ज़िंदगी में अक्सर हमे पूर्वभास होने लगता है .किसी का ख़्याल अचानक से आ जाता है, संसार में जो कुछ होता है उसके पीछे कुछ ना कुछ कारण ज़रूर होता है कुछ का पता लग जाता है ! कुछ हम नही जान पाते टेलीपेथी से कई बार हम दूर घटने वाली घटनाओं को महसूस कर लेते हैं! कभी कभी ऐसी बाते आ जाती है दिल में की यह काम नही करना चाहिए ,इसको करने से अच्छा होगा या बुरा होगा ..जबकि कुछ कारण हमारे पास नही होता .किसी व्यक्ति को देख के हम ख़ुश हो जाते हैं .किसी को देख के बात करने का दिल नही होता इसका कोई स्पष्ट कारण नही है !सेन्स ना केवल इंसानो के पास बलिक जानवारों के पास भी होती है ,जानवरों में होने वाली घटना का आभास हो जाता है जैसे भूचाल आने से पहले कुत्ते ज़ोर ज़ोर से भोंकने लगते हैं चिड़िया अपने घोंसलों से बाहर निकल आती है !
जब कोई काम ग़लत होना होता है तो बुद्धि भी वैसे ही हो जाती है इसके लिए एक पुरानी कहावत है की ""विनाश काले विपरीत बुद्धि ""कहते हैं ईश्वर ने जिसको दुख देना होता है उसकी बुद्धि पहले ही हर लेता है और यदि किसी के अच्छे दिन है तो सब काम ठीक से हो जाते हैं !!
पर आख़िर यह पूर्वभास होते कैसे हैं और क्यों होते हैं ? जब हम किसी घटना को सुनते हैं तो वो हमारे दिमाग़ पर अंकित हो जाते हैं और जब हम किसी घटना को सुनते हैं या देखते हैं उसका संकेत हमारे मस्तिष्क तक चला जाता है ,मस्तिष्क अपने पास संग्रहित अनुभवों से उस घटना का मिलान करता है तब कोई निर्णय लेता है यही निर्णय व्यक्ति को आभास या पूर्वभास के रूप में महसूस करता है ..पर कभी कभी हमारे इस निर्णय का अन्य कारणों पर भी प्रभाव पड़ता है जैसे परिवार का दबाब या अन्य कोई कारण !!
और अनुभवों के आधार पर हमेशा ही सब सही बात साबित हो यह सही नही है .कभी कभी हमारे अनुभवों से उल्टा भी कुछ घट जाता है ...अब कुछ घटनाओं पर हमारा कोई बस नही होता है ...
सकारात्मक और नकारात्मक का भी पूर्वाभासों पर प्रभाव पड़ता है अनुभवों के आधार पर पूर्वभासों पर इंसान अपनी भावी योजना बनता है अब यह बात अलग है की वो कितनी सफल हो पाती है कितनी नही ..इस लिए जैसे जैसे अनुभव बढता जाता है वैसे ही इन पर आधारित निर्णय भी सही होते जाते हैं ..
कभी कभी मौन रह कर भी मन की बात लोगों तक पहुँच ही जाती है ,शायद यही टेलीपेथिक सेन्स है इस के ज़रिए हम कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह जाते हैं! मन से मन के तार जुड़े होते हैं और मन से मन का अदृशय संवाद सा बन जाता है !कभी कभी ऐसा भी होता है की जो बात हम कहना चाहते हैं वह कोई और कह जाता है और जिस बात को दूसरा व्यक्ति कहना चाहता वही हमारे मुंह से निकल जाती है !
प्रकति ने मानव मस्तिष्क की सरंचना भी जटिल बनाई है और रोचक भी ...कब कई आदमी किसी वस्तु या व्यक्ति को देखते हैं तो उस पर सबकी प्रतिक्रिया अलग अलग होती है जबकि व्यक्ति वस्तु एक ही होती है माँ बाप अपने सब बच्चो का लालन- पालन एक जैसे करते हैं और अध्यापक एक ही तरह से कक्षा में पढाते हैं पर सब अलग अलग तरह से उसको लेते हैं, एक ही संकेत को अलग अलग रूपों में ग्रहण करने की क्षमता सिर्फ़ मानव मन में ही है और यही हमे बाक़ी प्राणियों से अलग करती है .हमारा अवचतेन मन भी एक ही बात को या एहसास को सपनो में या अवचेतन सोच में अलग ढंग से लेता है .!!
अगर हम सब बातों पर गौर करे तो जैसी जिसकी विचार धारा है वैसा ही प्रभाव सब चीज़ो पर पड़ता है अगर आकरण ही कोई पूर्वभास हो या आभास हो तो यो इसको गंभीरता से लेना चाहिए हो सकता हैं ,इस में हमारे अपने भविष्य के लिए कोई संकेत छिपा हो ,आज विज्ञान इतनी तरक्की के बाद भी मस्तिष्क की सरंचना को पूरी तरह से समझ नही पाया है अभी भी बहुत समझना बाक़ी है इस संबंध में और प्रयास भो होते रहेंगे और जानकारी मिल सकेगी !!
जब कोई काम ग़लत होना होता है तो बुद्धि भी वैसे ही हो जाती है इसके लिए एक पुरानी कहावत है की ""विनाश काले विपरीत बुद्धि ""कहते हैं ईश्वर ने जिसको दुख देना होता है उसकी बुद्धि पहले ही हर लेता है और यदि किसी के अच्छे दिन है तो सब काम ठीक से हो जाते हैं !!
पर आख़िर यह पूर्वभास होते कैसे हैं और क्यों होते हैं ? जब हम किसी घटना को सुनते हैं तो वो हमारे दिमाग़ पर अंकित हो जाते हैं और जब हम किसी घटना को सुनते हैं या देखते हैं उसका संकेत हमारे मस्तिष्क तक चला जाता है ,मस्तिष्क अपने पास संग्रहित अनुभवों से उस घटना का मिलान करता है तब कोई निर्णय लेता है यही निर्णय व्यक्ति को आभास या पूर्वभास के रूप में महसूस करता है ..पर कभी कभी हमारे इस निर्णय का अन्य कारणों पर भी प्रभाव पड़ता है जैसे परिवार का दबाब या अन्य कोई कारण !!
और अनुभवों के आधार पर हमेशा ही सब सही बात साबित हो यह सही नही है .कभी कभी हमारे अनुभवों से उल्टा भी कुछ घट जाता है ...अब कुछ घटनाओं पर हमारा कोई बस नही होता है ...
सकारात्मक और नकारात्मक का भी पूर्वाभासों पर प्रभाव पड़ता है अनुभवों के आधार पर पूर्वभासों पर इंसान अपनी भावी योजना बनता है अब यह बात अलग है की वो कितनी सफल हो पाती है कितनी नही ..इस लिए जैसे जैसे अनुभव बढता जाता है वैसे ही इन पर आधारित निर्णय भी सही होते जाते हैं ..
कभी कभी मौन रह कर भी मन की बात लोगों तक पहुँच ही जाती है ,शायद यही टेलीपेथिक सेन्स है इस के ज़रिए हम कुछ ना कह कर भी बहुत कुछ कह जाते हैं! मन से मन के तार जुड़े होते हैं और मन से मन का अदृशय संवाद सा बन जाता है !कभी कभी ऐसा भी होता है की जो बात हम कहना चाहते हैं वह कोई और कह जाता है और जिस बात को दूसरा व्यक्ति कहना चाहता वही हमारे मुंह से निकल जाती है !
प्रकति ने मानव मस्तिष्क की सरंचना भी जटिल बनाई है और रोचक भी ...कब कई आदमी किसी वस्तु या व्यक्ति को देखते हैं तो उस पर सबकी प्रतिक्रिया अलग अलग होती है जबकि व्यक्ति वस्तु एक ही होती है माँ बाप अपने सब बच्चो का लालन- पालन एक जैसे करते हैं और अध्यापक एक ही तरह से कक्षा में पढाते हैं पर सब अलग अलग तरह से उसको लेते हैं, एक ही संकेत को अलग अलग रूपों में ग्रहण करने की क्षमता सिर्फ़ मानव मन में ही है और यही हमे बाक़ी प्राणियों से अलग करती है .हमारा अवचतेन मन भी एक ही बात को या एहसास को सपनो में या अवचेतन सोच में अलग ढंग से लेता है .!!
अगर हम सब बातों पर गौर करे तो जैसी जिसकी विचार धारा है वैसा ही प्रभाव सब चीज़ो पर पड़ता है अगर आकरण ही कोई पूर्वभास हो या आभास हो तो यो इसको गंभीरता से लेना चाहिए हो सकता हैं ,इस में हमारे अपने भविष्य के लिए कोई संकेत छिपा हो ,आज विज्ञान इतनी तरक्की के बाद भी मस्तिष्क की सरंचना को पूरी तरह से समझ नही पाया है अभी भी बहुत समझना बाक़ी है इस संबंध में और प्रयास भो होते रहेंगे और जानकारी मिल सकेगी !!
21 comments:
ये बात तो सत्य है पूर्वाभास होता है इसे नकारा नही जा सकता हमारे खुद के साथ ऐसा ना जाने कितनी बार हुआ है।
आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूँ ऐसा अक्सर होता भी है .. सहज-सरल शब्दों में उत्कृष्ट प्रस्तुति .. आभार
पूर्वाभास कों नकारा नहीं जा सकता पर बहुत बार पूर्वभास होता है पर वो सही नहीं होता और इंसान उसे भूल जाता है ... जो पूर्वाभास सच हो जाता है उसे ही याद रखता है और पूर्वाभास पे विश्वास का सिलसिला या बहस चालू हो जाता है ...
सच क्या है ये तो पता नहीं ...
इस विषय पर कभी मैंने एक बहुत ही सटीक कार्यक्रम देखा था. आपने ठीक कहा हमारा मस्तिष्क हमें संकेत देता है. और उसे समझकर हम उचित कदम उठा सकते हैं.
Aisa hota hai kayee baar...
aane wali ghatnaon ke puurv mei sanket milte hain...
Manav Mn bahut jatil hai...
avchetan Mn mei kayee bar baaten dabi rah jaati hain.
*Bada hi interesting vihsy hai yeh!
होता है पूर्वाभास......
मगर शायद हमारा मन की स्वीकार नहीं कर पाता..
उलझ गयीं हूँ आपके लेख को पढ़ कर...
अनु
बड़ा मुश्किल है कई सवालों का जवाब ढूंढ पाना
आप की बात सही है, पूर्वाभास होता है ....मुझे भी कई बार होता है...
पूर्वाभास कई बार होता है जो हम अपनी ही उलझनों में उलझे समझ नहीं पाते ..... अच्छी प्रस्तुति
शब्दों के अतिरिक्त भी संवाद है, यह तो निश्चित है..
आपकी बातों को सच मान रही हूँ पूर्वाभास होता है यह मैं अपने व्यक्तिगत नजरिये से कह सकती हूँ हमे हमारा मस्तिष्क सचेत भी करता है पर हम उससे ज्यादा दिल की सुनकर मार खा जाते हैं ...बहुत अच्छा अप्रतिम लेख के किये बधाई
बिलकुल ...अक्सर होता है ...ऐसा ...
कहीं पढ़ा था कि अगर हम दिल से किसी के बहुत ज्यादा करीब होते हैं, तो हमें बात करने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती... दिल की बात दिल तक पहुँच जाती है... तभी से एक ख्याल मन में उमड़ता-घुमड़ता रहता है कि क्या सच में ऐसा होता है ? विरले ही होते होंगे ऐसे लोग.. क्या आज की दुनिया में संभव है ?
कहीं पढ़ा था कि अगर हम दिल से किसी के बहुत ज्यादा करीब होते हैं, तो हमें बात करने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती... दिल की बात दिल तक पहुँच जाती है... तभी से एक ख्याल मन में उमड़ता-घुमड़ता रहता है कि क्या सच में ऐसा होता है ? विरले ही होते होंगे ऐसे लोग.. क्या आज की दुनिया में संभव है ?
कुछ तो है जरुर...
बहुत सार्थक लेख...
सादर.
कुछ तो है ही जो पूर्वाभास करा देता है...उत्तम आलेख.
dil aur dimag ke tantu jab jud jate hain. to purvabhas hone lagta hai, aisa mujhe lagta hai.. kahin na kahin jab dimag pe dil havi ho jaye to hame samajh aane lagtee hai, kuchh to hone wala hai!! hai na !!
deja वू ढूंढिए गूगल पर और देखिये आपके विचार का साम्य वहां है क्या ?
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हमारा मस्तिष्क हमें संकेत देता है. और उसे समझकर हम उचित कदम उठा सकते हैं.बिलकुल ठीक कहा आपने पूर्णतः सहमति है आपके इस आलेख से बहुत ही सार्थक एवं विचारणीय आलेख।
कुछ मनोवैज्ञानिक मानने लगे हैं कि पूरा संसार एक अदृश्य सूत्र से बंधा हुआ है। प्रकृति में हो रही हर घटना हर किसी को किसी ने किसी तरह प्रभावित करती है। कहीं कम तो कहीं ज्यादा। कोई भी अछूता नहीं रहता।
इसके लिए एक केओस थ्योरी भी है। नेट पर सर्च करेंगी तो मिल जाएगी।
मुझे लगता है पूर्वाभास उसी केओस की फीलिंग है...
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