Wednesday, July 04, 2012

बहाना जीने का

बीते कितने पल,
 लम्हे ज़िंदगी के
दिल के किसी तहखाने में क़ैद हैं
अभी भी वह अधलिखे पन्ने
कुछ अनमिटे से निशाँ
 पुरानी लाल डायरी के पन्नों पर 
यूं ही कुछ बिखरे लफ्ज़
जो आज भी जीवन के अक्स
को अपने आईने में दिखा जाते हैं

दबे हुए कुछ पुराने से किस्से
पक्की बनी इमारत में
आज भी किसी कच्ची मिटटी से
दरक कर अपनी आहट दे जाते हैं

बोझिल होती हुई हर पल साँसे
पर कहीं अभी भी दिल के कोने में
यौवन के मधुर निशाँ
और संजोये मीठे पलों की सौगाते
धड़क के दिल को जीने का संदेश दे जाते हैं

दबी हुई है बुझी राख में
अधलिखी  सी चिट्ठियां
और वह सूखे हुए गुलाब
आज भी
अपनी महक से प्रेम के हर पल को
जीवंत बना कर
एक और बहाना जीने का  दे जाते हैं .........

13 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

दिल जीने के बहाने ढूंढ ही लेता है....
बहुत सुन्दर रंजना जी..

अनु

सदा said...

अपनी महक से प्रेम के हर पल को
जीवंत बना कर
एक और बहाना जीने का दे जाते हैं
बिल्‍कुल सच कहा ...

vandana gupta said...

कभी कभी ज़िन्दगी जीने के बहाने ऐसे ही खोजा करती है।

Maheshwari kaneri said...

सच कहा प्रेम का हर बिता हुआ पल जीने का सबब देजाते है..बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति..रंजू जी..

shikha varshney said...

बीते पल संबल भी तो हैं..सुन्दर अभिव्यक्ति.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दबी हुई है बुझी राख में
अधलिखी सी चिट्ठियां
और वह सूखे हुए गुलाब
आज भी
अपनी महक से प्रेम के हर पल को
जीवंत बना कर
एक और बहाना जीने का दे जाते हैं .....

कोई तो बहाना हो जीने का ... बहुत सुंदर प्रस्तुति

वन्दना अवस्थी दुबे said...

दबी हुई है बुझी राख में
अधलिखी सी चिट्ठियां
और वह सूखे हुए गुलाब
आज भी
अपनी महक से प्रेम के हर पल को
जीवंत बना कर
एक और बहाना जीने का दे जाते हैं .....
बहुत खूब रंजना जी.

Arvind Mishra said...

क्षणों में जीने का अहसास जिसे है वह ताउम्र उन्ही की याद में जी सकता है -
अच्छी कविता!

Kailash Sharma said...

दबी हुई है बुझी राख में
अधलिखी सी चिट्ठियां
और वह सूखे हुए गुलाब
आज भी
अपनी महक से प्रेम के हर पल को
जीवंत बना कर
एक और बहाना जीने का दे जाते हैं .........

...बहुत खूब! अद्भुत अहसास...ये कुछ पल ही जीने के बहाने बन जाते हैं...

प्रवीण पाण्डेय said...

स्मृति के संबल पर टिकी भविष्य की आशायें..

दिगम्बर नासवा said...

दबे हुए कुछ पुराने से किस्से
पक्की बनी इमारत में
आज भी किसी कच्ची मिटटी से
दरक कर अपनी आहट दे जाते हैं ...

ऐसे ही दबे हुवे किस्से और उनकी आहट ... जीवन की संजीवनी होती है ... उनकी खुसबू रची होती है दिवारों में ...

Darshan Darvesh said...

एक बार बहाना मिल जाए , जिंदगी तो खोज लेते ही हैं हम |

विभूति" said...

जिन्दगी के यथार्थ को बताती सार्थक अभिवयक्ति....