रंजू भाटिया जी का कविता संग्रह "कुछ मेरी कलम से .." पढने का सौभाग्य मिला! इनकी कविताएँ अनुभव और उससे उत्पन्न अनुभूति का एक अनूठा संगम हैं! कही नयिका प्रेम में वशीभूत होकर नायक को तलाशती हुयी दिखती है! जैसे की वो अपनी एक कविता में लिखती हैं .. " मत रुको, ठहरा हुआ स्थिर पानी, आखिर सड़ जाता है", मतलब साफ है कि भावनाओं का प्रदर्शन और संवाद किसी भी रिश्ते - सम्बन्ध को निभाने के लिए बहतु जरुरी है! रंजू जी की कविताओं में एक वेदना भी है, जो बिखरते हुए संबंधों की और इशारा करती है, साथ ही इन संबंधों को किस तरह बांधकर रखा जा सकता है उसको भी उन्होनो अपनी कविताओं में बखूबी ढाला है! वो कहती हैं .. " हर रौशनी तक पहुँचने के लिए, तयशुदा रास्तों से हटकर ही, सफ़र तय करना होगा"! , कितनी गहराई है इन पंक्तियों में, जीवन का दूसरा नाम तालमेल ही है, कुछ तुम निभाओ कुछ वो निभाए तब जाकर ये जीवन रुपी गाड़ी चलती है! एक
एक स्त्री की व्यथा/ गाथा को उन्होंने बचपन से लेकर अंत तक चंद लफ्जों में कितनी मासूमियत से कहा है .. ... " एक कहानी, फ्रॉक पहने गुडिया के घर से, इस घर तक, हर लम्हे को सजाती रही, खुद रही तलाश, एक घर की, अंत तक"! अपनी एक और कविता में रंजू जी ने बहतु ही ख़ूबसूरती से "प्यार और देह आकर्षण" को प्रतिबिम्बित किया है , वो कहती हैं ... " आसान है देह से, देह की भाषा समझना, पर कभी नही छुआ, तुमने मेरे, आत्मा के उस अंतर्मन को ", मतलब पूर्ण समर्पण के बाबजूद नारी उस प्यार की तलाश में भटकती हुयी सी!
अंत में मैं यह कहना चाहूँगा, कि रंजू जी ने अपनी कविताओं को जीया है, उन्हें खालिस कविता कह देना सही नही है, बल्कि कविता वो है जो हर किसी के द्वारा जिये गये , महसूस किया गये वो लम्हे है! जो कही न कही जीवन में अपनी छाप छोड़ते रहते हैं! और जब भावनाएँ मन का बांध तोड़कर बाहर निकलती है तो कविताएँ बनती है! रंजू जी ने प्रेम, विछोह, वेदना और तालमेल से किस तरह जिन्दगी को संवारा जा सकता है, ऐसा जी कुछ उन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से कहा है! आप जब इन कविताओं को पढेंगे तो खुद को कही न कही इन कविताओं से जुड़ा पाओगे! मैंने कविता संग्रह पढने के बाद जो मह्सूस किया वो आपसे साझा किया! रंजू भाटिया जी को उनके इस खूबसूरत कविता संग्रह के प्रकाशन पर अनन्य शुभकामनाये!!