
कविता में उतरे
यह एहसास
ज़िन्दगी की टूटी हुई
कांच की किरचें हैं
जिन्हें महसूस करके
मैं लफ्जों में ढाल देती हूँ
फ़िर सहजती हूँ
इन्ही दर्द के एहसासों को
सुबह अलसाई
ओस की बूंदों की तरह
अपनी बंद पलकों में
और अपने अस्तित्व को तलाशती हूँ
पर हर सुबह ...........
यह तलाश वही थम जाती है
सूरज की जगमगाती सी
एक उम्मीद की किरण
जब बिंदी सी ......
माथे पर चमक जाती है
एक आस ,जो खो गई है कहीं
वह रात आने तक
जीने का एक बहाना दे जाती है...