होता है कुछ ऐसा भी ......
कवि निराला जी के बारे में एक घटना पढ़ रही थी कि ,वह एक दिन लीडर प्रेस से रोयल्टी के पैसे ले कर लौट रहे थे | उसी राह में महादेवी जी का घर भी पड़ता था |उन्होंने सोचा की चलो मिलते चलते हैं उनसे .|ठण्ड के दिन थे अभी कुछ दूर ही गए होंगे कि सड़क के किनारे एक बुढिया उन्हें दिखायी दी जो ठण्ड से कांप रही थी और याचक भाव से उनकी तरफ़ देख रही थी | उस पर दया आ गई उन्होंने उसको न सिर्फ़ अपनी रोयल्टी के मिले पैसे दे दिए बलिक अपना कोट भी उतार कर दे दिया ..., और महदेवी के घर चल दिए किंतु चार दिन बाद वह यही भूल गए कि कोट क्या हुआ | उस को ढूढते हुए वह महादेवी जी के घर पहुँच गए ,जहाँ जा कर उन्हें याद आया कि वह कोट तो उन्होंने दान कर दिया था |
पढ़ कर लगा कि इस तरह जो डूब कर लिखते हैं या प्रतिभाशाली लोग होते हैं ,वह इस तरह से चीजो को भूल क्यों जाते हैं ? क्या किसी सनक के अंतर्गत यह ऐसा करते हैं ? या इस कद्र डूबे हुए होते हैं अपने विचारों में कि आस पास का कुछ ध्यान ही नही रहता इन को ।विद्वान मन शास्त्री का यह कहना है कि जब व्यक्ति की अपनी सारी मानसिक चेतना एक ही जगह पर केंद्रित होती है वह उस सोच को तो जिस में डूबे होते हैं कामयाब कर लेते हैं पर अपने आस पास की सामान्य कामो में जीवन को अस्तव्यस्त कर लेते हैं जो की दूसरों की नज़र में किसी सुयोग्य व्यक्ति में होना चाहिए |
इसके उदाहरण जब मैंने देखे तो बहुत रोचक नतीजे सामने आए .,.जैसे की वाल्टर स्काट यूरोप के एक प्रसिद्ध कवि हुए हैं ,वह अक्सर अपनी ही लिखी कविताओं को महाकवि बायरन की मान लेते थे और बहुत ही प्यार से भावना से उनको सुनाते थे |उन्हें अपनी भूल का तब पता चलता था ,जब वह किताब में उनके नाम से प्रकशित हुई दिखायी जाती थी |
इसी तरह दार्शनिक कांट अपने ही विचारों में इस तरह से गुम हो जाते थे कि , सामने बैठे अपने मित्रों से और परिचितों से उनका नाम पूछना पड़ता था और जब वह अपने विचारों की लहर से बाहर आते तो उन्हें अपनी भूल का पता चलता और तब वह माफ़ी मांगते |
फ्रांस के साहित्यकार ड्यूमा ने बहुत लिखा है पर उनकी सनक बहुत अजीब थी वह उपन्यास हरे कागज पर ,कविताएं पीले कागज पर ,और नाटक लाल कागज पर लिखते थे | उन्हें नीली स्याही से चिढ थी अत जब भी लिखते किसी दूसरी स्याही से लिखते थे |
कवि शैली को विश्वयुद्ध की योजनायें बनाने और उनको लागू करने वालों से बहुत चिढ थी | वह लोगो को समझाने के लिए लंबे लंबे पत्र लिखते |पर उन्हें डाक में नही डालते, बलिक बोतल में बंद कर के टेम्स नदी में बहा देते और सोचते की जिन लोगो को उन्होंने यह लिखा है उन तक यह पहुँच जायेगा | इस तरह उन्होंने कई पत्र लिखे थे |
जेम्स बेकर एक जर्मन कवि थे वह ठण्ड के दिनों में खिड़की खोल कर लिखते थे कि , इस से उनके दिमाग की खिड़की भी खुली रहेगी और वह अच्छा लिख पायेंगे |
चार्ल्स डिकन्स को लिखते समय मुंह चलाने की और चबाने की आदत थी | पूछने पर कि आप यह अजीब अजीब मुहं क्यों बनाते लिखते वक्त ..,तो उसका जवाब था कि यह अचानक से हो जाता है वह जान बूझ कर ऐसा नही करते हैं |
बर्नाड शा को एक ही अक्षर से कविताएं लिखने की सनक थी |उन्होंने अनेकों कविताएं जो एल अक्षर से शुरू होती है उस से लिखी थी ..,पूछने पर वह बताते कि यह उनका शौक है |
तो आप सब भी प्रतिभशाली हैं ,खूब अच्छे अच्छे लेख कविताएं लिखते हैं .| सोचिये- सोचिये आप किसी आजीबो गरीब सनक के तो शिकार नही :) कुछ तो होगा न जो सब में अजीब होता है .. | जब मिल जुल कर हम एक दूसरे के अनुभव, कविता, लेख पढ़ते हैं तो यह क्यूँ नही ।:) वैसे मेरी सनक है बस जब दिल में आ गया तो लिखना ही है ....और जब दिल नहीं है तो नहीं लिखना ......चाहे कितना भी जरुरी क्यों नहीं हो ...मतलब मूड स्विंग्स :)जल्दी जल्दी लिखे आप सब में क्या अजीब बात है मुझे इन्तजार रहेगा आप सब की सनक को जानने
का ॥:)#रंजू भाटिया
2 comments:
उम्दा प्रस्तुति
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
greetings from malaysia
let's be friend
Post a Comment