जाने ये कैसे ख्याल आते हैं ...
जो थाम नहीं पाते
खुशनुमा वक़्त
के सिरे को
और
दर्द के हर पल को
एक कसक ....
न बीतने की दे जाते हैं ..........
आँखों में ठिठकी रह जाती है
ख्वाबो के देखने की चाहत
और
नींद अब बिकती है
चंद गोलियों की शकल में
जो कहीं गहरे नशे में
बिना ख्वाब के डूबी जाती है
सही में
बातें बेवजह हैं और बहुत सी हैं
जो थाम नहीं पाते
खुशनुमा वक़्त
के सिरे को
और
दर्द के हर पल को
एक कसक ....
न बीतने की दे जाते हैं ..........
आँखों में ठिठकी रह जाती है
ख्वाबो के देखने की चाहत
और
नींद अब बिकती है
चंद गोलियों की शकल में
जो कहीं गहरे नशे में
बिना ख्वाब के डूबी जाती है
सही में
बातें बेवजह हैं और बहुत सी हैं
10 comments:
नींद अब बिकती है
चंद गोलियों की शकल में .............
वाह ... बहुत सही कहा आपने .... अनुपम भाव संयोजन
vaakai neend aaj ke smay men khareedani hi padati hai . bahut sateek bat pakadi hai apane.
बात बेवजह नहीं....
हर बात की, हर दर्द की कोई वजह होती ज़रूर है.....
अनु
वाह!!! बहुत बढ़िया | आनंदमय | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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नींद अब बिकती है
चंद गोलियों की शकल में ,,
बहुत उम्दा भाव अभिव्यक्ति ,आभार
Recent Post : अमन के लिए.
नींद अब बिकती है
चंद गोलियों की शकल में
जो कहीं गहरे नशे में
बिना ख्वाब के डूबी जाती है ... बहुत खूब कहा है रंजना जी!
बाँध कहाँ पाया मैं सुख को,
वह आता और जाता रहता।
इतनी छोटी इतनी तीखी. बहुत सुंदर.
नींद बिकती है ... सच कहा है ...
क्या इन सब के लिए खुद ही जिमेवार नहीं हैं हम ... सहजता को जीवन से मिटा कर ओर हो भी क्या सकता है ...
बहुत खूब कहा है रंजना दीदी !
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