Wednesday, February 27, 2013

कुछ मेरी कलम से ..कुछ आपकी कलम तक :) 4

 कुछ मेरी कलम से ..संग्रह ....उन दोस्तों के पास भी गया ..जिनसे सिर्फ कुछ समय पहले फेसबुक के जरिये जाना कुछ नमस्ते सी रस्मी बात चीत ..पर संग्रह पढ़ कर उन्होंने जो स्नेह दिया वह अनमोल है मेरे लिए ....जैसे जैसे यह सन्देश मेरे पास आ रहे   है ..वैसे वैसे लगता है की लिखना सार्थक हुआ है ...
 
 अरविन्द विश्वकर्मा की कलम से .....
आपकी काव्यानुभूतियो को पढ़कर मन प्रफुल्लित हो उठा जितनी बार पढ़ता हूँ उससें छुपे गहरे निहितार्थ आँखो में पूनम की रोशनी की तरह उजाला भर देते हैं मन में..े जीवन प्रकृति के हर आयाम और हर रंग को आपनी कविताओ में सुलगते ,तपते,मंजते और मचलते हुआ पाया ..
कभी कल्पनाओ के पर लगाकर ,कस्तूरी गंध सी,मन मे गुरूत्वाकर्षण उत्पन्नकरती हुई,जिंदगी कब इतने करीब आई ,सें भी साक्षात्कार करा देती हैं..
तेरे मेरे बीच का फासला ,वक्त का काँटा और फूल पलाश के ,जमी हुई घुटन ,उलझी गाँठे,विश्वास ,और फिर काँच की दीवार ..यकीनन बेहद सुंदर रचनाये हैं, जो आपके लेखन को एक सुनहरे कीर्ति स्तम्भ पर ले जाके खड़ा कर देती हैं..
बहुत ही कम समय मिल पाया आपके संग्रह को पढ़ने का पर एक एक शब्द और पंक्ति अपने आप में अदभुत है ..
 
शुक्रिया अरविन्द जी ...आपका यह स्नेह बहुत अभिभूत कर गया .....
 
ऐसे ही एक शख्स है ओमप्रकाश नमन जी ..इनका ब्लॉग अभी कुछ दिन पहले ही पढ़ा है बहुत अच्छा लिखते हैं ....इनकी कलम से कुछ शब्द यूँ स्नेह बरसा गए ....
 
आदरणीया रंजू जी,
                          नमस्कार!

     आपका काव्य संग्रह 'कुछ मेरी कलम से' पढ़ रहा हूँ। आपकी कवितायेँ मेरे ह्रदय के काफी नज़दीक हैं। जितना पढ़ा है उससे लगता है इस काव्य संग्रह की लेखिका के साथ-साथ, नायिका भी आप ही हैं। रंजू का रंज मानो  तैल चित्र सा कैनवास पर उतर आया है।
      इस प्यार ,इस दर्द की सशक्त अभिव्यक्ति के लिए आपको प्रणाम ! अभी पढ़ना शुरू किया है , पढ़ते पढ़ते आप तक भावनाएं पहुंचाता रहूँगा ..  

ये वक्त की साजिश है तनहा है चाँद मेरा 
वो वक्त की साजिश थी,था हर तरफ अँधेरा।
जो और की चाहत था, वो हो गया हमारा 
हम जिसको चाहते थे वो हो सका न मेरा।
          यही दर्द अक्सर संबंधो में मिलता  है ...
 सही कहा आपने नमन जी ......दर्द ही अपनी बात लफ़्ज़ों में कह जाता है .....शुक्रिया आपका तहे दिल से ..
इन्तजार है मुझे आपके कहे का ..:) कुछ मेरी कलम से ..कुछ आपकी कलम तक :)

Monday, February 25, 2013

कुछ दोस्तों की कलम से...3

कुछ शब्द बुने और वह संग्रह का बने हिस्सा कुछ मेरी कलम से के ....और वह शब्द लोगो के दिल पर दस्तक कुछ इस तरह से देते रहे की उनकी गूंज मुझ तक एक दुआ बन कर आ रही है ...हर शब्द मेरी आँखे नम कर देता है और मैं बस शुक्रिया ..तहे दिल से शुक्रिया ही कह पाती हूँ सिर्फ ...

अशोक जेरथ ...बहुत ही स्नेहिल व्यक्तित्व ..जब से इन्होने मेरे लिखे पर कहना शुरू किया वह मुझ तक ज़िन्दगी की गहरे समुन्द्र में एक लाईट हाउस की तरह रास्ता दिखा जाता है ...न जाने कौन से जन्म के कर्जे होते हैं जो हम यूँ एक दूसरे से मिलते भी नहीं पर अजनबी भी नहीं हो पाते ..और बेझिझक अपनी बात कह जाते हैं ..अशोक जी वही है आदरणीय ,पूजनीय है मेरे लिए ...उन्होंने कुछ मेरी कलम से ...संग्रह पर जो अपनी कलम से कहा ...वह सिलसिला है खुद ही एक दुआ का ..

बचपन में टोबे के किनारे बैठे बच्चे खामोश तालाब में पत्थर फैंका करते थे ... एक अकेली आवाज़ होती थी ... गुडुम ... बस उसी आवाज़ जैसी खुछ आपकी कवितायें सुनी ...

पुरानी ' गुडुम ' से नया परिचय हुआ ... धन्यवाद ...

रंजू ...



रात बाल्टी के ऊपर नल ज़रा सा खुला रह गया ... कविताओं की बूँदें गिरती रहीं ... अनवरत ... नाम मिल गया ... कुछ मेरी कलम ... हर दिल में से निकली इन कविताओं को एक कवियत्री  का नाम मिला ... रंजू भाटिया ...

कुछ कवितायें घाटी की कोयल कीउस गूँज जैसी भी है जिनकी आवाज़ नहीं केवल गूँज सुनाई देती है ... मसलन ... ' तेरे ख्यालों में हम ' ... न सुने उसकी लौटती सी गडमड हुई गूँज सुने ... दूर से आती गूँज मात्र ... जो नक्षत्रों से टकरा कर उनको भी लिवा ला रही हो ... आपने क्या ऐसी ही लिखी थीं ये कवितायें ... रंजू ...

हमने कुछ ऐसी कहानिया इससे पहले भी पढ़ी है ... रेखा भुवन , या रायना मिशा के चले जाने के बाद केलेंडर के चित्र देर तक दीवारों पर लटके हवा में फडफडा कर अपने होने का एहसास कराते रहे ...

दूर जाता हुआ दरियाई जहाज़ जाते जाते दीवार की लटकी तस्वीर हो जाए ... और बस हुआ रहे ... हमने किसी को एक बार एक कदम उठाते देखा था ... पैर आज भी हवा में उठा नज़र आता है लौट कर ज़मीं पर नहीं आया ... आप ऐसी कवितायें लिखने में माहिर हैं ...

पकड़ ली न आपकी खूबी ... !
 


रंजू ...

एक गहरा सा ऊदा ऊदा सा एहसास हर बयान में से बाहर आ चहलकदमी करने लगता है ... क्या मन इसी रंग का है ... क्योंकि बात बनाई हुई नहीं लगती ... सुच्ची लगती है ... कुछ बातें खामोश होती हैं और कुछ खामोश करती रहती हैं और कुछ दूसरी खामोश कर जाती है ...

कभी कभी ऐसा भी लगता है जैसे ओझल हुआ जेट धुंए की लंबी सी ट्रेल छोड़ चला गया है ... क्या किसी कविता की लंबी सी पूंछ भी है ... जैसी धूमकेतु की होती है... क्या एक निश्चित अवधि के बाद कोई कविता फिरसे अपनी याद कराती लौट आएगी ...

पढ़ रहे हैं ... सोच रहे हैं ... नहीं ... महसूस कर रहे हैं ...अशोक जेरथ


इस के बाद कुछ खुद कहने को नहीं रह जाता ..आँखे डबडबा जाती हैं और सर नतमस्तक हो जाता है ...खुद बहुत ही अच्छा लिखते हैं अशोक जी ..उनका लिखा गहराई में डूबा हुआ होता है और जब उन्होंने कुछ मेरी कलम से के बारे में अपनी कलम से कहा तो ....बस अब कुछ बाकी रहा ही नहीं कहने को ..शुक्रिया शुक्रिया आपका आशोक जी तहे दिल से ...........:)  

Friday, February 22, 2013

लफ्ज़ मेरे बोलते हैं दोस्तों की जुबान से:)

लफ्ज़ मेरे बोलते हैं दोस्तों की जुबान से ...साया संग्रह जब पब्लिश हुआ था तब भी लोगों का स्नेह बहुत मिला था जो साया ब्लॉग में पोस्ट किया ...अब जैसे जैसे कुछ मेरी  कलम से पहुँच रहा है सबके पास लोगो का कहा लिखा इस तरह से दिल को छु रहा है कि  सही में इस सुन्दर एहसास को जैसे दिल में संजो कर रख लेना चाहती हूँ ......पिछली  कड़ी में कुछ दोस्तों की कलम से कुछ बातें थी ...इस कड़ी को कुछ और दोस्तों की कलम से आगे बढ़ाते हैं ...

नेहा गर्ग ..मुझे बुक फेयर में पहली बार मिली ...साइन करवा के मुझसे यह संग्रह लिया ..और बाद में बहुत प्यार से इनसे चेट पर बातें जारी रही कुछ ...संग्रह इनके हाथ में .......... इनकी सहेली .मम्मी के पढने के बाद आया और उसका उलहना यह बहुत मीठे शब्दों में करती रही ...अजनबी कभी नहीं लगी मुझे यह दिल के बहुत करीब लगी :) जब उनकी बारी आई इस संग्रह को पढने की तो उनका कहना पहली कुछ कविताओं को पढ़ कर यह रहा ....

रंजू भाटिया जी की कविता पढ़ी "कहा-सुना".....कविता की ये कहा-सुना वाली विधा मुझे बड़ी पसंद आई......कहा उसने सुना दिल ने, कहा मैंने सुना उसने .......वरना तो ज्यादातर कविताओं में सब कहते ही है..सुनने वाला कविता में नहीं होता.....

सन्नी कुमार तिवारी अविनाश  ..फेसबुक से मिले एक छोटे भाई ..देश से बहुत  स्नेह हैं इन्हें ..अधिकतर पोस्ट इनकी आज के हालत को ले कर होती है ...मुझे बहुत अच्छा लगता है इस तरह से युवा पीढ़ी का जागरूक होना अपने आज कल के हालत के प्रति ..लगता है कि  देश में अभी भी कुछ बदलने की उम्मीद बाकी है ..संग्रह पर आये इनके कुछ विचार इस तरह से हैं ....

शुक्रिया सन्नी :)

एक दिन
तुमने बातों-बातों मेँ बताया था कि
तुम्हे बचपन से शौक था
खुद के बनाए
मिट्टी के खिलौनों से खेलना


॰रंजू भाटिया


रंजू भाटिया जी की ये किताब मैने पढ़ा,
दिल खुश हो गया पूरे 111 रचनाओं का अनूठा संग्रह।

जिन दोस्तो को ये पुस्तक पढ़ने का मौका मिले,

जरूर पढ़े ,,,,,,,,,,,,,,,,,
मधु गुलाटी ...मधु इसकी कई बाते मुझे अपने जीवन में बहुत प्रेरणा देती है ...ज़िन्दगी मुश्किलें देती हैं पर हार के बैठने वालों से यह नहीं है ...मेरे दिल के यह बहुत करीब है और मेरी पहली पाठक भी ....मेरी हर रचना को बहुत दिल से पढ़ती है और अपने विचार देती है ..दूसरा संग्रह जल्दी पब्लिश करवाऊं यह इसी की दिली इच्छा थी ..और हर वक़्त मुझे उस के लिए प्रोत्साहित करती रही है ..:)
उस की कलम से यह संग्रह पढ़ कर कुछ शब्द इस तरह से निकले
`कुछ मेरी कलम से` मेरे हाथ में है ...मैं  बहुत खुश हूँ ...तुम्हारी इतनी कविताये पढने  को मिलेंगी . पहली कविता `कहा सुना` ही अंतरमन तक प्रवेश कर गई `कहा उसने मत रुको ठहरा हुआ स्थिर पानी आखिर सड़ जाता हे .........जवाब अभी तक नदारद हे` ...सच में कहने से सुनने तक के सफ़र में इतने पास होने पर भी बहुत कुछ बदल जाता है  अपनी भावनाओ के हिसाब से . शौक कविता की पंक्तिया `आज भी तुम्हारा वही  खेल जारी हे बस खेलने और खिलोनो के वजूद बदल गए हे` बहुत सुंदर हे . सच में तुम दिल की गहरी परतो से लिखती हो तो कविता दिल को छु जाती है .....शुक्रिया मधु .....:)
नीलम चावला ..इनका लिखा हुआ अक्सर मेरे दिल के बहुत करीब होता है ...स्त्री मन की सहज बाते इनकी कलम से खूब सच ब्यान करती है ....कुछ मेरी कलम से संग्रह इन्होने ऑनलाइन मंगवाया और मिलते ही अपनी बात कुछ इस तरह से कही ...:)
क्या कहूँ... सीधे यह  लिख दूँ  कि  आपकी किताब अब मेरे हाथो में है., या लिखूं कि  किताब मुझे मिली थोड़ी देर में ,मगर मैंने   इसे ज़्यादा से ज़्यादा पढ़ने की कोशिश की है. वक़्त मुझे काटता रहा है कामो के बीच ,मगर मैंने  भी वक़्त से नज़र बचाकर उसी की उस से चोरी कर ली और बहुत कुछ पढ़ लिया , थोड़े थोड़े चुराए हुई चिंदियो जैसे वक़्त मैं ... खेर ...

मुझे ये कहना है "आप दिल को बहुत खूब टटोलना जानती है
जानती है कि  दिल की बात कैसे रखी जाए , आपने ज़िंदगी के रंग को हर एक पन्ने पर यूँ  उडेल दिया जैसे कोई साँस ले रहा है बिना जिस्म के..."


पढ़ रही हूँ
ज़िंदगी की किताब
आहिस्ता आहिस्ता
वर्क-दर-वर्क
पन्ना-दर पन्ना

लफ्ज़-बा -लफ्ज़...

हर एक बात दिल को छूती हुई...
हर एक बात जैसे बस दिल की

शुक्रिया आपके इस किताब के लिए , बस वाह!
 
शुक्रिया आप सभी दोस्तों का ...यह कड़ी यूँ ही चलती रहे बस यही दुआ करें :) और इसको पढ़ कर यदि आप भी चाहे  की यह संग्रह आपके भी रहे तो आप इन्हें ऑनलाइन या मुझसे सम्पर्क कर सकते हैं :) शुक्रिया 

Wednesday, February 20, 2013

कुछ दोस्तों की कलम से ..1

कुछ मेरी कलम से संग्रह पढ़ कर आये हुए विचार जो मन को अभिभूत कर जाते हैं ...उन्हें यहाँ बांटना बहुत ही सुखद अनुभव है मेरे लिए ...आज की इस कड़ी में कुछ दोस्तों की कलम से आये विचार ..यह सिलसिला यूँ ही चलता रहे ...यही दुआ है

 शरद चन्द्र गौड़ जी से मुलाकात और उनका पहली प्रति लेना ...और फिर कुछ मेरी कलम से पर उनके विचार .संजो के रखने लायक है ...कभी उनसे मिलना नहीं हुआ था पर उनका लिखा कई बार पढ़ा है ..आभासी मित्र जब रूबरू होते हैं तो यक़ीनन बहुत अच्छा लगता है .........

पुस्तक मेले के मेले में मिले मित्र ..शरद जी .राजीव रंजन जी ..मैं और हिन्दयुग्म प्रकाशन के प्रबन्धक अंजनी पाठक
 विश्व  पुस्तक मेले से बहुत सी किताबे खरीदी, किताबों के लिए एक अलग बेग ही खरीदना पड़ गया। आज मैं जिक्र कर रहा हूं हिन्द युग्म प्रकाषन से प्रकाषित Ranju Bhatia रंजू भाटिया जी के कविता संग्रह ‘‘कुछ मेरी कलम से’’ का- ओम निष्चल जी के शब्दों में ‘‘कुछ मेरी कलम से’’ कविता संग्रह स्त्री के अंतःकरण का आईना है। कविता संग्रह में अधिकांष प्रेम कविताएं कविताएं हैं, उनकी कविताओं में एक दर्द का अहसास एवं एक अंजानी सी पीड़ा है जो उनकी कविताओं को पढ़ते हुए महादेवी वर्मा की याद जरूर दिलाती है।
कविता संग्रह- कुछ मेरी कलम से
प्रकाषक- हिन्द युग्म
1 जिया सराय , हौजखास, नई दिल्ली-100032
मूल्य- रू 150/-

शुक्रिया शरद जी :)

नीलू नीलम शैलेश भारतवासी हिन्द युग्म प्रकाशन और मैं :)

 नीलू नीलम जिनसे फेसबुक पर अक्सर मुलाकात होती थी ,उनके लिखे लफ़्ज़ों से भी परिचय था मेरा ...और मिलने पर इसी वजह से लगा की बहुत बार पहले भी मुलाक़ात हो चुकी हैं उनसे मेरी ..जबकि मिलना पहली बार हुआ था ..बहुत सहज सिंपल नीलू ..बहुत ही प्यारी लगीं मुझे वो ..उन्होंने भी वहीँ कुछ मेरी कलम से संग्रह की प्रति ली ..और पढ़ के अपने विचार कुछ इस तरह से दिए ..
 Hiii Ranju ji..
kaisi hain ?
mujhe to aapko tab se hi padhna achha lagta tha jab main likhna seekh rahi thi.. hamesha aapki rachnayo'n se prabhavit hoti rahi hoon.. aapko maloom hi nahin hoga main 5 saal se aapki bahut badi fan hoon.aur tab socha karti thi ki kya kabhi aapse mulaqaat ho paayegi, kya kabhi aapse baat kar payungi, aur dekhiye jahan chaah wahan raah mil hi gayi mujhe..:)
. aap kamaal likhti hain..
ek ghunt..
saje hue rishte,
kya pata,
sulagte pal,
tanhayi,
uljhi gaanthe.
jeene ki vajah,..
sab ek se badhkar ek likhi hain aapne.
aur ye tareef nahin satya hai...........@नीलू नीलम .......यही वह स्नेह है आप सबका जो दिल को छु लेता है :) शुक्रिया नीलू :)

वंदना अवस्थी दुबे के साथ लखनऊ में हुई मुलाकात की याद :)

वंदना अवस्थी दुबे ..पहले ही दिन से कभी अजनबी नहीं लगी मुझे ..कुछ लोग होते है जिनसे ख़ास रिश्ता जुड़ जाता है ..यह उन्ही में से हैं :).लखनऊ में पहली बार मुलाकात हुई तस्लीम परिकल्पना के दौरान और यह स्नेह बंधन और भी अटूट हो गया ...उनके विचार कुछ मेरी कलम से संग्रह पर ...

रंजू (Ranju Bhatia) की किताब " कुछ मेरी कलम से" मेरे हाथ में है. मुझसे पहले मेरी बड़ी ननद जी Kalpana दीदी ने इसे पढ डाला और शाम को न केवल तारीफ़ की बल्कि दो कवितायें- आइना और कठपुतली भी सुना दीं. ये लेखन की खूबी है जो पाठक को कविताएं याद रखने पर मजबूर कर गयी...
अभी किताब पढनी शुरु की, और पहली कविता ही अचम्भित कर गयी. आप भी देखें-
कहा मैने
वर्षा की पहली बूंदे
सिहरन भर देती हैं
रोम-रोम में
सुना उसने
इस टपकती छत को
तेज़ बारिश से पहले ही
जोड़ना होगा.
अशेष शुभकामनायें रंजू...आपने किताब न ली हो तो तत्काल ऑर्डर करें :)


आप सब के भी विचारों का इन्तजार है मुझे..आप यह संग्रह  ऑनलाइन ऑर्डर कर के ले सकते हैं और अपने विचार मुझे मेरी ईमेल पर भेज सकते हैं ..

 ऑनलाइन ऑर्डर के लिए यह लिनक्स है ..
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Saturday, February 16, 2013

कुछ सुनहरी यादें जो साथ चलेगी अब ज़िन्दगी के आगे के सफ़र में :)




पगडण्डी पहला एडिटर के रूप में साझा काव्य संग्रह ..ज़िन्दगी भर एक न भूलने वाला पल 
ज़िन्दगी के कुछ पल बहुत ख़ास होते हैं ..वह लम्हे आप कभी भूल  नहीं सकते है ..जब लिखना शुरू किया था तो अपना कोई संग्रह भी आएगा यह सोचा नहीं था .,..पर यह हुआ ..क्यों की होना तय था ..लिखने का सिलसिला जो यूँ ही बचपन में शुरू हुआ था वह एक जनून बन गया मेरा ...ब्लॉग तब बनाया जब महिला ब्लॉगर बहुत ही कम थी ..पर जो लिखा जैसा लिखा वह पोस्ट किया ...और वह सराहा गया ...कविता से शुरू हुआ सफ़र लेख जो सिर्फ कालेज में "एज ऐ " एडिटर लिखे थे वह फिर से शुरू किये ..कहानियाँ लिखी ..और अपना सबसे प्रिय विषय कविता के बाद ..यात्रा विवरण लिखा ...कई ब्लाग्स के साथ जुडी ..और सफ़र तय होता रहा ...फिर पहले संग्रह "साया "के बारे में सोचा गया ..वह साया जो अमृता प्रीतम को पढ़ते पढ़ते मेरी भी रूह में कहीं आ गया था ....और अपनी बाते मुझसे कहता और मेरी सुनता था ...अमृता प्रीतम के ब्लॉग पर लिखना एक अजीब सा सकून देता था ..वह ब्लॉग भी बहुत पसंद किया गया ..और साया लिखने की नींव भी वही लिखते लिखते पड़ी ...और वही "साया" फिर काव्य संग्रह के रूप में अयन प्रकाशन से पब्लिश हुआ ...यह संग्रह पब्लिश होते ही बहुत पसंद किया गया ..लेने वाले चाहे वही ब्लागर मित्र थे ..पर उनके द्वारा बहुत सरहना मिली ....और वहां से यह आगे भी गया ..सन २००८ में पब्लिश साया आज भी बिक रहा है और लोग पसंद कर रहे हैं ...यही से सिलसिला फिर आगे चल पड़ा ..दूसरा संग्रह आएगा ..फिर यह सोच कहीं ताक़ पर रख दी ...और आगे का लिखा कई जाने माने अखबारों में और हिंदी पत्रिकाओं में छपने लगा ...हिंदी मीडिया में ब्लाग समीक्षा की ..कई नए दोस्त बने इस सिलसिले में ..उनके बारे में जाना ..और फिर समीक्षक के तौर पर भी लिखना शुरू किया ....बहुत ही अच्छा अनुभव है यह भी ...अलग अलग संग्रह ..पढना और फिर उस पर लिखना ....और फिर दूसरे संग्रह के बारे में सोचा ....नाम दिया कुछ मेरी कलम से ......हिन्द युग्म द्वारा प्रकाशित यह संग्रह विश्व पुस्तक मेले के दौरान ..आया ..विमोचन करने वाले भी सभी दोस्त और पढने वाले पाठक थे ....कई जाने हुए चेहरे फेसबुक .ब्लॉग से
बुक फेयर में पहली प्रति लेने वालों में राजीव रंजन जी और शरद चन्द्र गौड़ जी
और ख़ुशी हुई तब कई अनजान चेहरों ने भी यह संग्रह लिया और पढ़ कर संग्रह में दिए आई डी पर अपनी बात भी कही ..उस में एक हैं नरेन्द्र ग्रोवर ..जो लन्दन से इस पुस्तक मेले में आये और मेरी कुछ कलम से अपने साथ ले गए ..कुछ मेरी कलम संग्रह पढने के बाद उनका संग्रह से मेरी आई डी पढ़ कर मेल करना बहुत ही दिल को छु गया My name is Narender Grover.  I came to your stall on Thursday.  I have managed to read some of your poems and they are simply brilliant.   I dont have your contact tel no, otherwise I would have phoned you.
ऑनलाइन पहला संग्रह राज भूटानी जी की टेबल पर मुस्कराता हुआ :)
  पहली बार ही था यह जब अचानक से डॉ ओं निश्छल जी ने माइक हाथ में थमा  दिया क्या बोल कुछ याद नहीं :)
और इसी के साथ एक ख़ुशी और जुडी ..मुकेश कुमार सिन्हा और अंजू अनु चौधरी जैसे अच्छे दोस्तों के साथ पगडण्डीयाँ संपादन करने का अवसर मिला .....इस में भी मेरी रचनाएँ है ...कुछ पल ख़ुशी के उसके लोकापर्ण पर सभी उन दोस्तों के साथ जिन्हें सिर्फ जाना था उनकी लिखी कविता के माध्यम से ....यहाँ रूबरू हुए ..बड़ी बड़ी हस्तियों से मिलना हुआ ..चित्रा
डॉ ओम निश्‍चल, विजय किशोर मानव,पूर्व संपादक कादंबिनी, चित्रा मुद्गल, सुप्रसदि्ध कथाकार उपन्‍यासकार, कवयित्री अंजु चौधरी, विजय राय, प्रधान संपादक लमही, बलराम, कथाकार एवं शैलेश भारतवासी, निदेशक: हिदयुग्‍म।के साथ बीते कुछ लम्हे यूँ क़ैद हुए ..इन तस्वीरों में
इसी दौरान नारी विमर्श के अर्थ का विमोचन भी सरस दरबारी वंदना गुप्ता और उदयभान जी के साथ मैं भी शमिल हुई
...अभी आगे का सफ़र तो शुरू हुआ है ..मंजिल दूर है ..यह कह सकती हूँ की बस यूँ चलना शुरू किया था ..साथ साथ ..अब देखते हैं आगे तकदीर में लिखा क्या है ..............और सभी दोस्तों का बहुत बहुत शुक्रिया जी मेरे इस लेखन सफ़र में मेरे साथ है और निरंतर आगे बढ़ने का उत्साह देते रहते है :)
डायरी के पुराने पन्नो में
कुछ लफ्ज़
धुंधले हुए दिखते हैं
जो अब पढने में
नहीं आते ..
पर .........
एक अक्स
अभी भी दिखाई देता है
उन धुंधले अक्षरों में
साफ़ साफ़ उजला सा !!!#रंजू

Friday, February 15, 2013

लम्हे

कुछ लम्हे उदास से
कुछ खुशनुमा से
मिले यादो के कोने से
 उन्हें बटोरा दिल ने फिर से
एक "इस "कोने से
एक "उस "कोने से
कुछ लिपटे थे शाम के धुंधले साए में
और कुछ थे सुबह सूरज के आगोश में "सुबकते "
फिर जब भर के मुट्ठी में देखा तो
कुछ साँसे अभी भी मुस्करा रहीं थी उन लम्हों में !!...........#

Wednesday, February 13, 2013

आलोक जी की कलम से "कुछ मेरी कलम संग्रह की बात :

रंजू भाटिया जी का कविता संग्रह "कुछ मेरी कलम से .." पढने का सौभाग्य मिला! इनकी कविताएँ अनुभव और उससे उत्पन्न अनुभूति का एक अनूठा संगम हैं! कही नयिका प्रेम में वशीभूत होकर नायक को तलाशती हुयी दिखती है! जैसे की वो अपनी एक कविता में लिखती हैं .. " मत रुको, ठहरा हुआ स्थिर पानी, आखिर सड़ जाता है", मतलब साफ है कि भावनाओं का प्रदर्शन और संवाद किसी भी रिश्ते - सम्बन्ध को निभाने के लिए बहतु जरुरी है! रंजू जी की कविताओं में एक वेदना भी है, जो बिखरते हुए संबंधों की और इशारा करती है, साथ ही इन संबंधों को किस तरह बांधकर रखा जा सकता है उसको भी उन्होनो अपनी कविताओं में बखूबी ढाला है! वो कहती हैं .. " हर रौशनी तक पहुँचने के लिए, तयशुदा रास्तों से हटकर ही, सफ़र तय करना होगा"! , कितनी गहराई है इन पंक्तियों में, जीवन का दूसरा नाम तालमेल ही है, कुछ तुम निभाओ कुछ वो निभाए तब जाकर ये जीवन रुपी गाड़ी चलती है! एक एक स्त्री की व्यथा/ गाथा को उन्होंने बचपन से लेकर अंत तक चंद लफ्जों में कितनी मासूमियत से कहा है .. ... " एक कहानी, फ्रॉक पहने गुडिया के घर से, इस घर तक, हर लम्हे को सजाती रही, खुद रही तलाश, एक घर की, अंत तक"! अपनी एक और कविता में रंजू जी ने बहतु ही ख़ूबसूरती से "प्यार और देह आकर्षण" को प्रतिबिम्बित किया है , वो कहती हैं ... " आसान है देह से, देह की भाषा समझना, पर कभी नही छुआ, तुमने मेरे, आत्मा के उस अंतर्मन को ", मतलब पूर्ण समर्पण के बाबजूद नारी उस प्यार की तलाश में भटकती हुयी सी! अंत में मैं यह कहना चाहूँगा, कि रंजू जी ने अपनी कविताओं को जीया है, उन्हें खालिस कविता कह देना सही नही है, बल्कि कविता वो है जो हर किसी के द्वारा जिये गये , महसूस किया गये वो लम्हे है! जो कही न कही जीवन में अपनी छाप छोड़ते रहते हैं! और जब भावनाएँ मन का बांध तोड़कर बाहर निकलती है तो कविताएँ बनती है! रंजू जी ने प्रेम, विछोह, वेदना और तालमेल से किस तरह जिन्दगी को संवारा जा सकता है, ऐसा जी कुछ उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से कहा है! आप जब इन कविताओं को पढेंगे तो खुद को कही न कही इन कविताओं से जुड़ा पाओगे! मैंने कविता संग्रह पढने के बाद जो मह्सूस किया वो आपसे साझा किया! रंजू भाटिया जी को उनके इस खूबसूरत कविता संग्रह के प्रकाशन पर अनन्य शुभकामनाये!!

Sunday, February 03, 2013

कुछ मेरी कलम से

बिखरी हुई मैं अपनी ही कविता के अस्तित्व में
जैसे कोई बूँद बारिश की गिर के मिट जाती है
और कह जाती है वह सब कुछ अनजाना सा
दिल में कभी एक तड़प ,कभी एक सकून दे जाती है
करना हो मुझे तलाश तो कर लेना इन लफ्जों में.........यह लफ्ज़ उपलब्ध रहेंगे" कुछ मेरी कलम से "संग्रह ...यह संग्रह उपलब्ध है अब चार फ़रवरी से दस फ़रवरी तक विश्व पुस्तक मेले में हाल नम्बर १२ के स्टाल नम्बर बी -१० में ...........मुझे आप सबका इन्तजार रहेगा ....