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Sunday, June 08, 2008

धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ

धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ
यह सब खेल तमाशा क्या है अब मालूम हुआ

हंसते फूल का चेहरा देखूं और भर आई आँख
अपने साथ यह किस्सा क्या है अब मालूम हुआ

हम बरसों के बाद भी उसको अब तक भूल न पाये
दिल से उसका रिश्ता क्या है अब मालूम हुआ

सेहरा सेहरा प्यासे भटके सारी उम्र जले
बादल का एक टुकडा क्या है अब मालूम हुआ





जगजीत सिंह

Monday, June 02, 2008

देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा

देखा जो आईना तो ,मुझे सोचना पड़ा
ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा

उसका जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा
अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा

मुझको था यह गुमान कि मुझी में है एक अदा
देखी तेरी अदा तो मुझे सोचना पड़ा

दुनिया समझ रही थी कि नाराज़ मुझसे हैं
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा

एक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा करार
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा





जगजीत सिंह चित्रा [सुनी जब यह खूबसूरत गजल तो मुझे सोचना पड़ा :) कि आप के साथ इसको शेयर करूँ ..आप किस सोच में डूब गए इसको सुन कर ..कैसी लगी आपको बताये :)]