Tuesday, April 30, 2013

श्रीनगर यात्रा भाग २ ..गुलमर्ग और पहलगाम की खूबसूरत वादियों में ....





श्रीनगर यात्रा भाग २ ..गुलमर्ग और पहलगाम  की खूबसूरत वादियों में ....

श्रीनगर होटल से निकलते हुए
गुलमर्ग जब तक देखा नहीं था ..चित्रों में देखा हुआ सुन्दर होगा यही विचार था दिल में ..पर कोई जगह इत्तनी खूबसूरत हो सकती है ..यह वहां जा कर ही जाना जा सकता है ...........चित्र से कहीं अधिक सुन्दर ..कहीं अधिक मनमोहक ..और अपनी सुन्दरता से मूक कर देने वाला ........
गुलमर्ग के रास्ते पर ( चित्र पूर्वा भाटिया )
....उफ्फ्फ कोई जगह इतनी सुन्दर ..जैसे ईश्वर ने खुद इसको बैठ के बनाया है ..कश्‍मीर का एक खूबसूरत हिल स्‍टेशन है यह ... इसकी सुंदरता के कारण इसे धरती का स्‍वर्ग भी कहा जाता है। यह देश के प्रमुख पर्यटक स्‍थलों में से एक हैं। फूलों के प्रदेश के नाम से मशहूर यह स्‍थान बारामूला जिले में स्थित है।
गुलमर्ग पहुँचने पर
यहां के हरे भरे ढलान बहुत सुन्दर हैं ..अप्रैल में हमारे जाने पके वक़्त भी यह बर्फ से ढके हुए थे .यह स्थान समुद्र तल से 2730 मी. की ऊंचाई पर है | आज यह सिर्फ पहाड़ों का शहर नहीं है, बल्कि यहां विश्‍व का सबसे बड़ा गोल्‍फ कोर्स और देश का प्रमुख स्‍की रिजॉर्ट है।गुलमर्ग का अर्थ है "फूलों की वादी"। जम्मू - कश्मीर के बारामूला जिले में लग - भग 2730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित गुलमर्ग, की खोज 1927  में अंग्रेजों ने की थी। यह पहले “गौरीमर्ग” के नाम से जाना जाता था, जो भगवान शिव की पत्नी "गौरी" का नाम है। फिर कश्मीर के अंतिम राजा, राजा युसूफ शाह चक ने इस स्थान की खूबसूरती और शांत वारावरण में मग्न होकर इसका नाम गौरीमर्ग से गुलमर्ग रख दिया।गुलमर्ग का सुहावना मौसम, शानदार परिदृश्य, फूलों से खिले बगीचे, देवदार के पेड, खूबसूरत झीले पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। गुलमर्ग अपनी हरियाली और सौम्य वातावरण के कारण आज एक पिकनिक और कैम्पिंग स्पॉट बन गया है।
गुलमर्ग होटल के सामने
जब हम वहां पहुंचे तो बारिश हो रही थी ..होटल का मुख्य द्वार बर्फ से ढका हुआ था ....
गुलमर्ग होटल
मौसम ठंडा था पर बहुत सुहाना था ..रात हो चली थी ..और भूख जोरो की लगी थी ..गर्म मेगी ने जैसे उस वक़्त वरदान सा काम किया :) सुबह उठते ही बहार झाँका तो बारिश हो रही थी ..आज गोंडोला राईड पर जाना था ...गोंडोला राईड जो कि केबल कार सिस्टम है, गुलमर्ग का प्रमुख आकर्षक स्थल है। यह दो पांच कि.मी लम्बी राईड है, गुलमर्ग से कौंगडोर और कौंगडोर से अफरात।
सुबह के नज़ारे सैर के साथ
इस राईड में आप पूरे हिमालय पर्वत और गोंडोला गाँव को देख सकते हैं।
ऊपर ट्राली से लिए गया दृश्य
कौंगडोर का गोंडोला स्टेशन 3099 मीटर और अफरात 3979 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। गोंडोला राईड वहां घुमने का बहुत बढ़िया साधन है ..पर बारिश और ऊपर मौसम खराब होने के कारण उस वक़्त बहुत ऊपर जाने से से रोक रखा था ..पहले लेवल तक जाने के लिए भी हमें बहुत इन्तजार करना पड़ा ..इतने लोग इतनी उत्सुकता ..बारिश और ऊपर जाने पर बर्फबारी होने के आसार सब तरफ एक रोमांचक कोलहल में डूबे हुए थे | आखिर लम्बे इन्तजार के बाद पहले लेवल तक जाने की टिकट मिली ...एक व्यक्ति के लिए चार सौ रूपये की टिकट है पर जो नजारा है ......वह ज़िन्दगी भर भूला नहीं जा सकता है ...ऊपर पहुँचते  ही पहली बार  देखी .स्लेज पर जाते हुए डर भी था और एक बच्ची सी उत्सुकता भी ...साथ ही वहां के लोकल घुमाने वाले स्लेज चलाने वालो के लिए एक स्नेह सहानुभूति की भावना भी थी कि कैसे इतने कठोर वातावरण में यह लोग अपने जीवन को चलाते हैं .खुद को अजीब लगा उनसे स्लेज पर बैठ कर स्लेज गाडी खिंचवाना ...मोटे मोटे हाँ सब लोग और वह दुबले सुकड़े ,,आखिर के खाते हैं आप ...पूछने पर बताया कि चावल दिन में तीन चार बार ..पर पता नहीं कहाँ जाता है ..एक तो सर्दी बर्फ ..ऊपर से खीच के स्लेज गाडी को ऊपर तक ले जाना फिर फिसलते हुए संभाल कर लाना ..बेचारा खाया खाना भी कहाँ टिकेगा ..पर हर व्यक्ति अपने हालत में जीता है और जीविका के साधन तलाश ही लेता है ..यही जाना वहां देख कर तो ...

वहां से आये पहलगाम ....रास्ते के नज़ारे लफ़्ज़ों से ब्यान नहीं हो सकते ...सरसों अभी वहां पकी नहीं थी पीले रंग से ढकी धरती उस पर सेब के सफ़ेद फूलों से बगीचे ...अखरोट के पेड़ पर नए पत्ते ..कमाल सब अजूबा कुदरत का ....एक दो जगह रुक कर ..कहवा पिया ..बाकरखानी खायी ..और बादाम साथ के लिए खरीदे गए .....पहलगाम का नाम याद आते ही अमरनाथ यात्रा दिल दिमाग में कौंध जाती है
बेताब घाटी
..पहलगाम को चरवाहों की घाटी के नाम से भी जाना जाता है। यहां की खूबसूरती ऐसी कि एक बार कोई आ जाए तो बार-बार आने का मन करता है।
बेताब  घाटी
यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य बेहद दिलकश है |यहां के खूबसूरत नजारे के कारण सत्तर व अस्सी के दशकों में कई फिल्मों शूटिंग हुआ करती थी। उन दिनों में यह स्थल बॉलीवुड का सबसे लोकप्रिय शूटिंग स्थल हुआ करता था। यहां एक बॉबी हट है, जिसमें फिल्म बॉबी की शूटिंग हुई थी। इसके साथ यहां एक बेताब घाटी है, जहां सन्नी देओल की फिल्म बेताब की शूटिंग हुई थी। पहलगाम बहुत ही रोमांटिकऔर सकून भरी जगह है कलकल करती नदी का तेज प्रवाह और दूसरी तरफ देवदार के पेड़ों से ढकी  पहाड़ियां जो कहीं कहीं बर्फ से ढकी  थीं, पहाड़ी झरने कहीं  जमी हुई और कहीं प्रवाह    सब मिलकर एकदम रहस्यमय सुन्दर रोचक नजारा था |
होटल से सामने पहलाम का दृश्य ..(चित्र पूर्वा  भाटिया )
पहलगाम के आसपास के मुख्य आकर्षण बेताब घाटी, चंदनवाड़ी और आरू घाटी हैं. ये सब लगभग १६ किलोमीटर एक अन्दर ही हैं |पहलगाम से ६/७ किलोमीटर की दूरी पर ही एक बहुत ही प्यारी घाटी है जिसको "बेताब घाटी "कहा जाता है   नदी के साथ साथ बसी यह घाटी बेहद खूबसूरत लगी    हिंदी फिल्म बेताब की शूटिंग यहीं पर हुई थी. ख़ास कर यह गाना  ”जब हम जवाँ होंगे, जाने कहाँ होंगे” तो सभी को याद होगा ही. तब से ही यह बेताब घाटी कहलाने लगी जबकि इसका वास्तविक नाम हजन घाटी था. .
पापा मम्मी के साथ बेताब घाटी
..वहां के गाइड ने इतनी रोचक बातें बतायी कि टैक्सी से किया गया एक घंटे का वादा बहुत कम लगने लगा पहलगाम से आगे जहाँ कहीं भी जाना हो तो वहीँ की स्थानीय टेक्सियाँ लेनी पड़ती हैं.और होटल वाले वह इंतजाम कर देते हैं.... वहां घाटी में ...उस सत्रह वर्ष के गाइड के आँखों में बातो में आज के कश्मीर की झलक थी ...जो एक आजाद और सकून भरी ज़िन्दगी चाहते हैं ....आतंक और आतंक वादियों के प्रति घृणा है ..पर जीने को मजूबर है उन्ही हालात में ...एक एक चीज वहां कि उसने बहुत रोचक ढंग से बताई ..बहुत सी बाते यहाँ लिखने में भी रूह कांप  रही है मेरी ..जो उसने बताई ...घाटी के ऊपर कारगिल के पहाड़ और उस से नीचे केसर और अखरोट के बगीचे .वाकई जन्नत इस अलग क्या होगी ....मौसम खराब होने के कारण हम सोनमर्ग और चंदनवाड़ी नहीं जा सके ..अफ़सोस रहेगा उस जगह को न देख पाने का ..वापसी में देखने में कई नज़ारे मिले ...क्रिकेट बेट यहाँ पर मिली लकड़ी से खूब बढ़िया बनता है ..बहुत सी इसकी फेक्ट्रियां देखी और बहन के बेटे ने जो क्रिकेट खेलने का शौकीन है एक बेट लिया भी ..ले कर उसने बताया कि दिल्ली में यही बेट २००० रूपये का मिलेगा जो उसने यहाँ से छः सौ रूपये में लिया है ..यहाँ पर ऊनी वस्त्र और खूबसूरत साड़ियाँ भी ली हमने ..जो बहुत वाजिब दाम पर मिली ...   .बहुत कुछ है अभी बताने के लिए ..इस लिए अगले अंक का इन्तजार कीजियेगा :)

Friday, April 26, 2013

श्रीनगर यात्रा ..भाग एक



 श्रीनगर यात्रा ..भाग एक ............स्वर्ग की सूरत इस से अलग क्या होगी ............?
 सारी कायनात ..........
एक धुन्ध की चादर में खो रही है
एक कोहरा सा ओढ़े ........
यह सारी वादी सो रही है

गूँज रहा है झरनो में
कोई मीठा सा तराना
हर साँस महकती हुई
इन की ख़ुश्बू को पी रही है

पिघल रहा है चाँद
आसमान की बाहो में
सितारो की रोशनी में
कोई मासूम सी कली सो रही है

रूह में बस गया है
कुछ सरूर इस समा का
सादगी में डूबी
यहाँ ज़िंदगी तस्वीर हो रही है

है बस यही लम्हे मेरे पास इस कुदरत के
कुछ पल ही सही मेरी रूह एक सकुन में खो रही है !!

पिछले कुछ दिन कश्मीर की वादी में गुजरे ....और यह पढ़ा हुआ सच लगा
"गर फ़िरदौस बररू-ए- ज़मीं अस्त हमीं अस्तो हमीं अस्तो हमीं अस्तो"
यानी अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है यहीं है यहीं है…यहाँ के गार्डन्स, सफ़ेद बर्फ से ढकी वादियाँ और गुलमर्ग, पहलगांव के खूबसूरत नज़ारे यहीं बस जाने का न्योता देते लगे . सीधे सादे लोग जो कश्मीर की तरह ही खूबसूरत हैं ..पर फिर भी कुछ तो था जो लगा इस हसीं जगह को किसी की नजर लगी है ..

.फूलों की घाटियाँ ...बर्फीली वादियाँ ....खिलते ट्यूलिप से मुस्कराते चेहरे .....धरती का यह स्वर्ग है ...पर कुछ तो है जो इन बर्फीली फिजा में सुलग रहा है .
..स्पाइस जेट विमान में दूसरी यात्रा ..एक विशाल पंक्षी सा उड़ता यह सब यात्रियों को अपने में समेटे दूर ऊँचा उठता हुआ पर्वतों की चोटियों में बादलों में जैसे एक सपने का सा एहसास करवा देता है ..बर्फ से ढकी चोटियाँ बादलो के समुन्द्र में बड़ी बड़ी लहरों सी दिखती है ....नीचे दूर तक बादल ही बादल बस ..और दिल की उड़ान ..जिसका कोई आदि  नहीं अंत नहीं .....धीरे धीरे यह विशाल धातु पक्षी जमीन को छुने की कोशिश में है और दिख रहे हैं सरसों के पीले खेत ..गहरा हरा रंग .हल्का हरा रंग ..भूरी जमीन ,छोटे छोटे मकान ...रास्ते ..नदी और खिलोने जैसी गाड़ियां ...और माइक पर गूंजती आवाज़ ...हम जलन ही श्रीनगर हवाई अड्डे पर उतरने वाले हैं ..अपनी पेटियां बांध ले ..हवाई बलाएँ निगरानी करती हूँ ...दरवाज़े के पास खड़ी है ..और बाहर का तापमान इस वक़्त ९ डिग्री हैं ....यह सूचना दी जा रही है ...दिल्ली में हम तापमान ३५ डिग्री के आस पास छोड़ कर आये थे ..कपडे गर्मी के थे ..इस लिए उतरते ही एहसास हुआ ..सर्द हवाओं का ...और एहसास हुआ ..कि माहौल में गर्मी है तो बहुत तेज निगरानी की ..कुदरत पूरी तरह से अपने रंग में रंगी हुई है .रस्ते में खिले हुए फूल ...झेलम नदी पर तैरते शिकारे हाउस बोट ....और सर से पांव तक ढकी कश्मीरी लडकियां ...एक नजर में अपने होने के अस्तित्व से परिचित करवा देती है ....सामने बर्फ से ढकी चोटियों पर धूप और बादल कि आँख मिचोली जारी है .....हवा सर्द है ..और दिल एक अजीब से एहसास से सरोबार कि यह जन्नत हमारी है ....मेरे देश की है ....और हर शहर ,हर देश की तरह इस जगह की भी अपनी एक महक है ..वह अच्छी है या बुरी ..यह समझने में वक़्त का लगना लाजमी है ...शायद शाकाहारी होने के कारण कुछ अजीब सी महक का एहसास तेजी से अनुभव हो रहा है .........
 
 
मन में खिलने लगे हैं "ट्यूलिप के फूल"
लगता है फिर से जैसे
महीना फागुन का
दस्तक देने लगा है
हवाओं में भी है
एक अजीब सी दीवानगी
और पलाश फिर से
दिल में दहकने लगा है
हो गयी ही रूह गुलमोहरी
लफ्ज़ बन के संदली कविता
कागज पर बिखरने लगा है.................

श्रीनगर के ट्यूलिप गार्डन को देखते हुए यही लफ्ज़ दिल दिमाग में कोंध गए ...

और साथ ही यह "देखा एक ख्व़ाब तो ये सिलसिले हुए, दूर तक निगाह में हैं गुल खिले हुए’"ज़मीं की जन्नत माने जाने वाले कश्मीर की ख़ूबसूरत वादियों में महकते यह ट्यूलिप के फूल जब अपना जादू बिखेर देते हैं तो सम्मोहित खड़े रह कर बस यही गाना याद आता है । लाल, पीले, गुलाबी, सफ़ेद और नीले रंगों के ये फूल एक बड़ा सा गुलदस्ते जैसे दिखाई देते हैं। जो अपनी अनोखी छटा से आपको मूक कर देते हैं ....श्रीनगर में एशिया का सबसे बड़ा ट्यूलिप गार्डन सिराज बाग़ चश्मशाही का इंदिरा गाँधी मेमोरियल ट्यूलिप गार्डन है। ज़रा सोचिये कितना मनमोहक और लुभावना होगा वो दृश्य जब खूबसूरत डल लेक के किनारे ट्यूलिप के रंग बिरंगे फूलों का एक गुलदस्ता सजा होता है और आप बस उसको बिना कुछ कहे निहारते रह जाते हैं ...यह गार्डन कुल 90 एकड़ के बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है। फूलों के मौसम में इस बगीचे में कम से कम 13 लाख ट्यूलिप बल्‍ब एक बार में खिलते हैं और शायद ही कोई होगा जो ट्यूलिप के फूलों को देखकर मोहित ना हो जाए....पर्यटक तो यहाँ खूब दिखे पर साथ ही वहां के लोकल कश्मीरी भी परिवार के साथ उन फूलों से खिलखिलाते हुए दिखे .......वहां बनी "कहवा हट "भी ट्यूलिप के फूलों से ढकी आकर्षित कर रही थी| कहवा और बाकरखानी बेचता हुआ यह सुन्दर छोटी सी अपनी दूकान लगाए उतना ही रोचक था जितना यह खिल हुआ खिलते हुए चेहरों और फूलों का बगीचा :) ...
पांच दिन की यात्रा सिर्फ इतने से लफ़्ज़ों से ब्यान नहीं हो सकती न ? ..जारी है अभी पन्ना दर पन्ना ..लफ्ज़ दर लफ्ज़ इस यात्रा से जुडी मुख्य बातें .......

Wednesday, April 24, 2013

कुछ एहसास

कुछ एहसास
है बस ख़ास
जो यह याद दिलाते हैं
कि नही ओढ़  सकते अब हम
एक दूजे को लिहाफ की तरह
पर एक दूजे का हाथ थाम
 सहारा तो दे सकते हैं
इस तरह चलने में भी
क्या पता सुलग उठे कोई चिनगारी
और ...........
एक वजह फ़िर से जीने की मिले??

Monday, April 15, 2013

बहुत बहुत शुक्रिया है दिल से

 "जन्मदिन मुबारक हो "
हर दोस्त परिचित की तरह 
यह कहता ..
साल का पैदाइशी  दिन भी आता है 
मिलता है ,मुस्काराता है .
केक खा के, खिला कर  करता है 
मुहं मीठा ..अपना भी , मनाने वाले का भी .
और फिर लौट जाता है 
अगले साल आने के लिए ..
पर क्या हो तब ...?
जब" वो "आये 
और ढूंढे "मुझे ..."
पर .....
"मैं "उसको नजर ही न आऊं कहीं ?:)
किसी भी इन्सान के लिए ज़िन्दगी में दो चीजे बहुत अहम् होती है ...एक जन्म एक मृत्यु ...यह वाकई हादसों की साजिश ही है कि  दो अहम् वाक्यात से इंसान अनजान होता है ..पहला हादसा गफलत में होता है ,,और दूसरा जब होता है उसको ब्यान करने वाला गायब होता है .,,:) पर जो जन्म से जुड़ा है वह वाकई बहुत दिलचस्प है ...हर पल बीतने वाला लम्हा ज़िन्दगी को जीने की एक नयी सीख दे जाता है..और कभी उदास लम्हों की छाया तो कभी ख़ुशी के अनमोल पल .....
      १४ अप्रैल को ज़िन्दगी के पचास साल पूरे हुए ..बीत गयी आधी सदी ..हर गुजरे लम्हों को संजोते हुए ...लिखते हुए ..कहते हुए ..मुस्कराते हुए ...दिल बहुत चंचल होता है ...हर पल  बीती जिंदगी के कुछ "दुखद पलों "को भूल जाना चाहता है उस वक़्त "विस्मृति" एक वरदान लगती है और कुछ सुखद पलों को वह कभी भूलना नहीं चाहता अपने वर्तमान के साथ रंगों में घोल कर और उसको सुखद बनाए रखना चाहता है ...ऐसे ही कुछ पलों में यादगार इस बार की सालगिरह से जुड़े  लम्हे हैं ...जो कभी भूल नहीं सकती मैं ..और शुक्रिया ज़िन्दगी में लाने वाले इन पलों को लाने वाले दोस्तों ..बच्चो का ..और उस परम ईश्वर का ..
...जन्मदिन का महीना शुरू होते ही ..छोटे भाई का मजाक से  किया गया प्रश्न ""दीदी ज़िन्दगी के पचास साल पूरे कर रही हो ....आखिर क्या अचीवमेंट रही आपकी ..बीते समय में??" ..उसको तो स्नेह से "गुरर्र" कर के चुप करवा दिया ...पर दिल सोच में डूबा कि आखिर क्या पाया ...इतने सालों में और जन्मदिन वाले दिन जवाब सामने था ..जो वक़्त से मिला मुझे ..इतना निश्छल स्नेह दोस्तों ने फेसबुक पर अपने संदेशो से ..लगातार बजते फ़ोन पर जन्मदिन मुबारक कहते लफ़्ज़ों की ख़ुशी ने दिया ...लगा "यार कुछ तो असर है अपना भी "..जो दोस्त इतना प्यार करते हैं ..स्नेह देते हैं ..वक़्त देते हैं .क्या यह उपलब्द्धि  नहीं अब तक के बीते समय की ...:)जो लिखती रही वह आपके सामने ब्लॉग ..या संग्रह के रूप में सामने आता रहा ..पर पूरे कवर पेज की स्टोरी इस जन्मदिन पर अनमोल तोहफे के रूप में संजय पाल ने दी ,,जो बी पी एन टाइम्स में प्रकाशित हुई  ...वाकई यह बहुत अमेजिंग मूमेंट था मेरे लिए .सब दोस्तों का तहे  दिल से शुक्रिया ...जो मेरे लिखे लफ़्ज़ों को इतना मान देते हैं ..और होंसला कुछ और नया लिखने का दे जाते हैं ...
बी पी एन टाइम्स में प्रकाशित कवर स्टोरी 
........और माँ पापा से मिले ईश्वरीय आशीर्वाद .माता की चौकी के रूप में मिला ..
माँ के साथ काटा केक ...बचपन फिर लौट आया :)
तो बाद में बहन भाई और बच्चो की सरप्राइज पार्टी ,,तोहफों से मिला .उनके लिखे लफ़्ज़ों में मिला .....न भूलने वाले पल हैं यह जो ता उम्र साथ रहेंगे ...
किताबो से जुडी  मैं :) .यहाँ भी बच्चो ने केक इसी किताब के रूप में कटवाया :)
पचास साल की उपलब्द्धि यह स्नेह ही तो है ..जो हालात चाहे कैसे भी रहे हो ...पर सब का साथ रहा ...और वह वक़्त आने पर प्यार के रूप में बरसता रहा ..
पचास साल पूरे...:) 
.ज़िन्दगी आगे जीने के होंसला देता रहा ....कभी यूँ ही उदास लम्हों में लिखा था ...
ज़िन्दगी के 
पचास बरस 
गुजारे हैं 
शोर में 
खुद को ही बोलते सुनते हुए 
न जाने फिर भी 
लगता है क्यों 
हर तरफ मेरे सन्नाटे हैं ....
पर अक्सर यह सन्नाटे हमारे खुद के बुने हुए होते हैं ..चाहे तो हम उसको भरा गिलास मान ले ...या आधा खाली गिलास ...सही कहा न मैंने ...ज़िन्दगी तो यही है ...और कुछ बाते कई बार लफ़्ज़ों से अधिक तस्वीरे बोलती है ....यह भी सच है न ?:)
सरप्राइज मिले तोहफे :)
केक यूँ भी :)

बहुत बहुत शुक्रिया है दिल से सभी का ..मेरे इस दिन वाकई "गोल्डन डे "बनाने के लिए  ..गोल्डन जुबली को ख़ास बनाने के लिए ...आँखे भावुक  हो कर नम हैं और ..दिल में एक ख़ुशी जो ब्यान से अभी बाहर है ...पर लफ्ज़ दिल पर लगातार दस्तक दे रहे हैं ..जानती हूँ यह वक़्त आने पर जरुर अपनी बात अपना शुक्रिया मेरे दिल की कलम से ब्यान कर जायेंगे ....शुक्रिया ईश्वर का ..सभी दोस्तों का ..शुक्रिया इतने प्यारे बच्चो का ..:)

Friday, April 12, 2013

कुछ यूँ ही .........

जाने ये कैसे ख्याल  आते हैं ...
जो थाम नहीं पाते
खुशनुमा वक़्त
के सिरे को
और
दर्द के हर पल को
एक कसक ....
न बीतने की दे जाते हैं ..........
आँखों में ठिठकी रह जाती है
ख्वाबो के देखने की चाहत
और
नींद अब बिकती है
चंद गोलियों की शकल में
जो कहीं गहरे नशे में
बिना ख्वाब के डूबी जाती है
सही में
बातें बेवजह हैं और बहुत सी हैं

Monday, April 08, 2013

प्यार का यह रंग

मौसमों सी रंग बदलती
इस दिल की शाखाएँ
कहीं गहरे भीतर
पनपी हुई है
जड़ों सी
जो ऊपर से सूखी दिखती
अन्दर से हरीभरी है
इन्हें कभी "बीते मौसम"
की बात न समझना
जरा सी फुहार मिलते ही
"सींच देगी यह"
दिल की उस जमीन को
जो दूर से दिखने में
बंजर सी दिखती है
प्यार का यह रंग है
सिर्फ उस" एहसास "सा
जो पनपता है सिर्फ
अपने ही दिए दर्द से
और "अपनी ही बुनी हुई ख्वाइशों से !!"
#रंजू भाटिया ..............

Thursday, April 04, 2013

लोकसत्य पेपर में पब्लिश हुई एक कविता और Vandana Awasthi Dubey की समीक्षा

Vandana Awasthi Dubey द्वारा की गयी समीक्षा "कुछ मेरी कलम से संग्रह की "
लोकसत्य पेपर में पब्लिश हुई एक कविता और Vandana Awasthi Dubey की समीक्षा कुछ मेरी कलम से संग्रह पर ...और यह कविता पब्लिश हुई है
उम्र के उस
नाजुक मोड़ पर
जब लिखे गए थे
यूँ ही बैठे बैठे
प्रेम के ढाई आखर
और उस में से
झांकता दिखता था
पूरा ..
सुनहरा रुपहला सा संसार
रंग बिरंगे सपने..
दिल पर छाया खुमार
मस्तमौला सी बातें
दिल में चढ़ता -उतरता
जैसे कोई ज्वार
और .....
अब न जाने
कितने आखर..
प्रेम भाव से ..
रंग डाले हैं पन्ने कई ..
पर कोई कोना मन का
फ़िर भी खाली दिखता है
दिल और दिमाग की ज़ंग में
अभेद दुर्ग की दिवार का
पहरा सा रहता है ....
सोचता है तब मन
बेबस हो कर.....
तब और अब में
इतना बड़ा फर्क क्यों है ?

Monday, April 01, 2013

मूर्ख दिवस

मूर्ख दिवस

बहुत दिन हुए एथेंस नगर में चार मित्र रहते थे इनमें से एक अपने को बहुत बुद्धिमान समझता था और दूसरों को नीचा दिखाने में उसको बहुत मज़ा आता था एक बार तीनों मित्रों ने मिल कर एक चाल सोची और उस से कहा कि कल रात हमे एक अनोखा सपना दिखायी दिया सपने में हमने देखा की एक देवी हमारे समाने खड़ी हो कर कह रही है कि कल रात पहाडी की चोटी पर एक दिव्य ज्योति प्रकट होगी और मनचाहा वरदान देगी इसलिए तुम अपने सभी मित्रों के साथ वहाँ जरुर आना

अपने को बुद्धिमान समझने वाले उस मित्र ने उनकी बात पर विश्वास कर लिया और निश्चित समय पर पहाड़ की चोटी पर पहुँच गया साथ ही कुछ और लोग भी उसके साथ यह तमाशा देखने के लिए पहुँच गए . और जिन्होंने यह बात बताई थी वह छिप कर सब तमाशा देख रहे थे .धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी और रात भी आकाश में चाँद तारे चमकने लगे पर उस दिव्य ज्योति के कहीं दर्शन नही हुए और न ही उनका कहीं नामो निशान दिखा

कहते हैं उस दिन १ अप्रैल था बस फ़िर तो एथेंस में हर वर्ष मूर्ख बनाने की प्रथा चल पड़ी बाद में धीरे धीरे दूसरे देशों ने भी इसको अपना लिया और अपने जानने वाले चिर परिचितों को १ अप्रैल को मूर्ख बनाने लगे इस तरह "मूर्ख दिवस"का जन्म हुआ

अप्रैल के मूर्ख दिवस को रोकने के लिए यूरोप के कई देश समय समय पर अनेक कोशिश हुई परन्तु लाख विरोध के बावजूद यह दिवस मनाया जाता रहा है अब तो इसने एक परम्परा का रूप ले लिया| इस दिवस को मनाने वाले कुछ लोगों का कहना है कि इस को हम इसलिए मनाते हैं ताकि मूर्खता जो मनुष्य का जन्मजात स्वभाव है वर्ष में एक बार सब आज़ाद हो कर हर तरह से इस दिवस को मनाये हम लोग एक बंद पीपे जैसे हैं जिस में बुद्धि निरंतर बहती रहती है उसको हवा लगने देनी चाहिए ताकि वह सहज गति से इसको चलने दे तो ठीक रहता है

कहते हैं एक बार हास्य प्रेमी भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने बनारस में ढिंढोरा पिटवा दिया कि अमुक वैज्ञानिक अमुक समय पर चाँद और सूरज को धरती पर उतार कर दिखायेंगे .नियत समय पर लोगों की भीड़ इस अदभुत करिश्मे को देखने को जमा हो गई घंटो लोग इंतज़ार में बैठे रहे परन्तु वहाँ कोई वैज्ञानिक नही दिखायी दिया उस दिन १ अप्रैल था लोग मूर्ख बन के वापस आ गए !!

यह कहानी मुझे हर साल एक अप्रैल पर याद आ जाती है .....और सुना देती हूँ ..:) वैसे अपने कालेज टाइम में मेरे दोस्त मुझे "आधी मूर्ख "कहते थे (हरकते ही ऐसी थी ) अब भी हैं कोई कमी नहीं है ) :) क्यों कि जन्मदिन मेरा १४ अप्रैल को आता है (pliz note... ( gift teyaar rakhe ) ..इस लिए महीने के असर बना रहता है ...और बना भी रहना चाहिए ...दुनिया में बहुत से बुद्धिजीवी हैं ..अक्लमंद है ..और वो हैं तो हम जैसे बेवकूफी वाली हरकतों को करने की वजह से ही न ..क्यों झूठ कहा क्या मैंने :) ...:)प्यार देते हैं प्यार लेते हैं और मस्त रहते हैं :) हैप्पी अप्रैल फूल ...एन्जॉय दिस डे विद फुल hanste muskarate :)