कितने बचे हैं
अभी
अधर्म ,
धोखे ,
सिर्फ और सिर्फ
धर्म के नाम पर ?
*******************
लिखे आखर
काली स्याही से
कागज़ पर
उतरे भाव मन के
जैसे सफेद फूल
****************
जब मन पर
छा जाता है
अकेलापन
और साँसे हो मद्धम
तब कुछ लिख कर
भावों से साँसे उधार ले लेती हूँ !!
**************
महके हुए बसन्त में
कुछ लफ्ज़ अब इस तरह खिले
नमी हैं इसकी तह में कितनी
यह दुनिया को पता न चले !!.
# रंजू ..........
अभी
अधर्म ,
धोखे ,
सिर्फ और सिर्फ
धर्म के नाम पर ?
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लिखे आखर
काली स्याही से
कागज़ पर
उतरे भाव मन के
जैसे सफेद फूल
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जब मन पर
छा जाता है
अकेलापन
और साँसे हो मद्धम
तब कुछ लिख कर
भावों से साँसे उधार ले लेती हूँ !!
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महके हुए बसन्त में
कुछ लफ्ज़ अब इस तरह खिले
नमी हैं इसकी तह में कितनी
यह दुनिया को पता न चले !!.
# रंजू ..........
5 comments:
सुन्दर और गहरी पंक्तियाँ..
छोटी २ रचनाओं का सुंदर सृजन ! बेहतरीन प्रस्तुति,
RECENT POST : बिखरे स्वर.
धर्म के नाम पर तो सबसे ज्यादा अधर्म चलता है ।
बाकी तीनों बहुत कोमल क्षणिकाएं रंजू जी।
काली स्याही से उजले मन के भाव लिख दिए हैं आपने ...
Deep Thoughts :)
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