Friday, October 25, 2013

क्षणिकाएं

कम्पोज़ की गोली वह बिचोलिया है जो अक्सर मेरी नींद और मेरे सपनो का मेल करवा देती है
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सो रही है रात
जाग रही आँखे
जैसे मंजिल से दूर बेनाम सा कोई रास्ता ............
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दिवार पर छेद करती ड्रिल मशीन
भुरभुरा कर गिरती लाल मिट्टी
न जाने क्यों एक सी लगी मुझे
तेरे और अपने होने की ....


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कैसे हो होती हैं पल पल मेरी ज़िन्दगी भी ठीक उस सांवली रात की तरह ..
 जो  सूरज से 
 मिलने की तड़प की इन्तजार में सिसक सिसक कर दम तोड़ देती है |

और यूँ ही उम्र तमाम होती जाती है भुरभुरा के दुःख सुख की परतों में


Monday, October 14, 2013

रिश्तों का अर्थ

रिश्तों का अर्थ

आज सोचती हूँ
तो लगता है
कि सच का रूप
हम दोनों के लिए
 अलग ही था
और .....
समय अपनी बात
कुछ इस तरह से कह गया
कि......
वह बदल देता है
रिश्तों  के अर्थ को
फिर आखिर  कैसे दिखे
वह रिश्ते ...
जिनके नीचे गंदले पानी की बहती धारा हो ..??

 पुष्प पांखुरी काव्य संग्रह से एक रचना ....आपने यह संग्रह नहीं पढ़ा तो जरुर पढ़े ...


Friday, October 04, 2013

ज़िन्दगी कभी पहले भी मुझे कभी अपनी बन के मिली न थी

रिस रिस कर बीता समय
बहका के ,बहला के ..
ले गया .........
तुम्हे भी और मुझे भी ...
अब सब तरफ है
तो सिर्फ धुंआ ही धुंआ
सच है न ...
छलकती आँखों से
बुझता नहीं कुछ भी ....

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सुलगते हुए पलों की
रेखाएं हैं
यादों की दीवारों पर
जो कभी बुझती ही नहीं
बार बार स्टेम्प लगाती हुई
यह जल कर कुछ और
निशाँ गहरे कर जाती है.............



ज़िन्दगी कभी पहले भी मुझे कभी अपनी बन के मिली न थी ..पर आज कल तो बहुत अजनबी है .हर पल एक नया तमाशा ..रोज़ सुबह उठते ही एक सवाल ज़िन्दगी से कि आज के पन्ने पर क्या अनजाना लिखा है मेरे लिए ...........ईश्वर बस ताक़त दे और सहने की असीम शक्ति यही दुआ करें ....