.....

याद है अभी भी मुझको

तुम्हारी वो भोली नादानी.

मेरे हाथो में अपने हाथो को लेकर ........

गया था तुमने जब प्यार का गीत सुहाना

हो जब तुम्हारे दिल में भी ऐसी  यादो का बसेरा....

तब तुम अपनी प्रीत का वचन निभाना


जो हो तुम्हारे दिल में कुछ ऐसा

तब तुम मुझ तक साजन आ जाना ..# रंजू .....

Friday, November 11, 2022

मन के चित्र डूडल

 मानव मन चंचल होता है शान्त बैठना इसका स्वभाव नही है .हम कुछ भी करते वक़्त अक्सर सब कुछ ना कुछ यदि पेन और काग़ज़ सामने दिखे तो कुछ लिखते रहेंगे या कुछ चित्र बनाते रहेंगे ..बिना सोचे विचारे बात करते करते कभी यह चित्र बहुत ही मज़ेदार बन जाते हैं कि आप ख़ुद ही तारीफ़ करने लगते हैं |कभी कभी सिर्फ़ अपने नाम को अलग अलग ढंग से लिखने लगते हैं कभी फूल पत्ती या कोई जानवर की शकल बनाने लगते हैं …यूँ ही बात करते करते बनाई इन आकृति को “डूडल “कहा जाता है ..कुछ दिन पहले इस पर बहुत ही रोचक लेख पढ़ा था .जब इसकी प्रद्शनी अमरीका के राष्ट्रपतियों के द्वारा बनाई गयी डूडल प्रद्शनी में लगाई गयी थी

चित्रो के बारे में मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि असल में यह आपके द्वारा बनाए गये चित्र आपकी अंदर चल रही “मानसिक हलचल” को बताते हैं .यदि आप पन्ने के बाई तरफ़ डूडल बना रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप ज्यादा किसी से घुलते मिलते नही है और अपने बीते समय के बारे में ज्यादा सोचते हैं ,यदि आप दाहिने तरफ़ ज्यादा लिख रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप बहुत सोशल हैं और ज्यादातर अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं और बीच में डूडल बना रहे हैं तो आप सबका ध्यान अपनी तरफ़ खीचना चाहते हैं |मनोवैज्ञानिकों ने डूडल को सिंबल बना के इस के आधार पर लोगो के दिल की बात बात बताने की कोशिश की है !यह माना जाता है कि महिलाए पुरुषों से ज्यादा डूडल बनाती हैं


अब बात है कि आप के बनाए डूडल क्या कहते हैं ??यदि आप नाव ,जहाज़ और कार बना रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप एक लंबा अवकाश चाहते हैं और कही बाहर घूमना चाहते हैं ,यदि आप तीर के निशान बना रहे हैं और उसकी नोक ऊपर की तरफ़ है तो आप बहुत आगे बढ़ने की सोचते हैं ….आपके अंदर ज़िंदगी में कुछ कर गुज़रने की तीव्र इच्छा है और यदि तीर के निशान हर दिशा में बना रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप खुले विचार वाले है


आप एक आदर्शवादी व्यक्ति है पाँच सितारे बनाना बताता है कि आप मह्त्वाक्षी है ..!छ सितारे वाले चित्र बनाना आपके ध्यान की सिथ्ती को बताता है }यदि आप बात करते करते या कुछ सोचते सोचते ख़ुद ही ज़ीरो कांटा का खेल खेलते हैं तो यह आपकी प्रतिस्पर्द्धि स्वभाव को बताता है


यदि आप आयताकार या त्रिभुज बना रहे हैं यानी कि ज्यामिती रचनाए बनाने लगते हैं तो यह आपकी साफ़ स्पष्ट सोच को बताता है |,सुंदर चेहरे बनाना आपके सामजिक स्वभाव के बारे में बताता है और यदि आप जानवर बना रहे हैं तो इसका मतलब है कि आप दूसरों को किसी मुसीबत से बाहर निकलना चाहते हैं


यदि आप दिल के निशान बना रहे हैं तो आप बहुत भावुक हैं और फूल बनाने का मतलब कि आप किसी को चाहते हैं और उसका ध्यान अपनी तरफ़ आकर्षित करना चाहते हैं और पत्ती बनाना आपके अंदर अपने पैसे के लिए दीवानेपन को बताता है ..


तो देखा आपने यह अनजाने में किया गया काम कैसे आपके स्वभाव और सोच को बता देता है …अक्सर यह चित्र बनाना हम सब करते हैं .बात करते हुए किसी सोच में अनजाने में डूबे हुए या कुछ लिखते लिखते अनजाने में यह चित्र बनाने लगते हैं …रोचक लगा मुझे इनके बारे में जानना क्यूंकि अक्सर जिज्ञासा होती है दिल में कि क्यों हम यह चित्र बनाने लगते हैं 🙂 इस लिए इसको आपके साथ शेयर किया ..बताएं कि आप इन में से क्या क्या अधिक बनाते हैं 🙂 मैं तो सितारे और फूल बनाती रहती हूँ 🙂

Saturday, November 05, 2022

आहट


 धुंधलके साए 

धुंधला सा दिखता 

उस में अक्स 

और ,"एक आहट "

किसी नाम की भी 

सुनाई देती रही 

पर घना था शायद 

वक़्त का कोहरा 

हर अक्स उस धुंधलके में 

अपना वजूद खोता रहा 

कोहरे की ओट में 

कहराता दर्द 

बदलते मौसम की आस में 

 रंग बदलता रहा !!

#रंजू 


Saturday, October 29, 2022

दिल्ली हाट

हाट” नाम सुनते ही किसी गांव के मेला बाज़ार का दृश्य घूम जाता है , लोकल बाज़ार जिसमे ,स्थानीय चीजे ,वहां के ही लोकल लोंगो द्वारा बनायी हुई और खरीदते हुए खरीद दार मोल भाव करते हुए नज़र आते हैं ,” दिल्ली हाट” इसी प्रकार की एक जगह है ,आज आइये “दिल्ली हाट की सैर” करते हैं



 


दिल्ली हाट कहाँ कहाँ है ?

“दिल्ली हाट” सबसे पहले दिल्ली एम्स हॉस्पिटल के पास आई एन ऐ में २८ मार्च १९९४ में शुरू किया गया था . तब से अब तक तीन दिल्ली हाट खुल चुके हैं ,दूसरा प्रीतम पूरा में और तीसरा जनकपुरी में हैं .दिल्ली हाट की स्थापना का मुख्य उद्देश्य यह था कि बिचैलियों को हटाकर दस्तकारों को उनके उत्पाद का सीधा लाभ दिया जाए। दस्तकारों की माली हालत सुधारने के लिहाज़ से देश के कपड़ा मंत्रालय ने यह निर्णय लिया था। यहाँ देश के विभिन्न राज्यों के खान-पान को भी एक स्थान पर मुहैया कराने की पहल की गई है। अपने प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों के व्यंजनों से भी लोग परिचित हों। दिल्ली हाट की पहचान ही यहाँ मिलने वाले खादी देशी उत्पादों और खाने वाले विविध व्यंजनों से बनी है। यहाँ आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम भी लोगों को आकर्षित करते रहे हैं। ‘दिल्ली हाट’ का बढ़ता आकर्षण यह है कि यहाँ देशी ग्राहकों के साथ-साथ विदेशी ग्राहक भी ख़रीदारी करते दिखते हैं। ये दिल्ली हाटें पूरे भारत के कुशल, प्रतिष्ठित और पंजीकृत शिल्पकारों की कलाओं और शिल्प भण्डार के लिये जाना जाती हैं।



यहाँ से आप क्या क्या खरीद सकते हैं ?

दिल्ली हाट से आप हथकरघा ,पॉटरी का सामान ,और दस्तकारी आदि का समान ले सकते हैं .बाजार को खरीददारों के लिये और सुविधाजनक बनाते हुये प्रथम दिल्ली हाट को प्रसाधन के साथ-साथ पूर्णतयः व्हील चेयर द्वारा सुलभ कर दिया गया है। डीसी हस्तशिल्प द्वारा पंजीकृत शिल्पकारों को ही इस जगह अपने कृतियों को प्रदर्शित करने की अनुमति है और उन्हे एक चक्रीय क्रम में 15 दिनों के एक छोटे से अन्तराल के लिये एक स्टॉल दे दी जाती है जिससे कि आगन्तुकों को अनोखी और गुणवत्तापरक वस्तुओं को देखने और खरीदने का अवसर मिलता है। इस सम्पूर्ण व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण शिल्पकारों द्वारा उनके पारम्परिक भारतीय लोककला का परिचय शहरी ग्राहकों से करवाना है। यहाँ पर प्रदर्शित और उपलब्ध कुछ उत्पादों में कलात्मक वस्त्र और जूते-चप्पल, सहायक सामग्री, रत्न, माणिक्य, खिलौने, सजावटी कलात्मक वस्तुयें, नक्काशीदार लकड़ी के सामान, धातु के सामान इत्यादि शामिल हैं।


खान पान की सुविधा

दिल्ली हाट में दिल्ली हाट में मिलने वाले स्वादिष्ट व्यंजन ‘दिल्ली हाट’ को ख़ास बनाते हैं। भारत के विभिन्न प्रांतों के व्यंजन की दुकानें यहाँ लगी हैं। 1994 में जब दिल्ली हाट की शुरुआत हुई थी तब देश के सभी पच्चीस राज्यों को यहाँ व्यंजन की दुकानें उपलब्ध करायी गई थीं ताकि यहाँ आने वाले लोग दूसरे प्रांतों के व्यंजनों का भी स्वाद ले सकें। भौगोलिक रूप से विविधताओं का देश तो हिन्दुस्तान है ही यहाँ के खान-पान में भी काफ़ी विविधता है।दिल्ली हाट में देश के सौ से ज़्यादा ख़ास व्यंजन उपलब्ध हैं। पंजाब के ‘मक्के दी रोटी सरसों दा साग’ हो, बंगाल के ‘माछेर-झोल’ और दक्षिण भारत के ‘इडली डोसा’ हो यहाँ सभी उपलब्ध हैं। यहाँ बिहार के मशहूर लिट्टी-चोखा भी मिलता है।यहाँ हर राज्य के खाने पीने के स्वाद ले सकते हैं ,सर्दी की धुप में तो यहाँ बैठने का आनंद ही और होता है .


यहाँ होने वाले प्रोग्राम

यहाँ विभिन्न राज्यों के सांस्कृतिक प्रोग्राम भी होते रहते हैं जो मन को मोह लेते हैं .दिल्‍ली हाट में पूरी साल तरह-तरह सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते रहते हैं। किसी राज्य विशेष की थीम पर भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन होता है। दिल्ली हाट का होना सभी राज्यों की संस्कृतियों का मिलन होना है। दिल्‍ली हाट में ख़ास त्योहारों के मौके पर उसी तरह के माहौल और कार्यक्रमों का आयोजन कर लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ने की भी कोशिश रहती है।


रंग बिरंगा हाट

परिसर के अन्दर की इमारतों और स्टॉलों की स्थापत्य कला पारम्परिक भारतीय शैली की है और हाट परिसर को पेड़ों, झाड़ियों और रंग-बिरंगे फूलों के पौधों के साथ आकर्षक रूप से सजाया गया है। एक स्थान पर इतनी अधिक सुविधाओं का होना यहाँ बार बार बुलाता है और मन को अपने में सम्मोह लेता है .


दिल्ली हाट दिल्ली की शोभा है जहाँ हर देसी विदेशी आना पसंद करता है ,तो कैसी लगी आपको दिल्ली हाट की सैर . अभी तक यदि आपने नहीं देखा है तो जरुर देखिये इस दिल्ली के सुन्दर स्थान को



Sunday, October 16, 2022

प्रीत की छाया

 


कल कमरे की

खुली खिड़की से 

चाँद मुस्कराता

 नज़र आया

खुल गई भूली बिसरी

यादो की पिटारी...

हवा ने जब

गालों को सहलाया,

उतरा नयनो में

 फ़िर कोई लम्हा

जीवन के

उदास तपते पल को

मिली जैसे "तरुवर की छाया.."


कांटे बने फूल फ़िर राह के ..

दिल फ़िर से क्यों भरमाया..?

हुई यह पदचाप फ़िर किसकी..?

दिल के आँगन में

जैसे गुलमोहर खिल आया..


कहा ...दिल ने कुछ तड़प कर

जो चाहा था ,वही तो पाया..!!

वक्त ने कहा मुस्करा कर...

कहाँ परिणाम तुम्हे समझ में आया?

तब तो रखा बंद

मन का हर झरोखा

आज फ़िर क्यों

गीत, प्रीत का गुनगुनाया?

भरे नैनों की बदरी बोली

छलक कर....

खोनी ही जब प्रीत तो....

फ़िर क्यों दिखती "प्रीत की छाया..!!! "

#रंजू #डायरी के पुराने पन्नो से

Wednesday, October 12, 2022

करवाचौथ और अमृता प्रीतम


 



मैं पल भर भी नही सोयी ,घड़ी भर भी नही सोयी 

और रात मेरी आँख से गुजरती रही 

मेरे इश्क के बदन में ,जाने कितनी सुइयां उतर गई हैं ..


कहीं उनका पार नही पड़ता 

आज धरती की छाया आई थी 

कुछ मुहं जुठाने को लायी थी 

और व्रत के रहस्य कहती रही 


तूने चरखे को नही छूना 

चक्की को नही छूना 

कहीं सुइयां निकालने की बारी न खो जाए .


पूरी नज़्म और रोचक करवाचौथ की बातें यहां इस चैनल पर सुनिए ,लाइक और सब्सक्राइब जरूर कीजिए।



करवाचौथ और अमृता प्रीतम

Sunday, October 09, 2022

डाकिया डाक लाया


 संदेशे तब और अब ......डाकिया डाक लाया


यूँ ही बैठे बैठे

याद आए कुछ बीते पल

और कुछ ....

भूले बिसरे किस्से सुहाने

क्या दिन थे वो भी जब ....

छोटी छोटी बातों के पल

दे जाते थे सुख कई अनजाने


दरवाज़े पर बैठ कर

वो घंटो गपियाना

डाकिये की साईकल की ट्रिन ट्रिन सुन

बैचेन दिल का बेताब हो जाना

इन्तजार करते कितने चेहरों के

रंग पढ़ते ही खत को बदल जाते थे

किसी का जन्म किसी की शादी

तो किसी के आने का संदेशा

वो "काग़ज़ के टुकड़े" दे जाते थे


पढ़ कर खतों की इबारतें

कई सपनों को सजाया जाता जाता था

सुख हो या दुख के पल

सब को सांझा अपनाया जाता था

कभी छिपा कर उसको किताबों में

कभी कोने में लटकती तार की कुण्डी से

अटकाया जाता था


जब भी उदास होता दिल

वो पुराने खत

महका लहका जाते थे

डाकिये को आते ही

सब अपने खत की पुकार लगाते थे


पर अब ....


डाकिया ,बना एक कहानी

रिश्तों पर भी पड़ा ठंडा पानी

अब हर सुख दुख का संदेशा

घर पर लगा फोन बता जाता है

रिश्तों में जम गयी बर्फ को

हर पल और सर्द सा कर जाता है

अब ना दिल भागता है

लफ़्ज़ों के सुंदर जहान में

बस "हाय ! हेलो ! की रस्म निभा कर

लगा जाता है अपने काम में ...







Tuesday, October 04, 2022

फायदे मखाने खाने के

 

मखाना ,फॉक्स नट ,foxnut बहुत ही फायदे मंद खाने की चीज है . इसको खाने के बहुत ही फायदे हैं . आइये जानते हैं क्या है यह और कैसे खाए जाते हैं . 



मखाना एक प्रकार के फाक्सनट के बीजों की लाई है। वैसे ही जैसे पापकार्न मक्का की लाई है। इसमें लगभग 12 प्रतिशत प्रोटीन होता है। मखाना बनाने के लिए इसके बीजों को फल से अलग कर धूप में सुखाते हैं। संग्रहण के दौरान नम बनाए रखने के लिए इन पर पानी छींटा जाता है। इसकी लाई की गुणवत्ता बीजों में उपस्थित नमी पर निर्भर करती है। धूप में सुखाने पर उनमें 25 प्रतिशत तक नमी बची रहती है। सूखे नट्स को लकड़ी के हथोड़ों से पीटा जाता है इस तरह गरी अलग होने पर बीज अच्छी तरह से सूखते हैं। सूखे बीजों को अलग-अलग श्रेणी में बांटने के लिए उन्हें चलनियों से छाना जाता है। बीज एक समान आकार के हों तो भूनते समय आसानी होती है। बड़े बीज अच्छी क्वालिटी के माने जाते हैं।बीजों को बड़े-बड़े लोहे के कढाई में सेंका जाता है। फिर इन्हें टेम्परिंग के लिए 45-72 घण्टों के लिए टोकरियों इस तरह इनका कठोर छिलका ढीला हो जाता है। बीजों को लाई में बदलना एक बहुत ही मेहनत का काम है . इनको  ठोस जगह पर रखकर लकड़ी के हथोड़ों से पीटा जाता है। इस तरह गर्म बीजों का कड़क खोल तेजी से फटता है और बीज फटकर लाई (मखाना) बन जाता है। बीजों के अंदर अत्यधिक गर्म वाष्प बनने और तेज दबाव से छिलका हटने से ऐसा होता है। जितने बीजों को सेका जाता है उनमें से केवल एक तिहाई ही मखाना बनते हैं।

लाई बनने पर उनकी पॉलिश और छंटाई की जाती है। पॉलिश करने पर मिले सफेद मखानों को उनके आकार के अनुसार दो-तीन श्रेणियों में छांट लिया जाता है। फिर उन्हें पोलीथीन की पर्त लगे गनी बैग में भर दिया जाता है। ये इतने हल्के होते हैं कि एक बोरे में मात्र 8-9 किलो मखाने समाते हैं।

मखाना एक हल्का-फुल्का स्नैक्स है जिसे हम सूखे मेवों में शामिल करते हैं। अगर इसे नियमित तौर पर सही तरीके से अपनी डाइट में शामिल किया जाए, तो इसके अगगिनत सेहत लाभ पाए जासकते हैं। जानिए इसके सेहत लाभ और सेवन करने की विधि - 


सेवन की विधि - अगर आप जल्द से जल्द मधुमेह को खत्म करना चाहते है और सेहत के अन्य लाभ पाना चाहते हैं, तो सुबह खाली पेट चार मखाने खाएं। इनका सेवन कुछ दिनों तक लगातार करें। 


1 आप मखाने के चार दानों का सेवन करके शुगर से हमेशा के लिए निजात पा सकते है। इसके सेवन से शरीर में इंसुलिन बनने लगता है और शुगर की मात्रा कम हो जाती है। फिर धीरे-धीरे शुगर रोग भी खत्म हो जाता है। 

 2 दिल के लिए फायदेमंद - मखाना केवल शुगर के मरीज के लिए ही नहीं बल्कि हार्ट अटैक जैसी गंभीर बीमारियों में भी फायदेमंद है। इनके सेवन से दिल स्वस्थ रहता है और पाचन क्रिया भी दुरूस्त रहती है। 


3 तनाव कम - मखाने के सेवन से तनाव दूर होता है और अनिद्रा की समस्या भी दूर रहती है। रात को सोने से पहले दूध के साथ मखानों का सेवन करें और खुद फर्क महसूस करें। 


4 जोड़ों का दर्द दूर - मखाने में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है। इनका सेवन जोड़ों के दर्द, गठिया जैसे मरीजों के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है। 


5 पाचन में सुधार - मखाना एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है जो सभी आयु वर्ग के लोगों को आसानी से पच जाता है। इसके अलावा फूल मखाने में एस्‍ट्रीजन गुण भी होते हैं जिससे यह दस्त से राहत देता है और भूख में सुधार करने के लिए मददगार है। 


6 किडनी को मजबूत - फूल मखाने में मीठा बहुत कम होने के कारण यह स्प्लीन को डिटॉक्‍सीफाइ करता है। किडनी को मजबूत बनाने और ब्‍लड को बेहतर रखने के लिए खानों का नियमित सेवन करें।


इसे  भारत कई छेत्र में " लावा " भी कहते हैं।तालाब, झील, दलदली क्षेत्र के शांत पानी में उगने वाला मखाना पोषक तत्वों से भरपुर एक जलीय उत्पाद है। इसको बंगाली में भी मखाना ही कहते हैं . मखाने की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसको कई तरीके से इस्तेमाल किया जा सकता है। मखाना को ड्राई फ्रूट्स के तौर पर भी उपयोग में ला सकते हैं और मखाने की सब्जी भी बनाई जा सकती है। इतना ही नहीं मखाने का खीर और मिष्ठान्न के रूप में भी आप प्रयोग में ला सकती हैं।मखाने को हल्के से बटर में में फ्राई कर लें फिर इसको सूप के साथ खाने से इसका स्वाद और पोषक तत्व बढ़ जाते हैं। 


मखाना को दूध में उबालकर इसमें किशमिश और बादाम डालकर खा सकते हैं।

 देसी घी में मखाना डालकर रोस्ट कर लें और इसमें काला नमक मिलाकर खाने से इसका जायका बढ़ जाता है 

यह बहुत ही फायदेमंद   है।

Wednesday, September 28, 2022

अक्षर जोड़ कर बना यूं शब्द संसार

 अक्षर अक्षर जोड़ के बना यूँ शब्द संसार ..


शब्द जो बोलते हैं

जब इंसान ने अपने विकास की यात्रा आरंभ की तो इस में भाषा का बहुत योगदान रहा | भाषा समझने के लिए वर्णमाला का होना जरुरी था क्यों कि यही वह सीढी है जिस पर चल कर भाषा अपना सफ़र तय करती है | वर्णमाला के इन अक्षरों के बनने का भी अपना एक इतिहास है .| .यह रोचक सफ़र शब्दों का कैसे शुरू हुआ आइये जानते हैं ...जब जब इंसान को किसी भी नयी आवश्यकता की जरूरत हुई ,उसने उसका आविष्कार किया और उसको अधिक से अधिक सुविधा जनक बनाया| २६ अक्षरों की वर्णमाला को भले ही अंग्रेजी वर्णमाला को रोमन वर्णमाला कहा जाए लेकिन रोमन लोगों ने इसको नहीं ईजाद किया था | उन्होंने सिर्फ लिखित भाषा को सुधार कर और इसको नए नए रूप में संवारा| हजारों वर्षों से कई देशों में यह अपने अपने ढंग से विकसित हुई और अभी भी हो रही है | वर्णमाला के अधिकतर अक्षर जानवरों और आकृतियों के प्राचीन चित्रों के प्रतिरूप ही है ..|


इसका इतिहास जानते हैं कि यह कैसे बनी आखिर | .३००० ईसा पूर्व में मिस्त्रवासियों ने कई चित्र और प्रतीक बनाए थे | हर चित्र एक अक्षर के आकार का है| इसको चित्रलिपि कहा जाता था लेकिन व्यापार करने लिए यह वर्णमाला बहुत धीमी गति की थी | खास तौर पर जो उस वक़्त विश्व के बड़े व्यपारी हुआ करते थे,१२०० इसा पूर्व के फिनिशियिंस के लिए | इस लिए उन्होंने उन अक्षरों को ही विकसित किया जिनमें प्रतीक से काम चल सकता था हर प्रतीक एक ध्वनी का प्रतिनिधितव करता था और कुछ शब्द मिल कर एक शब्द की ध्वनि बनाते थे| ...८०० इसा पूर्व में यूनानियों ने फिनिशिय्न्स की वर्णमाला को अपना लिया ,लेकिन फिर पाया कि इन में व्यंजन की ध्वनियां नहीं है .जबकि उन्हें अपनी भाषा में इसकी जरूरत थी | इसके बाद उन्होएँ १९ फ़िनिशियन अक्षर जोड़ लिए इस तरह २४ अक्षरों वाली वर्णमाला तैयार हुई |


११४ ईसवीं में रोम में लोगों ने वर्णमाला को व्यवस्थित किया बाद में इंग्लॅण्ड में नोमर्न लोगों नने इस वर्णमाला में जे ,वी और डबल्यू जैसे अक्षर जोड़े और इस तरह तैयार हुई वह नीवं जिस पर आज की अंग्रेजी वर्णमाला कई नीवं टिकी है


शब्दों का जादू यूँ ही अपने रंग में दिल पर असर कर जाता है ...पर अक्सर पहले चित्र जानवर आदि की आकृतियों से ही बनाए गए थे ...जैसे अंग्रेजी का केपिटल "क्यु" बन्दर का प्रतीक है पुराने चित्रों में इस" क्यु "को सिर कान और बाहों के साथ उकेरा गया है


सबसे छोटे शब्द यानी प्रश्नवाचक और विस्मयबोधक चिन्हों के बारे में १८६२ में फ्रांस में एक बड़े लेखक विकटर हयूगो का आभारी होना पड़ेगा हुआ यूँ कि उन्होंने अपना उपन्यास पूरा किया और छुट्टी पर चले गए लेकिन यह जानने को उत्सुक थे कि किताबे बिकती कैसे हैं ? साथ ही वह सबसे चिन्ह भी गढ़ना चाहते थे सो उन्होंने प्रकाशक को एक पत्र लिखा :?

प्रकाशक भी कुछ कम कल्पनाजीवी नहीं थे ,वह भी सबसे छोटा अक्सर बनाने का रिकॉर्ड लेखक हयूगो के साथ बनना चाहते थे सो उन्होंने भी जवाब में लिखा ... :!


और इसी सवाल जवाब के साथ चलते हुए वर्णमाला में सबसे छोटे अक्सर बने जिन्हें "चिन्ह "कहा गया ...


सबसे मजेदार बात यह है कि सबसे लम्बे वाक्य लिखने का श्री भी हयूगो को ही जाता है वह वाक्य भी उनके उपन्यास का है जिस में ८२३ अक्षर ,९३ अल्प विराम चिन्ह ,५१ अर्ध विराम ,और ४ डेश आये थे .लगभग तीन पन्नो का था यह वाक्य

अंडर ग्राउंड अंग्रेजी भाषा का एक मात्र ऐसा शब्द है जिसका आरम्भ और अंत यूएनडी अक्षरों से होता है


टैक्सी शब्द का उच्चारण भारतीय ,अंग्रेज ,फ्रांसीसी ,जर्मन ,स्वीडिश ,पुर्तगाली और डच के लोग समान रूप से करते हैं ..



इस तरह यूँ शुरू हुआ अक्षरो का सफ़र और अपनी बात हर तक पहुंचाने का माध्यम बन गया ..आज इन्हों अक्षर की बदौलत हम न जाने कितनी नयी बाते सीख पाते हैं ,बोल पाते हैं दुनिया को जान पाते हैं ..रोचक है न यह जानकारी

आपको कैसी लगी यह बताये तो :)

#रंजू भाटिया ..............