अर्पिता (कविता-संग्रह)
| कवयित्री- सीमा सदा
मूल्य- रु 200
प्रकाशक- हिंद युग्म,
1, जिया सराय,
हौज़ खास, नई दिल्ली-110016
(मोबाइल: 9873734046)
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अर्पिता .....
सीमा सिंघल जी का यह काव्य संग्रह मुझे पुस्तक मेले में शैलेश भारतवासी द्वारा मिला ...तब से अब तक मैंने इस काव्य पर समीक्षा करने लिए खुद को कई बार तैयार किया ..पर यह काव्य संग्रह ऐसा काव्य संग्रह नहीं है कि एक बार में पूरा पढ़ कर इस पर कुछ लिख दिया जाए ...इस में लिखी हर रचना अपने में आत्मस्त कर लेती है और धीरे धीरे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है ...सीमा जी का लिखा हुआ सबसे पहले मैंने उनके ब्लॉग
लाडली में पढा उस ब्लॉग पर उनकी लिखी पंक्तियाँ "
मन को छू लेते हैं अक्सर वो पल, जब कोई नन्हीं कली आपके जीवन, में लाती है खुशियां अनगिनत .. आंगन में बहारें होती हैं हर तरफ बस एक रागिनी होती है जो मन को भावविभोर कर देती है बिटिया जीवन को .."उनका बेटियों के प्रति संवेदनाओं को दर्शा दिया ...और फिर तब से उनके लिखे को लगातार पढने का सिलसिला चल पढ़ा .और जब उनका यह प्रथम काव्य संग्रह हाथ में आया तो दिल को बहुत ही ख़ुशी हुई ..शायद उतनी ही जितनी खुद सीमा जी को यह अपने हाथ में पहली बार लेते हुए हुई होगी ..क्यों कि मेरा मानना है की ज़िन्दगी की हर पहली बात बहुत ही ख़ास और बहुत ही प्रिय होती है ..और खुद के लेखन का पहला संग्रह तो प्रथम शिशु की ही तरह मासूम होता है ..जो आगे लिखने के साथ साथ निरंतर और भी परिपक्व होता जाता है ।
सीमा जी अपने ब्लॉग को
सदा के नाम से लिखती है ...और लिखी रचनाये मुझे इनके नाम की तरह सहज और सदाबहार सी लगी ..अब आते हैं
अर्पिता इनके काव्य संग्रह पर ..सीमा जी की लिखी हुई रचनाये अधिकतर छंद मुक्त हैं जिस में ज़िन्दगी से जुडी सच्चाई से जुडी बातें हैं जो आम ज़िन्दगी में सहज घटती है और उतनी ही सादगी से यह इस में ब्यान है ....पहली ही रचना .
फिर से जी लूँगी ..में सीमा जी ने सहजता से बेटी के रूप में खुद के बचपन को फिर से जी लेने की बात बहुत ही सहजता से लिख दी है जिस में अपने बचपन को ढंग से न जी पाने की शिकायत भी आ गयी है
मैं अपना बचपन
फिर से जी लूँगी
तू आ जायेगी तो
मिल जायेंगे सारे झगड़े
...पढ़ते पढ़ते पाठक खुद भी इसी बात से खुद को जुडा हुआ पाता है ...
सीमा जी के इस काव्य संग्रह को मैंने पढ़ते हुए चार हिस्सों में बँटा हुआ पाया ..पहला हिस्से इस पुस्तक संग्रह में माँ के प्रति समर्पित लगा ..बहुत ही भावपूर्ण तरीके से इन्होने माँ से जुड़े रिश्ते को हर तरीके से व्यक्त किया है
माँ लगता है ईश्वर ने
दुआओं की पोटली
तुम्हारे साथ भेजी है
जिसको तुम
सिर्फ अपने
बच्चो के लिए ही
खोल सकती हो ..
माँ से जुडी हर कविता बहुत ही भावुक कर देती है और हर शब्द यही कहता प्रतीत होता है
माँ कैसे तुम्हे एक शब्द मान लूँ/दुनिया हो मेरी पूरी तुम ....माँ से जुडी हर अभिव्यक्ति हर पढने वाले पाठक को अपनी ही बात कहती हुई लगती है ।
सीमा जी के इस काव्य संग्रह में दूसरा हिस्सा
यादों से जुडा हुआ है ....याद पर लिखी इनकी लिखी इस काव्य संग्रह में श्रृंखला वाकई यादों की बस्ती में ले जाती है ...यादों के रंग में डूब जाता है ...
यादे मन से जुडी रहती हैं /मन इनसे जुडा रहता है /हर ख्याल से जुडी होती है एक याद ..कभी बचपन /कभी जवानी .अपनों और बेगानों की ..सच ही तो है .यह यादें ही हमें ज़िन्दगी में खट्टे मीठे अनुभव कराती रहती है ...याद इक न रुकने वाला सिलसिला जिस पर किसी का जोर नहीं चलता है ....यादें जो गुमसुम भी कर देती है .आँखों में आंसू भी भर देती है और कभी खिलखिलाने मुस्कराने पर विवश कर देती है ....पर कहीं कहीं यह यादें बोझिल सी भी प्रतीत होने लगती है और विचारों में एक रुकावट सी बनाने लगती है ।
इस काव्य संग्रह के तीसरे हिस्से के रूप में मैं इसको सामाजिक चेतना ,देशभक्ति से जुडा हुआ पाती हूँ ..एक
कवियत्री होने के नाते वह इस विषय से अछूती रह भी कैसे सकती है ...इस विषय पर उनकी कलम बहुत सशक्त हो कर चली है
"दो बूंद "कविता इसका बहुत सुन्दर उदाहरण है .....
रिश्तों के रंग न बढ़ते हैं / न घटते हैं /वो तो उतना ही उभरते हैं .जितना हम अपनी मोहब्बत का रंग उन में भरते हैं ......आज के समय की यह बहुत बड़ी सच्चाई है ...जो उनकी लिखी इस तरह की रचनाओं में उभर कर आई है ....और देशभक्ति से जुडी उनकी गजल पढ़ते ही दिल में एक उमंग का संचार हो जाता है ..
न ये तेरे न मेरा है भारत हर हिन्दुस्तानी का/रंग रंग के खिलते फूल जहाँ ये है वो चमन
इस के चौथे हिस्से को गजल और कुछ दिल से जुडी भावनाओं से जुडा पाते हैं ....
जवाब देने तक ...तेरी शिकायत ..कैसा है यह प्यार ..और मेरा नाम मत लिखना ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया ...
हथेली पर तुम मेरा नाम मत लिखना /कोई पढ़ न ले /बंद कर लोगी मुट्ठी को सबसे छिपाओगी ..बहुत ही मासूम और सादगी से भरी पंक्तियाँ है जो अनायास ही पढ़ते ही एक मुस्कान भी चेहरे पर ला देती है ..
गजल वाला भाग इस काव्य संग्रह का सबसे अहम् हिस्सा है ..जहाँ एक से बढ़ कर एक शेर अपनी बात अपने ही अंदाज़ में कहते हैं ..
टूटना शुभ होता है कांच का ...बेहतरीन गजल कही जा सकती है इस संग्रह में सीमा जी की .बाकी गजले में अपने आप में मुकम्मल है ...जो अपनी सरलता से पाठक के दिल में घर कर लेती है ...
चंद रोज़ का मुसाफिर है हर आदमी यहाँ /जिसने जो दिया उसको वही तो मिला है ....हर पढने वाला इस तरह के लिखे से खुद को जोड़ लेता है ..अमृता प्रीतम जी पर लिखी अमृत की बूंदों सी ..इमरोज़ की यादों में समाई अमृता की सही तस्वीर को ब्यान करती है ..
और तेरे ख्यालों में सदा देते रहे दस्तक वारिस शाह /किसी के ख़्वाबों में अमृता तू भी तो आई होगी ..ने तो मुझे इस में अपने होने का एहसास करवा दिया ..
बस इस संग्रह में जो एक बात खली वह यह कि कविताओं को यदि गजल और यादों के हिस्से की तरह माँ और बाकी कविताओं को भी कुछ अलग से स्थान दिय होता तो पढ़ते पढ़ते जो एक गति थम जाती है वह न थमती ..जैसे हम उनकी एक रचना "ख्यालो में घर कर गए" पढ़ के उस में डूब ही रहे होते हैं तो अगली रचना फिर से माँ पर आ जाती है फिर उस से अगली "कैसा है यह प्यार ."..यह पढने में कहीं अटका सी देती है ...यह मेरा ख्याल हो सकता है .बाकी हो सकता है कि किसी अन्य पाठक को पढ़ते हुए न लगे ....सीमा जी का यह प्रथम काव्य संग्रह अभी उनके लिखे की प्रथम सीढ़ी है ..जो निरंतर आगे बढ़ने की और अग्रसर है | जैसे जैसे उनका लेखन आगे बढेगा वैसे वैसे इस में और भी निखार देखने को मिलेगा ...वैसे भी हर किसी का लेखन उसकी अपनी भावनाओं का आईना होता है जिस में हम खुद को लिखने वाले के साथ देख सकते हैं ,वैसे ही यह काव्य संग्रह सरल सहज और बहुत मनमोहक है जो आपके बुक शेल्फ की शोभा को और भी बढ़ा देगा और अपने अन्दर समेटी बहुत सी रचनाओं के साथ साथ खुद को भी परखने का मौका देगा ..इस के सुन्दर नीले उपरी आवरण के रंग में आप खुद को भी असीमित भावनाओं के समुन्द्र में डूबता पायेंगे और अर्पित हो जायेंगे इस अर्पिता के प्रति!
रंजना (रंजू ) भाटिया