Sunday, June 08, 2008

धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ

धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ
यह सब खेल तमाशा क्या है अब मालूम हुआ

हंसते फूल का चेहरा देखूं और भर आई आँख
अपने साथ यह किस्सा क्या है अब मालूम हुआ

हम बरसों के बाद भी उसको अब तक भूल न पाये
दिल से उसका रिश्ता क्या है अब मालूम हुआ

सेहरा सेहरा प्यासे भटके सारी उम्र जले
बादल का एक टुकडा क्या है अब मालूम हुआ





जगजीत सिंह

9 comments:

Anonymous said...

wah kaha se dhundti apne ye nayab gazal,sundar,

Alpana Verma said...

bahut khubsurat ghazal hai aur aap ki pasand bahut achchee hai.

बालकिशन said...

वाह! वाह!
बहुत खूब!
बेहतरीन!
आभार.

सुशील छौक्कर said...

शुक्रिया गजल सुनवाने का पर गजल और आपके ब्लोग का सगीत दोनो एक साथ बज रहे है क्या करे।

dpkraj said...

धूप में पसीने से नहाते हुए
जब देखता हूं अपना साया
दिल भर आता है
वह जमीन पर गिरा होता है
मैं ढोकर चल रहा हूं आग में अपनी काया
कहीं राह में फूल की खुशबू आती है
मैं देखता हूं सड़क किनारे
कहीं फूलो का पेड़ है
जो बिखेर रहा है सुगंध की माया

रात में चांद की रोशनी में भी मेरे साथ
चलता आ रहा है मेरा साया
मैं उसे देख रहा हूं वह अब भी
जमीन पर गिरा हुआ है
शीतल पवन छू रही मेरे बदन को
पर उठ कर खड़ा नहीं होता मेरा साया
उसे कभी कभी ही देख पाता हूं
अपने ख्यालों में ही गुम हो जाता हूं
खामोश रहता है मेरा साया

कई लोग मिले इस राह पर
बिछड़ गये अपनी मंजिल आते ही
दिल में बसा रहा उनका साया
चंद मुलाकातों में रिश्ता गहरा होता लगा
पर जो बिछड़े तो फिर
उनका चेहरा कभी नजर नहीं आया
तन्हाई में जब खड़ा होकर
इधर-उधर देखता हूं
बस नजर आता है अपना साया
........................

आपकी प्रस्तुत बहुत अच्छी लगी। उस मेरे मन में यह चंद शब्द आये जो व्यक्त कर रहा हूं
दीपक भारतदीप

समय चक्र said...

गजल सुनवाने का शुक्रिया .

Udan Tashtari said...

आभार इसे सुनवाने का. आपके पास भी भंडार है जी. जारी रहिये,.

डॉ .अनुराग said...

काम नही करने देंगी क्या......?

mamta said...

बेहद खूबसूरत गजल।