Monday, May 05, 2008

कुछ यूं ही चंद लफ्ज़

राज़

यादों से भरे बादल को
वक्त की हवा उडाये जाती है
पीड़ा आंखो से बस यूं ही
बरस बरस जाती है
छा जाती है नर्म फूलों
सोई उदासी भी
सन्नाटे में धड़कन भीएक राज़ बता जाती है !!


आस की किरण

आस की किरण
बोली मुझसे कि
बसने दे
अपने दिल में
सजने दे आशियाना
मिटा दूँगी तमस
तेरे मन का
और भर दूँगी दरार
जिसमें से छन कर
मैं तेरे दिल तक पहुँच रही हूँ...

8 comments:

डॉ .अनुराग said...

यादों से भरे बादल को
वक्त की हवा उडाये जाती है
पीड़ा आंखो से बस यूं ही
बरस बरस जाती है
छा जाती है नर्म फूलों......


बहुत खूब ....

Unknown said...

मिटा दूँगी तमस
तेरे मन का
और भर दूँगी दरार
जिसमें से छन कर
मैं तेरे दिल तक पहुँच रही हूँ...
behad khubsurat,aasha se bharpur
यादों से भरे बादल को
वक्त की हवा उडाये जाती है
पीड़ा आंखो से बस यूं ही
shuruwat hi itani sundar,man kare ye kavita khatam hi na ho bahut badhai.

Asha Joglekar said...

पीड़ा आंखो से बस यूं ही
बरस बरस जाती है
बेहद खूबसूरत बहुत कोमल भाव ।

Udan Tashtari said...

क्या बात है रंजना जी!! बहुत बेहतरीन!!!

अमिताभ मीत said...

बहुत खूबसूरत.

Abhishek Ojha said...

बहुत खूब ....

Mukesh Garg said...

ati sunder

Piyush (पश्चिम का सुरज) said...

बहुत बढ़िया