मौसमों सी रंग बदलती
इस दिल की शाखाएँ
कहीं गहरे भीतर
पनपी हुई है
जड़ों सी
जो ऊपर से सूखी दिखती
अन्दर से हरीभरी है
इन्हें कभी "बीते मौसम"
की बात न समझना
जरा सी फुहार मिलते ही
"सींच देगी यह"
दिल की उस जमीन को
जो दूर से दिखने में
बंजर सी दिखती है
प्यार का यह रंग है
सिर्फ उस" एहसास "सा
जो पनपता है सिर्फ
अपने ही दिए दर्द से
और "अपनी ही बुनी हुई ख्वाइशों से !!"
#रंजू भाटिया ..............
इस दिल की शाखाएँ
कहीं गहरे भीतर
पनपी हुई है
जड़ों सी
जो ऊपर से सूखी दिखती
अन्दर से हरीभरी है
इन्हें कभी "बीते मौसम"
की बात न समझना
जरा सी फुहार मिलते ही
"सींच देगी यह"
दिल की उस जमीन को
जो दूर से दिखने में
बंजर सी दिखती है
प्यार का यह रंग है
सिर्फ उस" एहसास "सा
जो पनपता है सिर्फ
अपने ही दिए दर्द से
और "अपनी ही बुनी हुई ख्वाइशों से !!"
#रंजू भाटिया ..............
12 comments:
बहुत सुन्दर....
प्रेमपगी रचना <3
अनु
बस एहसास ही तो हैं जो मन की धरती को लहलहा देते हैं या फिर बंजर बना देते हैं ॥ बहुत सुंदर रचना
बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.
वाह ... बेहतरीन
सुन्दर प्रस्तुति -
संवेदित अभिव्यक्ति
बहु खूब . सुन्दर . भाब पूर्ण कबिता . बधाई .
प्रेम में पगी पूरी रचना !
प्यार का रंग देते ही पनपने लगती हैं ये जड़ें ...
इन्हें तो पनपने देना चाहिए .. दर्द ही तो दवा है ..
अपने भाव उभरते रहते, रह रह कर ही।
जरा सी फुहार मिलते ही
"सींच देगी यह"
दिल की उस जमीन को
जो दूर से दिखने में
बंजर सी दिखती है
बहुत खूबसूरत रचना, नव वर्ष की मंगल कामनाऐ.
क्या बात है .... बहुत ही बढिया
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