Monday, September 23, 2013

किस्सा ऐ प्याज "

कुछ समय पहले एक कविता लिखी थी "बहुत दिन हुए ....

बस ,एक ख़त लिखना है मुझे
उन बीते हुए लम्हों के नाम
उन्हें वापस लाने के लिए
बहुत दिन हुए ..
यूँ दिल ने
पुराने लम्हों को जी के नहीं देखा ....

उसी तर्ज़ पर यह पंक्तियाँ ...."
किस्सा ऐ प्याज "



बहुत दिन हुए
सब्जी दाल को
प्याज के साथ बना के नहीं देखा

"फ़ूड फ़ूड "चेनल पर रेस्पी बताते हुए" शेफ " प्याज पर प्याज काटे जा रहे हैं और एक हम है जो उन आंसुओं को तरस रहे हैं जो प्याज काटने से आँखों से झर झर बहते थे:)

बिन प्याज के दाल है हलकी
सब्जी भी बे-लिबास लगती है
खाली पड़ी वो प्याज की टोकरी
अपने भरने की राह तकती है

टमाटर नासाज है अकेले भुने जाने से
अदरक लहसुन की पेस्ट सुलग के जलती है
न जाने कब महकेगी रसोई प्याज के कटने से
प्याज के छिलकों की उतरती परत "संसद "में दिखती है ## ranju bhatia

Wednesday, September 18, 2013

इजहार -इनकार

इजहार -इनकार

आज ज़िन्दगी की साँझ में
खुद से ही कर रही हूँ "सवाल जवाब"
कि जब बीते वक़्त में
रुकी हवा से इजहार किया
तो वह बाहों में सिमट आई
जब किया
मुरझाते फूलों से इकरार  तो
वह खिल उठे
जाते बादलों को
प्यार से पुचकारा मैंने
तो वह बरस गए
पर जब तुम्हे चाहा शिद्दत से तो
सब तरफ सन्नाटा क्यों गूंज उठा
ज़िन्दगी से पूछती हूँ आज
कि क्या हुआ ..
क्या यह रुका हुआ वक़्त था
जो आकर गुजर गया??

Thursday, September 12, 2013

कुछ लफ्ज़

कितने बचे हैं
अभी
धर्म ,
धोखे ,
सिर्फ और सिर्फ
धर्म के नाम पर ?
*******************
 लिखे आखर
काली स्याही से
कागज़ पर
उतरे भाव मन के
जैसे सफेद फूल
****************
जब मन पर
छा जाता है
अकेलापन
और साँसे हो मद्धम
तब कुछ लिख कर
भावों से साँसे उधार ले लेती हूँ !!

 **************
महके हुए बसन्त में
कुछ लफ्ज़ अब इस तरह खिले
नमी हैं इसकी तह में कितनी
यह दुनिया को पता न चले !!.

# रंजू ..........

Tuesday, September 10, 2013

उम्मीद

उन राहों पर
जहाँ वादा था
साथ साथ चलने का
मैं तो चल रही हूँ
पर नही देखूंगी
पीछे मुड कर
तुम्हारे आने की राह
क्यों कि 
यह टीस अब सही नहीं जाती है
बस यही विश्वास  है कि
जो रास्ते पर
घना कोहरा दिख रहा है
वह एक दिन
नीले से चमकीले अम्बर सा
दिखेगा कभी
और साथ ही शायद   दिखे
तुंहारे साथ साथ आने की आहट भी ...
@ईश्वर का अस्तित्व उम्मीद की एक किरण है।  आशा का हर  लम्हा दिल के लिए आगे बढ़ने का एक भरोसा
रंजू भाटिया

Wednesday, September 04, 2013

गुजरे लम्हात




लिखे तो होंगे लफ्ज़ उसने कोरे कागज़ पर
और नाम उसको ख़त का दिया होगा
बदला होगा कुछ ख्वाबों को हकीकत में
और नाम मोहब्बत रख दिया होगा
यूं मिटाया होगा हर फासले को उसने
हर राह से काँटों को चुना होगा
जिस तरफ़ फैली होगी प्यार की खुशबु
उस को अपनी मंजिल कहा होगा

चुरा के रखे लिए होंगे साथ  गुजरे लम्हात
दिल में बसी तस्वीर का सजदा किया होगा
जरुरी नही है मदिर मस्जिद में दुआ करना
जब अपने गीतों में उसने हाल दिल का कहा होगा

ranju bhatia dayari ke panno se ..............