जब भी खाना बनाती हूं
तो सामने वाले घर में भी वो भी खाना बना रही होती है
आमने सामने की खिड़की से अक्सर एक दूसरे को देखते हैं हम
जानती नहीं मैं उसे
पर जैसे हमारी आंखें बात कर रही होती हैं
क्या बनाया आज? क्या उन्हें पसंद आएगा? क्या बच्चे खाएंगे?
फिर एक खामोशी ,फिर नजरों का मिलना और पूछना
क्यों परिवार होते हुए भी अकेले हैं हम?
आंखों में खालीपन क्यों है, इधर भी उधर भी?
आखिर किसको ढूंढा रहे हैं इस खिड़की से बाहर झंकते हुए हम?
इन्हीं सवालों के साथ खिड़की यहां भी बंद और वहां भी बंद
नीचे लिंक पर आप सुन भी सकते हैं
Written by my daughter megha sahgal
1 comment:
बहुत ही सुंदर
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