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Tuesday, August 10, 2010
बहाना
कविता में उतरे
यह एहसास
ज़िन्दगी की टूटी हुई
कांच की किरचें हैं
जिन्हें महसूस करके
मैं लफ्जों में ढाल देती हूँ
फ़िर सहजती हूँ
इन्ही दर्द के एहसासों को
सुबह अलसाई
ओस की बूंदों की तरह
अपनी बंद पलकों में
और अपने अस्तित्व को तलाशती हूँ
पर हर सुबह ...........
यह तलाश वही थम जाती है
सूरज की जगमगाती सी
एक उम्मीद की किरण
जब बिंदी सी ......
माथे पर चमक जाती है
एक आस ,जो खो गई है कहीं
वह रात आने तक
जीने का एक बहाना दे जाती है...
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23 comments:
वाह वाह्…………जीने को तो बहाना ही चाहिये होता है फिर चाहे एक आस हीक्यूँ ना हो……………बहुत सुन्दर्।
बहुत सुंदर रचना.
रामराम.
एक आस ,जो खो गई है कहीं
वह रात आने तक
जीने का एक बहाना दे जाती है...
दिल को छु गई ...
बहुत सही कहा है आपने ....
aap bahut achha likhtih......kishore ji sahi keh rhe the.
जब दर्द जीने का सहारा बनता है तब भी उम्मीद छूटती नहीं ..और वो जीने का बहाना बन जाती है ..सुन्दर भावाभिव्यक्ति ..
जीने के कई बहाने हैं...
कौन जाने नई सुबह क्या बहाना लेकर आये...
बहुत ही प्यारी रचना रंजन जी, किशोर जी ने आपके ब्लॉग का एड्रेस दिया और मैं चला आया.. बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप, किशोर जी ठीक ही कहते हैं...
मेरी हिन्दी खास अच्छी नहीं है. आपकी सीधी सरल भाषा बहुत अच्छी लगी.
आभार
मनोज खत्री
खूबसूरत शब्दों से बुनी रचना .
कविता में उतरे
यह एहसास
ज़िन्दगी की टूटी हुई
कांच की किरचें हैं
जिन्हें महसूस करके
मैं लफ्जों में ढाल देती हूँ
बहुत सुन्दर रंजना जी.
अति सुंदर रचना जी. धन्यवाद
एक आस ,जो खो गई है कहीं
वह रात आने तक
जीने का एक बहाना दे जाती है...
बहुत सही कहा। यही आस तो जीने को मजबूर करती है। अच्छी लगी रचना धन्यवाद्
bahut hee khoobsurat rachna ranju ji!
एक उम्मीद की किरण
जब बिंदी सी ......
माथे पर चमक जाती है
एक आस ,जो खो गई है कहीं
वह रात आने तक
जीने का एक बहाना दे जाती है...
kitni pyari baat kahi aapne.......taarif-e-kabil..:)
बहुत सुन्दर भाव हैं।
घुघूती बासूती
अब क्या कहूँ....
"लाजवाब" और "वाह" से काम च;लाना पड़ेगा ,क्योंकि और कोई शब्द दिमाग में बचा ही नहीं पढने के बाद...
यह आपकी सबसे सुंदर कविताओं में से एक होनी चाहिये.
कविता में उतरे
यह एहसास
ज़िन्दगी की टूटी हुई
कांच की किरचें हैं
बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति ...
सुंदर रचना,
धन्यवाद.
... सुन्दर रचना !!!
चलो जी किसी बहाने तो फिर चल पड़ती है न जिंदगी यही कुछ तो प्रेरणा मिल ही जाती है.
सुंदर रचना.
सुंदर रचना! स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!
सूरज की जगमगाती सी
एक उम्मीद की किरण
जब बिंदी सी ......
माथे पर चमक जाती है
एक आस ,जो खो गई है कहीं
वह रात आने तक
जीने का एक बहाना दे जाती है...
आस के बल पर ही तो जी रहे हैं सब । यह बात और है कि हर एक की आस अलग अलग है । आप तो हैं ही प्रेममयी ।
दर्द तो वैसे भी जीने का बहाना है ...
बहुत संवेदनशील रचना है ...
वह रात आने तक
जीने का एक बहाना दे जाती है...
जिन्दगी जीने के लिये बहाने भी जरूरी हैं
बेहद खूबसूरत रचना
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