Friday, October 25, 2013

क्षणिकाएं

कम्पोज़ की गोली वह बिचोलिया है जो अक्सर मेरी नींद और मेरे सपनो का मेल करवा देती है
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सो रही है रात
जाग रही आँखे
जैसे मंजिल से दूर बेनाम सा कोई रास्ता ............
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दिवार पर छेद करती ड्रिल मशीन
भुरभुरा कर गिरती लाल मिट्टी
न जाने क्यों एक सी लगी मुझे
तेरे और अपने होने की ....


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कैसे हो होती हैं पल पल मेरी ज़िन्दगी भी ठीक उस सांवली रात की तरह ..
 जो  सूरज से 
 मिलने की तड़प की इन्तजार में सिसक सिसक कर दम तोड़ देती है |

और यूँ ही उम्र तमाम होती जाती है भुरभुरा के दुःख सुख की परतों में


9 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

मन से निकली गहरी बातें।

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर और सुकोमल क्षणिकाएं....

अनु

दिगम्बर नासवा said...

Jeevan ke lamhon ki sachhai ko shabdon mein utara hai ... Gahra arth kai baar kuch shabdon mein bayan ho jata hai ..

मुकेश कुमार सिन्हा said...

sundar thoughts..

मेरा मन पंछी सा said...

कोमल भाव लिए क्षणिकाए...

विभूति" said...

खुबसूरत अभिवयक्ति......

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

सांवली रात

:)

निवेदिता श्रीवास्तव said...

अक्सर लगता है ऐसे सीले से लम्हे कभी नहीं आने चाहिए (

प्यार की कहानियाँ said...

Nice Love Story Shared by You. प्यार की कहानियाँ