Saturday, October 29, 2022

दिल्ली हाट

हाट” नाम सुनते ही किसी गांव के मेला बाज़ार का दृश्य घूम जाता है , लोकल बाज़ार जिसमे ,स्थानीय चीजे ,वहां के ही लोकल लोंगो द्वारा बनायी हुई और खरीदते हुए खरीद दार मोल भाव करते हुए नज़र आते हैं ,” दिल्ली हाट” इसी प्रकार की एक जगह है ,आज आइये “दिल्ली हाट की सैर” करते हैं



 


दिल्ली हाट कहाँ कहाँ है ?

“दिल्ली हाट” सबसे पहले दिल्ली एम्स हॉस्पिटल के पास आई एन ऐ में २८ मार्च १९९४ में शुरू किया गया था . तब से अब तक तीन दिल्ली हाट खुल चुके हैं ,दूसरा प्रीतम पूरा में और तीसरा जनकपुरी में हैं .दिल्ली हाट की स्थापना का मुख्य उद्देश्य यह था कि बिचैलियों को हटाकर दस्तकारों को उनके उत्पाद का सीधा लाभ दिया जाए। दस्तकारों की माली हालत सुधारने के लिहाज़ से देश के कपड़ा मंत्रालय ने यह निर्णय लिया था। यहाँ देश के विभिन्न राज्यों के खान-पान को भी एक स्थान पर मुहैया कराने की पहल की गई है। अपने प्रदेश के अलावा अन्य प्रदेशों के व्यंजनों से भी लोग परिचित हों। दिल्ली हाट की पहचान ही यहाँ मिलने वाले खादी देशी उत्पादों और खाने वाले विविध व्यंजनों से बनी है। यहाँ आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम भी लोगों को आकर्षित करते रहे हैं। ‘दिल्ली हाट’ का बढ़ता आकर्षण यह है कि यहाँ देशी ग्राहकों के साथ-साथ विदेशी ग्राहक भी ख़रीदारी करते दिखते हैं। ये दिल्ली हाटें पूरे भारत के कुशल, प्रतिष्ठित और पंजीकृत शिल्पकारों की कलाओं और शिल्प भण्डार के लिये जाना जाती हैं।



यहाँ से आप क्या क्या खरीद सकते हैं ?

दिल्ली हाट से आप हथकरघा ,पॉटरी का सामान ,और दस्तकारी आदि का समान ले सकते हैं .बाजार को खरीददारों के लिये और सुविधाजनक बनाते हुये प्रथम दिल्ली हाट को प्रसाधन के साथ-साथ पूर्णतयः व्हील चेयर द्वारा सुलभ कर दिया गया है। डीसी हस्तशिल्प द्वारा पंजीकृत शिल्पकारों को ही इस जगह अपने कृतियों को प्रदर्शित करने की अनुमति है और उन्हे एक चक्रीय क्रम में 15 दिनों के एक छोटे से अन्तराल के लिये एक स्टॉल दे दी जाती है जिससे कि आगन्तुकों को अनोखी और गुणवत्तापरक वस्तुओं को देखने और खरीदने का अवसर मिलता है। इस सम्पूर्ण व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण शिल्पकारों द्वारा उनके पारम्परिक भारतीय लोककला का परिचय शहरी ग्राहकों से करवाना है। यहाँ पर प्रदर्शित और उपलब्ध कुछ उत्पादों में कलात्मक वस्त्र और जूते-चप्पल, सहायक सामग्री, रत्न, माणिक्य, खिलौने, सजावटी कलात्मक वस्तुयें, नक्काशीदार लकड़ी के सामान, धातु के सामान इत्यादि शामिल हैं।


खान पान की सुविधा

दिल्ली हाट में दिल्ली हाट में मिलने वाले स्वादिष्ट व्यंजन ‘दिल्ली हाट’ को ख़ास बनाते हैं। भारत के विभिन्न प्रांतों के व्यंजन की दुकानें यहाँ लगी हैं। 1994 में जब दिल्ली हाट की शुरुआत हुई थी तब देश के सभी पच्चीस राज्यों को यहाँ व्यंजन की दुकानें उपलब्ध करायी गई थीं ताकि यहाँ आने वाले लोग दूसरे प्रांतों के व्यंजनों का भी स्वाद ले सकें। भौगोलिक रूप से विविधताओं का देश तो हिन्दुस्तान है ही यहाँ के खान-पान में भी काफ़ी विविधता है।दिल्ली हाट में देश के सौ से ज़्यादा ख़ास व्यंजन उपलब्ध हैं। पंजाब के ‘मक्के दी रोटी सरसों दा साग’ हो, बंगाल के ‘माछेर-झोल’ और दक्षिण भारत के ‘इडली डोसा’ हो यहाँ सभी उपलब्ध हैं। यहाँ बिहार के मशहूर लिट्टी-चोखा भी मिलता है।यहाँ हर राज्य के खाने पीने के स्वाद ले सकते हैं ,सर्दी की धुप में तो यहाँ बैठने का आनंद ही और होता है .


यहाँ होने वाले प्रोग्राम

यहाँ विभिन्न राज्यों के सांस्कृतिक प्रोग्राम भी होते रहते हैं जो मन को मोह लेते हैं .दिल्‍ली हाट में पूरी साल तरह-तरह सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते रहते हैं। किसी राज्य विशेष की थीम पर भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रदर्शन होता है। दिल्ली हाट का होना सभी राज्यों की संस्कृतियों का मिलन होना है। दिल्‍ली हाट में ख़ास त्योहारों के मौके पर उसी तरह के माहौल और कार्यक्रमों का आयोजन कर लोगों को भावनात्मक रूप से जोड़ने की भी कोशिश रहती है।


रंग बिरंगा हाट

परिसर के अन्दर की इमारतों और स्टॉलों की स्थापत्य कला पारम्परिक भारतीय शैली की है और हाट परिसर को पेड़ों, झाड़ियों और रंग-बिरंगे फूलों के पौधों के साथ आकर्षक रूप से सजाया गया है। एक स्थान पर इतनी अधिक सुविधाओं का होना यहाँ बार बार बुलाता है और मन को अपने में सम्मोह लेता है .


दिल्ली हाट दिल्ली की शोभा है जहाँ हर देसी विदेशी आना पसंद करता है ,तो कैसी लगी आपको दिल्ली हाट की सैर . अभी तक यदि आपने नहीं देखा है तो जरुर देखिये इस दिल्ली के सुन्दर स्थान को



11 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी लिखी रचना सोमवार 31 अक्टूबर 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

आह हाट शब्द ज़मीन से जोड़ता है. महानगर में यह कथित छोटे दुकानदारों और छोटे कहे जाने वाले ग्राहकों बाज़ार कहा जा सकता है , हालांकि उल्लास व आकर्षण से बड़े लोग भी अछूते नहीं रहते. क्योंकि हाट में वे चीजें मिल जाती हैं जो बाज़ार में नहीं मिलतीं. में साप्ताहिक मेला जैसा होता है. मुझे याद है हमें मंगलवार का इन्तज़ार रहता था जब गांव में हाट लगती थी.

रचना दीक्षित said...

हाट शब्द का अपना ही आकर्षण है।दिल्ली हाट बहुत बार गयी हूं पर उसको पढ़ने का भी अपना अलग ही आनन्द है।🌷🌷

Onkar said...

पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा

Kamini Sinha said...

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (1-11-22} को "दीप जलते रहे"(चर्चा अंक-4598) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा

Amrita Tanmay said...

रोचक सैर।

रेणु said...

रोचक प्रस्तुति है रन्जू जी।हाट शब्द ही अपने आप में रोमांचक है।

प्रतिभा सक्सेना said...

हाट शब्द लोक-संस्कृति से जुड़े किसी आयोजन की ओर खींच ले जाता है जहाँ आमने-सामने वस्तुओं को जानने समझने और खरीदने का अवसर मिलता हो - इसका अपना ही एक आकर्षण है -चारों ओर चहपहल और जीवन्त वातावरण भी एक खूबी है इसकी.

PRAKRITI DARSHAN said...

रोचक

सधु चन्द्र said...

सुन्दर सफ़र सा

मन की वीणा said...

जानकारी युक्त सुंदर आलेख।
काफी रोचक तथ्य, ये दिल्ली ही की तरह हर बड़े शहर में लगे तो पूरा देश आनंद उठा सकता है।