धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ
यह सब खेल तमाशा क्या है अब मालूम हुआ
हंसते फूल का चेहरा देखूं और भर आई आँख
अपने साथ यह किस्सा क्या है अब मालूम हुआ
हम बरसों के बाद भी उसको अब तक भूल न पाये
दिल से उसका रिश्ता क्या है अब मालूम हुआ
सेहरा सेहरा प्यासे भटके सारी उम्र जले
बादल का एक टुकडा क्या है अब मालूम हुआ
जगजीत सिंह
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Sunday, June 08, 2008
Monday, June 02, 2008
देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा
देखा जो आईना तो ,मुझे सोचना पड़ा
ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा
उसका जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा
अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा
मुझको था यह गुमान कि मुझी में है एक अदा
देखी तेरी अदा तो मुझे सोचना पड़ा
दुनिया समझ रही थी कि नाराज़ मुझसे हैं
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा
एक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा करार
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा
जगजीत सिंह चित्रा [सुनी जब यह खूबसूरत गजल तो मुझे सोचना पड़ा :) कि आप के साथ इसको शेयर करूँ ..आप किस सोच में डूब गए इसको सुन कर ..कैसी लगी आपको बताये :)]
ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा
उसका जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा
अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा
मुझको था यह गुमान कि मुझी में है एक अदा
देखी तेरी अदा तो मुझे सोचना पड़ा
दुनिया समझ रही थी कि नाराज़ मुझसे हैं
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा
एक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा करार
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा
जगजीत सिंह चित्रा [सुनी जब यह खूबसूरत गजल तो मुझे सोचना पड़ा :) कि आप के साथ इसको शेयर करूँ ..आप किस सोच में डूब गए इसको सुन कर ..कैसी लगी आपको बताये :)]
Sunday, May 25, 2008
तेरे आने की जब खबर महके
तेरे आने की जब खबर महके
तेरी खुशबू से सारा घर महके
शाम महके तेरे तस्वुर से
शाम के बाद फ़िर सहर महके
रात भर सोचता रहा तुझको
जहनों दिल मेरे रात भर महके
याद आए तो दिल मुरबर हो
दीद हो जाए तो नज़र महके
वो घड़ी दो घड़ी जहाँ बैठे
वह जमीन महके वह शजर महके [जगजीत सिंह की गायी एक और खूबसूरत गजल ]
तेरी खुशबू से सारा घर महके
शाम महके तेरे तस्वुर से
शाम के बाद फ़िर सहर महके
रात भर सोचता रहा तुझको
जहनों दिल मेरे रात भर महके
याद आए तो दिल मुरबर हो
दीद हो जाए तो नज़र महके
वो घड़ी दो घड़ी जहाँ बैठे
वह जमीन महके वह शजर महके [जगजीत सिंह की गायी एक और खूबसूरत गजल ]
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