Saturday, November 05, 2022

आहट


 धुंधलके साए 

धुंधला सा दिखता 

उस में अक्स 

और ,"एक आहट "

किसी नाम की भी 

सुनाई देती रही 

पर घना था शायद 

वक़्त का कोहरा 

हर अक्स उस धुंधलके में 

अपना वजूद खोता रहा 

कोहरे की ओट में 

कहराता दर्द 

बदलते मौसम की आस में 

 रंग बदलता रहा !!

#रंजू 


3 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (०७-११-२०२२ ) को 'नई- नई अनुभूतियों का उन्मेष हो रहा है'(चर्चा अंक-४६०५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

Onkar said...

बहुत ही सुन्दर रचना