इजहार -इनकार
आज ज़िन्दगी की साँझ में
खुद से ही कर रही हूँ "सवाल जवाब"
कि जब बीते वक़्त में
रुकी हवा से इजहार किया
तो वह बाहों में सिमट आई
जब किया
मुरझाते फूलों से इकरार तो
वह खिल उठे
जाते बादलों को
प्यार से पुचकारा मैंने
तो वह बरस गए
पर जब तुम्हे चाहा शिद्दत से तो
सब तरफ सन्नाटा क्यों गूंज उठा
ज़िन्दगी से पूछती हूँ आज
कि क्या हुआ ..
क्या यह रुका हुआ वक़्त था
जो आकर गुजर गया??
आज ज़िन्दगी की साँझ में
खुद से ही कर रही हूँ "सवाल जवाब"
कि जब बीते वक़्त में
रुकी हवा से इजहार किया
तो वह बाहों में सिमट आई
जब किया
मुरझाते फूलों से इकरार तो
वह खिल उठे
जाते बादलों को
प्यार से पुचकारा मैंने
तो वह बरस गए
पर जब तुम्हे चाहा शिद्दत से तो
सब तरफ सन्नाटा क्यों गूंज उठा
ज़िन्दगी से पूछती हूँ आज
कि क्या हुआ ..
क्या यह रुका हुआ वक़्त था
जो आकर गुजर गया??
12 comments:
क्या कहने ..
बहुत ही बेहतरीन मनभावन रचना...
:-)
उत्तर में उलझे प्रश्नों के उत्तर हमको व्याकुल करते।
जीवन की सच्ची अनुभूति----
बहुत सुंदर
बहुत सुन्दर रचना........
अनु
खुद से ही उलझना ओर खुद ही सुलझाना यही तो जीवन है चलता है जो उम्र भर ...
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (20-09-2013) के चर्चामंच - 1374 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार (20-09-2013) के चर्चामंच - 1374 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
वे सब जड़ थे ..प्रकृति.. जो देना जानती है लेना नहीं ..
---'तुन्हें'....जीव था , चेतन ..जो लेना-देना में मोल-भाव, लाभ-हानि..जानता-मानता है...
मौन में ही वह मुखर होता है..सुंदर रचना !
मौन में ही वह मुखर होता है..सुंदर रचना !
मौन में ही वह मुखर होता है..सुंदर रचना !
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
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