Tuesday, March 24, 2009

तुम ही तो हो ..


जीवन के हर पल में
बारिश की रिमझिम में ,
चहचहाते परिंदों के सुर में ,
सर्दी की गुनगुनी धूप में ,
हवाओं की मीठी गंध में
तुम ही तुम हो ....


दिल में बसी आकृति में
फूलों की सुगन्ध में ....
दीपक की टिम -टिम करती लौ में
मेरे इस फैले सपनो के आकाश में
बस तुम ही तुम हो .....

पर.....
नहीं दिखा पाती हूँ
तुम्हे वह रूप मैं तुम्हारा
जैसे संगम पर दिखती नहीं
सरस्वती की बहती धारा॥

सच तो यह है ....
ज़िंदगी की उलझनों में
मेरे दिल की हर तह में
बन के मंद बयार से
तुम यूं धीरे धीरे बहते हो
मिलते ही नजर से नजर
शब्दों के यह मौन स्वर
तुम ही तो हो जो ......
मेरी कविता में कहते हो !!

रंजना ( रंजू ) भाटिया

47 comments:

Prakash Badal said...

"मेरे दिल की हर तह में
बन के मंद बयार से
तुम यूं धीरे धीरे बहते हो"


वाह रंजना जी वाह!

संगीता पुरी said...

मुझे बहुत अच्‍छी लगी यह रचना ... सुंदर रचना के लिए बधाई।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

मुझे तो यह कविता बहुत सुंदर लगी

Arvind Mishra said...

वाह सुन्दर कविता !

Anonymous said...

बहुत मनभावन कविता है
काफी समय बाद पढ़ने को ऐसी रचना मिली है।

सुशील छौक्कर said...

अरे वाह क्या बात बगैर मौसम के बारिश हो रही है । लगता है ये दिल्ली के बादलों का असर है। खैर सुन्दर भाव लिए रचना बहुत सुन्दर है। कई बार शब्दों के मामले में मैं कंगाल हो जाता हूँ। और क्या कहूँ .....

ओम आर्य said...

कोई आज भी रह- रह कर हर्फों को सहलाता है
वो तुम hin तो हो

P.N. Subramanian said...

बड़े ही कोमल भावः हैं. सुन्दर रचना. आभार.

Vinay said...

सुन्दर काव्य!

---
चाँद, बादल और शाम

शेफाली पाण्डे said...

aapkee kalam to bahut khoobsurati se apnee baat kahtee hai....

अनिल कान्त said...

तुम ही तो हो ..........
दिल को राहत दे गया

Anonymous said...

मिलते ही नजर से नजर
शब्दों के यह मौन स्वर
तुम ही तो हो जो ......
मेरी कविता में कहते हो !!
waah behad khubsurat anubhuti.jaise snehpyar ki dhara dil se gujri ho,sunder.

विजय तिवारी " किसलय " said...

रंजना जी
कविता भावपूर्ण है. गहराई यहाँ भी है...
पर.....
नहीं दिखा पाती हूँ
तुम्हे वह रूप मैं तुम्हारा
जैसे संगम पर दिखती नहीं
सरस्वती की बहती धारा॥
- विजय

Alpana Verma said...

जैसे संगम पर दिखती नहीं
सरस्वती की बहती धारा॥

बहुत सुन्दर!
कोमल भावों को नरमी से सहलाती सी है आप की यह कविता भी.

*साथ दिया चित्र भी अद्भुत है!

राज भाटिय़ा said...

दिल में बसी आकृति में
फूलों की सुगन्ध में ....
दीपक की टिम -टिम करती लौ में
मेरे इस फैले सपनो के आकाश में
बस तुम ही तुम हो .....
बहुत ही सुंदर कविता.
धन्यवाद

श्यामल सुमन said...

पर.....
नहीं दिखा पाती हूँ
तुम्हे वह रूप मैं तुम्हारा
जैसे संगम पर दिखती नहीं
सरस्वती की बहती धारा॥

बहुत बढ़िया। भावपूर्ण।। कहते हैं कि-

मुहब्बत ही मुहब्बत जिन्दगी है गर कोई समझे।
वर्ना जिन्दगी तो मौत के साये में पलती है।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रंजना (रंजू) भाटिया जी
आप बहुत अच्छा लिख रही हैं।
भाव अच्छे है,
शब्द-चयन सुन्दर है।
कभी-कभी छंद-बद्ध भी लिखने का प्रयास करें।
शुभ-कामनाओं सहित।

seema gupta said...

मेरे दिल की हर तह में
बन के मंद बयार से
तुम यूं धीरे धीरे बहते हो"

' very beautiful and touching..'

Regards

Ashish Khandelwal said...

शब्दों के यह मौन स्वर
तुम ही तो हो जो ......
मेरी कविता में कहते हो !!

बहुत खूब.. कविता में यूँ आत्मसात हो जाना ही आपको सबसे अलग बनाता है..

Mohinder56 said...

बहुत बढिया है जी
निश्चय ही वह तो कण कण में समाया है बस देखने वाले की नजर चाहिये..

अभिषेक मिश्र said...

नहीं दिखा पाती हूँ
तुम्हे वह रूप मैं तुम्हारा
जैसे संगम पर दिखती नहीं
सरस्वती की बहती धारा॥

सुन्दर कविता.

Shailesh Jamloki said...

brilliant effort..

keep it up..

Regards
Shailesh

Shailesh Jamloki said...

brilliant effort..

keep it up..

Regards
Shailesh

mamta said...

शब्द और भाव दोनों ही बहुत सुंदर ।

इतनी सुंदर कविता कैसे लिख लेती है आप ।

डॉ .अनुराग said...

सच तो यह है ....
ज़िंदगी की उलझनों में
मेरे दिल की हर तह में
बन के मंद बयार से
तुम यूं धीरे धीरे बहते हो
मिलते ही नजर से नजर
शब्दों के यह मौन स्वर
तुम ही तो हो जो ......
मेरी कविता में कहते हो !!





shayad sabse behtareen panktiya yahi lagi mujhe.....

कंचन सिंह चौहान said...

is kavita me to chhayavaad ki chhaya hai...! sundar

रश्मि प्रभा... said...

bahut hi pyaari abhivyakti....

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुन्दर रचना......
मन को छूते हुवे गुज़रती है यह कविता....मुझे भी कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं

तुम ही तुम हो हर जगह,
जड़ में, चेतन में......
कभी द्रश्य हो कभी अद्रश्य............
कभी लघु, कभी दिव्य...........परमात्मा की तरह.......

Abhishek Ojha said...

तुम ही तुम मय संसार दिखा गयी ये रचना !

रंजना said...

वाह !! अतिसुन्दर भावाभिव्यक्ति !!

प्रेम समर्पण ऐसा ही होता है....प्रेम के उद्दात्त स्वरुप को बड़े ही कोमलता से आपने शब्दों में पिरो दिया..

मन बाँध लिया आपकी इस सुन्दर रचना ने...

बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी इस रचना के लिए आभार.

नीरज गोस्वामी said...

लाजवाब...रचना...वाह.
रंजना जी त्वाडा जवाब नहीं....
नीरज

अर्चना said...

tum hi to ho jo
meri kawita men kahate ho--
bahut sundar.

शोभा said...

bhav vibhor kar diya. bahut sundar likha hai ranju.

Unknown said...

सत्यं शिवं ....... सुंदर

शुभकामना

GANGA DHAR SHARMA said...

आपका ब्लाग वाकई बहुत अच्छा है. इसे नियमित रूप से अद्यतन करते रहिये . हार्दिक बधाई .

GANGA DHAR SHARMA said...

आपका ब्लाग वाकई बहुत अच्छा है. इसे नियमित रूप से अद्यतन करते रहिये . हार्दिक बधाई .

Mumukshh Ki Rachanain said...

बन के मंद बयार से
तुम यूं धीरे धीरे बहते हो
मिलते ही नजर से नजर
शब्दों के यह मौन स्वर

अति शानदार प्रस्तुति....................
बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी इस रचना के लिए आभार

चन्द्र मोहन गुप्त

AAKASH RAJ said...

सच तो यह है ....
ज़िंदगी की उलझनों में
मेरे दिल की हर तह में
बन के मंद बयार से
तुम यूं धीरे धीरे बहते हो
मिलते ही नजर से नजर
शब्दों के यह मौन स्वर
तुम ही तो हो जो ......
मेरी कविता में कहते हो !!

बहुत अच्छी भावना है .....
और उतनी ही अच्छी कविता आपकी .....

डा० अमर कुमार said...


इस रचना के लिये,
बस केवल एक शब्द...
कोमलता की सीमा पा ला खड़ा करती है यह उत्कृष्ट भावाव्यक्ति

Alpana Verma said...

रंजना जी यह भी कहना चाहूंगी कल जिस तरह आप किसी की भी 'टिप्पणी' से भावआवेश में नहीं आयीं और बडे ही संयम से आप ने काम लिया.उस की जितनी तारीफ़ की जाये कम है.
बस यह कहीये कि मैं तो आप की मुरीद हो गयी हूँ!

किरण राजपुरोहित नितिला said...

Ranu ji
sthir shabdo par jarti bhavo ki dhara madham madham.
Kiran Rajpurohit Nitila

kavi kulwant said...

bahut khoob!

Kavi Kulwant said...

wah bahut khoob!

Ashok Pandey said...

वाह रंजना जी, बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने। शब्‍दों में गजब का प्रवाह है।

कडुवासच said...

पर.....
नहीं दिखा पाती हूँ
तुम्हे वह रूप मैं तुम्हारा
जैसे संगम पर दिखती नहीं
सरस्वती की बहती धारा॥
... अत्यंत प्रसंशनीय व प्रभावशाली अभिव्यक्ति।

गौतम राजऋषि said...

बहुत सुंदर मैम.....

किरण राजपुरोहित नितिला said...

Ranjana ji
bahut sundar abhivyakti.
kiran