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Monday, May 05, 2008

कुछ यूं ही चंद लफ्ज़

राज़

यादों से भरे बादल को
वक्त की हवा उडाये जाती है
पीड़ा आंखो से बस यूं ही
बरस बरस जाती है
छा जाती है नर्म फूलों
सोई उदासी भी
सन्नाटे में धड़कन भीएक राज़ बता जाती है !!


आस की किरण

आस की किरण
बोली मुझसे कि
बसने दे
अपने दिल में
सजने दे आशियाना
मिटा दूँगी तमस
तेरे मन का
और भर दूँगी दरार
जिसमें से छन कर
मैं तेरे दिल तक पहुँच रही हूँ...

Sunday, August 26, 2007

एक धागा प्यार का


ज़िंदगी पल-पल करके ढलती रही......
बस अपने रंग रूप बदलती रही..........
और उन्ही बीतते पलों का हुआ कुछ ऐसा सिला........
कि मेरा मासूम दिल तुझसे जा मिला.........

इस दिल ने प्यार का ,भावनाओं का ,सपनो का एक जाल बुना.....
जिस का एक सिरा था मेरे पास दूसरा तेरे दिल से जा मिला.........

अब यदि तेरे दिल में भी प्यार सच्चा है......
तो पकड़ के खीच लो इस धागे को........
मैं ख़ुद ही खीची चली आऊंगी

यदि छोड़ दिया तूने इस धागे को......
तो मैं इस धागे में उलझ कर रह जाऊंगी .......
फिर तुम इस धागे को सुलझाना भी चाहोगे.......
तो भी सुलझा नही पाओगे.........
क्यों कि इस धागे की उलझन में
कई नये रिश्ते ,कई नयी गाँठे पाओगे........
करना चाहोगे तब प्यार मुझे पर कर नही पाओगे........

अभी मेरा प्यार सीधा, सच्चा, मासूम है........
नही निभेगा अगर तुमसे तो अपना सिरा भी मुझे लौटा दो......
मैं अपने प्यार के धागे को यूँ ही नही उलझने दूँगी......
तुमसे जुड़ी अपनी हसीं भावनाओं, जज़्बातों को यूँ ही नही खोने दूँगी...........

करती हू तुमसे वादा की.........
मेरे तरफ़ के सिरे में तेरे लिए यही लिपटा हुआ बस प्यार होगा........
तू चाहे वापस आए ना आए.........
इस धागे मैं मेरी अंतिम साँस तक बस तेरा नाम होगा..........

पर.........बस एक सवाल पूछती हूँ तुझसे....
तेरी तरफ़ जो सिरा है.......
क्या इस पर तब भी मेरा नाम होगा?
मेरे लिए यही हसीन जज़्बात,प्यार
और बाक़ी बची ज़िंदगी को , निभाने का साथ होगा.........?

Tuesday, August 21, 2007

प्रतीक्षा


छलकता रहा उनके अधरो पर एक प्यार का सागर
नज़रों में प्यास भर के हम बस उन्हे देखते रहे

तड़पता रहा दिल कोई फ़रियाद लिए मासूम सी
एक आचमन को बस लब मेरे तरसते ही रहे

खिल के बिखरती रही चाँदनी सब तरफ़ फिजा में
हम नजरों में उनकी प्यार की किरण तो तक़ते रहे

बूँदे स्वाती की सीपी में जा के मोती बनी
हम भी उनसे ऐसे मिलन को तरसते रहे

जलाते रहे दिल में प्यार की रोशनी
अपने तक़दीर के अंधेरो से यूँ लड़ते रहे

कई ख़वाब सजते रहे इन बंद पलको में मेरी
हम हर ख्वाब में उनसे मिलने को भटकते रहे

छलकता रहा उनके अधरो पर एक प्यार का सागर
और हम बस एक आचमन को तरसते ही रहे !!


रंजना

Sunday, March 25, 2007

ज़िंदगी भर जो होता साथ हमारा........


ज़िंदगी भर जो होता साथ हमारा
तो मेरा दिल यूँ ना होता बंजारा

यूँ ही राहो मैं ना भटकता यह मन
ना ही अंगो में दहकता यूँ फ्लाश वन

यूँ ही अपने आँसू हम ख़ुद ना पीते
प्यासी इन चाहतो के सपने यूँ धुआँ ना होते

ज़िंदगी भर का जो होता साथ हमारा
तो पथरीली राहो का सफ़र भी होता प्यारा

तब ज़िंदगी की सुलगती धूप भी चाँदनी लगती
हँसने वाली मुस्कारहट, यूँ रूलाने ना लगती

बस प्यार ही प्यार का होता नज़ारा
जीवन भर को मिल जाता जीने का सहारा

ज़िंदगी भर जो होता साथ हमारा
तो मेरा दिल यूँ ना होता बंजारा
- रंजू ----रंजना

Wednesday, March 21, 2007

एक छोटा सा ख्वाब


रात भर मेह टप-टप टपकता रहा
बूँद-बूँद तुम याद आते रहे
एक गीला सा ख़वाब मेरी आँखो में चलता रहा
काँपती रही मैं एक सूखे पत्ते की तरह
तेरे आगोश कि गर्मी पाने को दिल मचलता रहा
चाँद भी छिप गया कही बदली में जा के
मेरे दिल में तुझे पाने का सपना पलता रहा
था कुछ यह गीली रात का आलम
कि तुम साथ थे मेरे हर पल
फिर भी ना जाने क्यूं तुम्हे यह दिल तलाश करता रहा !!


ranju

Friday, February 16, 2007

मेरे ख्वाबो को परियों की कहानी कर दे ........


आज कुछ यूँ मेरी ज़िंदगी को ख़ुशनुमा कर दे
मैं बर्फ़ सी नदी हूँ इसे बहता पानी कर दे

मेरी आँखो ने देखे है कुछ हसीन से ख्वाब
आ मेरे ख्वाबो को परियों की कहानी कर दे

हर मोहब्बत का अंजाम हो "ताज़महल" यह ज़रूरी तो नही
तू अपने दिल के हर कोने को मेरा आशियाना कर दे..

भेजे हैं तूने जो महकते हुए से ख़त
उन्ही खतो के लफ़्ज़ो को अब मेरी ज़िंदगी की कहानी कर दे

फिर से दे-दे वही कुछ अपनी ज़िंदगी के फ़ुरसत के पल
मेरे दिल में फिर से वही प्रीत सुहानी भर दे

बीत ना जाए यह ज़िंदगी की शाम भी कही ख़ामोशी से
मेरे गीतो में अपनी सांसो की रवानी भर दे

आ फिर से मेरे ख्वाबो को परियों की कहानी कर दे
मैं बर्फ़ सी नदी हूँ मुझे बहता पानी कर दे !!

Friday, February 02, 2007

एक ख्वाब एक कहानी ...


मेरी आँखो में एक ख्वाब फिर से सज़ा दे
एक अंधेरा है मेरी ज़िंदगी की राहा, तू कोई आस का दीप जला दे

भटक रही हूँ मैं ज़िंदगी के वीरान सेहरा में
एक प्यास है दिल में कही ठहरी हुई ,तू आके वोह बुझा दे

एक भटकी हुई मुसाफ़िर हूँ मैं या हूँ कोई पगली पवन
आके मेरी राहो को तू अब तो मंज़िल से मिला दे..

कोई भूली हुई कहानी हूँ ,या एक बिसरा हुआ हूँ सपना
के तू अब मेरे ख्वाब को अब तो हक़ीकत बना दे.
ranju

Friday, January 26, 2007

एक गज़ल लिखने की कोशिश में.....


एक गज़ल लिखने की कोशिश में जो लफ्ज़ हमसे लिखा गया
वो उनका ही नाम था जो बार बार लिखा गया

माँगते रहे मेरे सूखे लब उनसे एक पनहा प्यार की
वो साया सा बन के मेरे पास से गुज़र गया

हमने चाहा की आज चुपके से चूम ले हम चाँद की पलको को
पर सुबह होते ही मेरा ख़वाब टूटे आईने सा टूट गया

रुके थे हम उनकी आँखो के समुंदर में डूबने के लिए
वो एक लहर सी बन के मेरे पास से गुज़र गया

ना जाने कितने ज़ख़्म खाए हमने उनकी मोहब्बत में
हर बार वो नये ज़ख़्म दे कर और दर्द दे के चला गया

अपनी हाथो की लक्रीरो में हमने ना पाया था नाम उनका
उनको पाने के लिए मेरा वजूद अपनी तक़दीर तक से लड़ गया


ranju