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Tuesday, June 09, 2009
दिलो के फासले
यूँ ही जाने -अनजाने
महसूस होता है
रिश्तो की गर्मी
शीत की तरह
जम गई है ...
न जाने कहाँ गई
वह मिल बैठ कर
खाने की बातें
वह सोंधी सी
तेरी -मेरे ....
घर की सब्जी
रोटी की महक सी
मीठी मुस्कान ....
अब तो रिश्ते भी
शादी में सजे
बुफे सिस्टम से
सजे सजाये दिखते हैं
प्यार के दो मीठे बोल भी
जमी आइस क्रीम की तरह
धीरे से असर करते हैं
कहने वाले कहते हैं
कि घट रही धीरे धीरे
अब हर जगह की दूरी
पर क्या आपको नही लगता
कि दिलो के फासले अब
और महंगे .....
और बढ़ते जा रहे हैं??
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35 comments:
रिश्तों में आये बदलाव को बेहद संजीदगी से अपने शब्द दिये हैं। कई बार लगता है ये कैसा विकास है जब दिल एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं। सुंदर रचना।
रंजना जी रचना मन को छुनेवाली रचना। वाह। देवी नागरानी जी की याद आतीं हैं-
बाजार बन गए हैं चाहत वफा मुहब्बत।
रिश्ते तमाम आखिर सिक्कों में ढ़ल रहे हैं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
दिलो के फासले अब
और महंगे .....
और बढ़ते जा रहे हैं??..
सही है .सुंदर भावाभिव्यक्ति .
ab badlaav hi rahgaye hain
rishte kahan hain ?
think about it
रंजना जी
समय बदलने के साथ साथ रिश्ते और रिश्तो के माइने भी बदल रहे है . बहुत सुन्दर रचना जो काफी दिनों बाद पढ़ने मिल रही है . आभार.
रचना बहुत अच्छी है. यों ही कह रहे हैं - आजकल मोबाइल पेस मेकर का काम भी तो कर रहा है.
ye faasle banaye bhi to humi ne hain .....
आप ने सच लिखा अपनी इस कविता मै, आज के रिश्ते जेब देख कर किये जाते है,आज ना कोई भाई है, न बहिन, ना मां ना बाप , बस पेसा है सब का बाप
धन्यवाद
sach hai dilon ke faasle aur adhik ho gaye hain,jo hai wah bas dikhaawa adhik hai,bahut achhi rachna......
बिल्कुल सटीक और सच्ची बात. बहुत सुंदरता के साथ कही आपने.
रामराम.
सही लिखा है।आज के सभी रिश्ते पैसो पर अधारित है।अच्छी रचना है।बधाई।
"प्यार के दो मीठे बोल भी
जमी आइस क्रीम की तरह
धीरे से असर करते हैं"
सचमुच तो...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
हृदयस्पर्शी रचना
जिदंगी के जीने के रुल बदलते जा रहे है। अब रिश्ते नाते पैसो से तोले जाने लगे है। वैसे आपकी रचना हमेशा की तरह बेहतरीन और सुन्दर है।
कितनी सुन्दरता से रचा है परिवर्तन को...बहुत उम्दा रचना.
बहुत सटीक और दिल को छूती अभिव्यक्ति !
अब तो रिश्ते भी
शादी में सजे
बुफे सिस्टम से
सजे सजाये दिखते हैं
रिश्तों में सिमिट आयी जड़ता को क्या अनूठे अंदाज़ में लिखा है आपने..................
आज के परिपेक्ष में रिश्ते खोते जा रहे हैं.......... पैसे की चकाचोंध में.......... लाजवाब रचना है
हम्म्म्म् रिश्ते निभाने के साधन बढ़ रहे हैं, मगर जज़्ब कम हो रहा है..!
सिमट कर रह गए हैं सभी रिश्ते अपने खोलमें, रंजना जी..'..अब कहाँ वो तेरी मेरे घर की सब्जी की सोंधी महक...
वो भी समय था जब पडोसी किसी रिश्तेदार से कहीं अधिक हुआ करते थे..वो आत्मीयता..वो पहचानें सब कहाँ गुम हो रहे हैं ..पता नहीं..हर रिश्ते को तौलने लगे हैं लोग..हम सभी आत्मकेंद्रित हो गए हैं..शायद एक वजह यह भी है.बहुत ही अच्छी रचना लिखी है.
अभी हाल ही में डॉक्टर अनुराग की पोस्ट से यही विचार दिमाग में घूम रहे थे आपने फिर ताजा कर दिया ! बिलकुल सच्ची बात !
रिश्तों पर क्या बेहतरीन रचना कह दी है आपने...वाह रंजना जी वाह...
नीरज
sach kaha .....dilon ke fasle ab badh hi rahe hain kyunki ab unhein sikkon mein tolna jo shuru kar diya hai..........bahut achcha likha
waah! rishton ke upar sashakt rachna........
bahut hi accha likha hai aapne.......
अक्षय-मन
एकदम सटीक .. खूबसूरत लफ़्ज़ों में बेबाकी का अद्भुत संतुलन..
रंजना जी,
शब्दों के बहाने रिश्तों की खूब खबर ली है। बाजार, जो दीमक की तरह रिश्तों की बुनियाद को खोखला किये जा रहा है चिंतनीय है, और इसी चिंता को कवि होने के नाते उकेरा है अपनी कविता में दिल को छूते हुये अंदाज में।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आपकी रचना हमेशा की तरह बेहतरीन और सुन्दर है।
उम्र भर एक से नहीं रहते ....
इन रिश्तो में भी वक़्त आता है....
Ranjana ji,
aakhir is dard ki dava kya hai?
Rachna,bahut hi sundar hai.
अब तो रिश्ते भी
शादी में सजे
बुफे सिस्टम से
सजे सजाये दिखते हैं
yatharth ka roomani chitran. behad karib lagi kavita.
जैसे जैसे लोग तरक्की कर रहे हैं, यकीनन उनके बीच के फासले बढते जा रहे हैं। इन दूरियों को आपने कविता में समेटने का बहुत सुन्दर प्रयास किया है। बधाई।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कटु सत्य को बहुत ही प्रभावशाली अभिव्यक्ति दी है आपने रंजू दी.....
सिर्फ और सिर्फ सत्य....
मन को छूती और झकझोरती अतिसुन्दर रचना....
दिलो के फासले अब
और महंगे .....
और बढ़ते जा रहे हैं??..आज के समय की सच्चाई है......
Wah Ranjana Ji..Ekdam sach aur choo jane wali rachna..
kaafi don ke baad..mere hisab se aapki haal ki best kriti..
अब तो रिश्ते भी
शादी में सजे
बुफे सिस्टम से
सजे सजाये दिखते हैं
ranjana jee aapki rachana kaisi lagi mat puchhiye kyonki alfazon se pare hai.
कि दिलो के फासले अब
और महंगे .....
और बढ़ते जा रहे हैं??
bahut shandar bhav aur parikalpana. itne sunder abhivyakti ke liye badhai.
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