Monday, June 02, 2008

देखा जो आईना तो मुझे सोचना पड़ा

देखा जो आईना तो ,मुझे सोचना पड़ा
ख़ुद से न मिल सका तो मुझे सोचना पड़ा

उसका जो ख़त मिला तो मुझे सोचना पड़ा
अपना सा वो लगा तो मुझे सोचना पड़ा

मुझको था यह गुमान कि मुझी में है एक अदा
देखी तेरी अदा तो मुझे सोचना पड़ा

दुनिया समझ रही थी कि नाराज़ मुझसे हैं
लेकिन वो जब मिला तो मुझे सोचना पड़ा

एक दिन वो मेरे ऐब गिनाने लगा करार
जब ख़ुद ही थक गया तो मुझे सोचना पड़ा





जगजीत सिंह चित्रा [सुनी जब यह खूबसूरत गजल तो मुझे सोचना पड़ा :) कि आप के साथ इसको शेयर करूँ ..आप किस सोच में डूब गए इसको सुन कर ..कैसी लगी आपको बताये :)]

8 comments:

डॉ .अनुराग said...

ham bas sunkar maja le rahe hai...

Anonymous said...

behad khubsurat gazal,anand aa gaya

Udan Tashtari said...

आभार इसे शेयर करने का.

बालकिशन said...

इसे पेश करने के लिए आभार.
उम्दा चयन.
वाह
वाह

rakhshanda said...

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है, खूबसूरत आवाज़ ने चार चाँद लगा दिए .....थैंक्स रंजू जी

शोभा said...

रंजू जी
इतनी प्यारी गज़ल सुनवाने के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Satish Saxena said...

बहुत सुंदर !

Manish Kumar said...

मुझे भी बेहद पसंद है ये ग़ज़ल..