आठ- आठ -आठ का असर हम पर असर आखिर कर ही गया | पिछले बीते कुछ दिन यह बता गए कि जो हम सोचते हैं वह नही होता अक्सर जो तय होता है वह ही होता है | आठ -आठ -आठ हर टीवी चेनल पर सुनते सुनते लगा की पता नही क्या कहर बरपा होने वाला है इस दिन | शाम के ५ बजे पतिदेव घर पधारे और चाय पीते पीते मैंने कहा कि कुछ नही हुआ इस आठ आठ का असर यूँ ही हल्ला मचा देते हैं मिडिया वाले भी |
मुस्कराते हुए यह बोले ,''टीवी भी तुम्ही देखती रहती हो ..चलो मैं यह अलमारी हिल रही है इसको ठीक कर देता हूँ ...और कुछ देर बाद रसोई के पास से छन्नं से कई कप टूटने की आवाज़ आई .भाग कर देखा तो यह अपनी कटी ऊँगली को वाशबेसिन में धो रहे हैं और सब तरफ़ खून ही खून ..बाबा रे !!यह क्या कर दिया ...कुछ नही ऊपर लगे शीशे की शेल्फ को पकड़ कर ऊपर से कील उठा रहा था लगता है वह टूट कर ऊँगली काट गया है | ओहोहो आप भी देख कर काम नही कर सकते क्या ..मैं इतना सारा बहता खून देख कर घबरा गई थी
हल्ला मत मचाओ चलो डाक्टर के पास लगता है ज्यादा कट गई है .कैसे क्यों ? पूछने का अभी समय नही था ..भागी साथ वाले डाक्टर के पास ले कर इन्हे ..उसने कहा लगता है कि नस कट गई है कोई ...मूलचंद ,या सफ़दर ज़ंग ले कर जाओ ,मैं फर्स्ट एड कर देता हूँ ..|
वहां से ले कर इन्हे सफ़दरज़ंग भागी |क्यूंकि वहां एक दो बार इमरजेंसी में जाना हो चुका था कुछ वहां कि जानकरी थी कि कैसे जल्दी से सब होगा | वहां इमर्जेंसी में डाक्टर ने जल्दी ही देख कर कहा कि कमरा नम्बर १०५ में ले कर जाए इन्हे वही टिटनेस का इंजेक्शन भी लग जायेगा और स्टिचिस भी | पर वहां जा कर जैसे ही डाक्टर ने वह बंधी पट्टी खोली तो खून का फव्वारा मेरे अब तक लगातार आंसूं की तरह बह निकला ॥| "'
"अरे अरे"'! यह तो बहुत ज्यादा कट गया है आप इनको ओ टी में ले जाओ वहीँ से वह प्लास्टिक सर्जरी में रेफर कर देंगे आपको | मेरा सब्र का बाँध तो कब से साथ छोड़ चुका था पर यह मुझे यूँ ले कर ओ टी की तरफ बढे जैसे हाथ इनका नही मेरा कटा है | लगातार बहता खून देख कर मेरी घबराहट बढती जा रही थी और यह उतने ही सब्र से डाक्टर को सब बता रहे थे | आधे घंटे बाद डाक्टर ने ओ टी से बाहर आ कर कहा अब इन्हे पल्स्टिक सर्जरी वाली विंग में ले जाओ यहाँ मैंने जो करना था कर दिया है ..नस कट के अलग हो गई थी उसका खून बहना अब इतना खतरनाक नहीं है फ़िर भी आप जल्दी से जल्दी वहां पहुँचो ..|
यहाँ तक सब तुंरत फुरंत हुआ था पर प्लास्टिक सर्जरी में जा कर एहसास हुआ कि यह सही गवर्मेंट हॉस्पिटल है जहाँ इलाज डाक्टर की मर्ज़ी से ही होगा :) हम वहां ६.३० पर पहुँच गए थे और अब ८ बजने को थे डाक्टर का कोई अता पता नही | जो दो नर्स ड्यूटी पर थी वह इतने बुरे बुरे मुहं बना कर कह रही थी सब्र करो अभी आ जायेंगे डाक्टर शायद राउंड पर होंगे ..| दर्द यह सह रहे थे और तकलीफ मुझे हो रही थी ऐसे में सब्र कहाँ |
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८.१५ पर डाक्टर साहब पधारे और देख कर कहा कि एक्स रे करवाओ पहले फ़िर आगे का काम होगा जब एक्स रे की रिपोर्ट आ जाए नर्स को बता देना वह मुझे बुला लेगी बहुत रूखे ढंग से कह कर चले गए |
अब इन्हे ले कर एक्स रे करवाने भागी | वहां एक्स रे वाले ने कहा एक घंटे बाद आ कर रिपोर्ट लेना |
कहाँ फंस गए हम यह सोच रही थी मैं और यही सोच कर इनसे कहा की चलो कहीं और चलते हैं यहाँ तो देर लग रही है बहुत ॥
नहीं अब यही करवा लेते हैं फ़िर आगे का देख्नेगे राजीव ने कहा और मैं इस बन्दे की सहनशीलता देख रही थी कि इतना खून बहता देख कर भी उफ़ नहीं | एक घंटे के बाद एक्स रे मिला नर्स को बताया | उसने कहा कि अब तो डाक्टर साहब डिनर पर चले गएँ हैं अब जब आएंगे तब आयेंगे | मेरा पारा अब तक हाई पिच पर जा चुका था कहा आप उनके सेल पर फ़ोन करे यहाँ खून बहना बंद नही हो रहा है और वहां उनको डिनर की पड़ी है | यह मुझे रोक रहे थे कि यही होता है गवर्मेंट हॉस्पिटल में कुछ मत कहो यहाँ | नर्स ने दो तीन बार फ़ोन कर दिया उनके सेल पर |९.३० बजे डाक्टर जी पधारे
और नर्स जो अब तक हमें कह रही थी कि डाक्टर साहब कि मर्ज़ी जब आए मैंने तो आपके कहने पर फ़ोन कर दिया है | वह डाक्टर को देखते ही पासा पलट गई कि इन लोगों ने हल्ला मचा रखा था , अब क्या डाक्टर खाना भी न खाए ..उसके कहते ही मैंने उसकी तरफ़ गुस्से से जैसे ही देख कर डाक्टर साहब को कुछ कहने कि कोशिश की ही थी कि
वह गुस्से में जो गरजे कि आप लोग ख़ुद को समझते क्या है ? क्या इमर्जेंसी है क्या नही ...यह मुझे आपसे बेहतर पता है ..
तो लगा कि क्या यह डाक्टर बनते समय जो शपथ ग्रहण की जाती है वह भूल गए हैं वो याद दिलाऊं इन्हे या इस वक्त हमें इनकी जरूरत है चुप हो जाऊं ?
राजीव ने कहा सॉरी डाक्टर असल में यह घबरा गई थी सो जल्दी करने को कहा .!
''आप चुप हो जाइये ""
'।इतनी जल्दबाजी है तो किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में जाते यहाँ क्यों आए ? "
जी हाँ यही गलती हो गई हमसे मैंने गुस्से में कहा | राजीव ने जोर से मुझे आँखे दिखायी और कहा प्लीज़ डाक्टर साहब आप गुस्सा न हों | पर उस डाक्टर का गुसा शांत होने के मुझे कोई असार नही नज़र आ रहे थे | एक्स रे एक तरफ फेंक कर गुस्से से बोले साइन करिए यहाँ पर कि आप ही इस सर्जरी की जिम्मेवार है और शायद यह ऊँगली अब काम नही कर पाएगी ।मैं कोशिश करूँगा ॥ और जहाँ पहले गई थी वहां से लिखवा के लाये कि यह पुलिस केस नही है | मैं अभी सकते में खड़ी थी कि यह सुन कर और हाय ओ रब्बा अब यह कहाँ से पुलिस केस बन गया |
जाओ जाओ लिखवा लाओ राजीव ने फॉर्म दे कर मुझे जाने को कहा | उसके बाद राम राम कर के प्लास्टिक सर्जरी शुरू हुई जो तीन घंटे चली | यही लगता रहा बाहर बैठे हुए कि अन्दर वह गुस्सा शांत रखे और सब ठीक हो जाए | तीन घंटे बाद बाहर आ कर दवाई बतायी और सोमवार आने को बोला ,अब उनका गुस्सा शांत था |
रात के ३ बज चुके थे आठ -आठ -आठ अपना असर हम पर पूरी तरह से दिखा गई थी |
पर कल यानी कि सोमवार को जब ड्रेसिंग करवाने गई तो वहां इतना दर्द बिखरा हुआ था चारों तरफ़ कि देख कर दिल रो पड़ा और तब लगा कि हमारे लिए उस वक्त अपनी तकलीफ बहुत बड़ी थी ,पर उस डाक्टर के लिए नही |क्यूंकि वह सिर्फ़ एक ऊँगली कटी हुई नही देखता है वह तो यहाँ उन मरीजों को भी देखता है जो न जाने अपने शरीर का कौन कौन सा अंग खो कर उसके पास आते हैं और वह एक जीने की आस दे कर उन्हें ठीक करने की कोशिश में लगा होता है | यह सब देख कर उस डाक्टर के प्रति गुस्सा शांत हो गया और लगा कि दर्द बहुत है दुनिया में....और अपने उस छोटे से दर्द से जो बहुत बड़े हैं |फ़िर भी एक उम्मीद पर यहाँ आते हैं कि ठीक हो जायेंगे |और यही डाक्टर रूपी मसीहा उनके दर्द को कम कर देगा |
16 comments:
मानवीय आत्मीयता और सद्गुण आज देखने को नहीं मिलते, शिकायत करना बेहद आसान होता है , मगर हर एक की अपनी समस्यायें रहती हैं ! आपने आखिरी पंक्तियों में अपनी तकलीफ के बावजूद जिस सह्रदयता का परिचय दिया है उसके लिए मैं आपको शुभकामनायें देता हूँ ! काश हम सब एक दूसरे को ईमानदारी से समझने की कोशिश कर सकें !
जब कभी दर्द अपनी असहाय लगने लगे तो उठो और जा कर किसी भी अस्पताल का चक्कर लगाआओ। महसूस करोगे कि तुम्हारा दर्द दूसरे के दर्द को देखकर कम होगया।
रंजना जी सब से पहले तो आप के राजीव जी की सेहत के लिये,वो जलद से जल्द ठीक हो जाये, फ़िर आप ८,८,८ को बार बारमत दोहराये,अरे यह होनी थी,फ़िर उस डा० पर तरस खाने की कोई जरुरत नही,अगर मे आप की जगह होता तो उसे जरुर सब्क सिखाता, जब तक इन्हे कोई टोकने वाला ना मिले यह अपने आप को भगवान समझते हे,अब आप ही सोचे , जो काम इमरजेंसी का था उसे इस बेबकुफ़ डा० ने रात तीन बजे तक किया,उस ने कोई अहसान नही किया, उस पर केश करना आप का फ़र्ज बनता हे एक अच्छे नागरिक का फ़र्ज,अगर बुराई को जड से मिटाना हे तो कही से तो शुरुआत करनी होगी???
उम्मीद है अंकल जी की तबियत अब ठीक होगी।
अगर कोई इमर्जेंसी नही attend कर रहा था तो उस डॉ की गलती है ...वैसे आल इंडिया... सफदरजंग के सामने है ....वहां इमर्जेंसी में रेसिडेंट डॉ की ड्यूटी रहती है शायद कुछ आसानी वहा होती .....आपको इतनी परेशानी हुई ओर इतना समय लगा इसमे कही ना कही तो गलती है.....आपने फ़िर भी ऐसी सोच रखी ...सचमुच आप अच्छी इंसान है
ईश्वर से ये कामना करता हूं की राजीव साहब जल्द से जल्द ठीक हो जाएं!
आपकी अंतिम पंक्तियाँ आपके उदार ह्रदय का स्पष्ट परिचय देती हैं!
रंजू जी
बहुत संयत भाषा में आप ने अपने और डाक्टर की परेशानियों का जिक्र किया है...और बहुत उदारता से डाक्टर को माफ़ भी कर दिया है...दरअसल इस तरह के केस देखते देखते डाक्टर अभ्यस्त हो जाते हैं और भावनाओं में ना बहते हुए ठंडे मन से अपने काम को अंजाम देते हैं...सरकारी हस्पतालों में व्यवस्था वैसे ही चोपट होती है और मरीजों की इतनी भीड़ होती है की डाक्टर संवेदन शून्य हो जाते हैं...
नीरज
राजीव जी कैसे हैं अब? स्टीच कटी? उंगली सही काम कर रही है?
वैसे, ड़ॉक्टर के नाम की भी चर्चा करतीं, तो बेहतर होता। दूसरे लोग तो सतर्क होते ही। कोयले के खान में हीरा मिलता है - यह सही है। वैसे, इस प्रसंग को पढ़ कर लगा कि हीरे की खान (खान = अस्पताल, हीरा = डॉक्टर) में 'कोयले' का मिलना भी मुमकिन है।
दर्द बहुत है दुनिया में....और अपने उस छोटे से दर्द से जो बहुत बड़े हैं |फ़िर भी एक उम्मीद पर यहाँ आते हैं कि ठीक हो जायेंगे |और यही डाक्टर रूपी मसीहा उनके दर्द को कम कर देगा |......
sach hai,par .....kaise hain bhaisaheb? us waqt aapka aakrosh sahi tha,agle din ki soch bhi sahi hai
आपने जिस तरह वर्णन किया, सारा चित्र आँखों के सामने उभर आया.. वैसे बहता खून देखना सबके बस की बात नही होती..राजीवजी जल्दी ठीक हो जाएँगे...सफदरजंग अस्पताल के साथ तो हमारी भी कुछ यादें जुड़ी है..मम्मी और वरुण के लेकर..इसमे कोई शक नही कि सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर अनुभवी होते हैं लेकिन जो रोगी हमारे लिए इकलौता प्यारा रिश्ता होता है उनके लिए कोई हज़ारवाँ नम्बर ही होगा. फिर भी इस व्यवसाय से जुड़े डॉक्टर का मुस्कान भरा ढाँढस चमत्कार कर सकता है.
राजीव जी शीघ्र स्वास्थय लाभ करें, यही मेरी कामना है. अपडेट जरुर दें, चिन्ता लगी रहेगी.
बाकी सारा किस्सा हजारों बार देखा सुना है. न जाने क्यूँ कुछ नहीं बदलता. अफसोस होता है.
अरे यह आठ-आठ-आठ हो या सात-सात-सात!! सकारी अस्पताल, दफ्तर का हाल बदलने वाला नहीं है.
हाँ आपके पति का धैर्य सराहनीय है. भगवान् करे वो जल्दी ही स्वस्थ हो जाएँ.
ऐसे बद्तमीजों का तो सेल फ़ोन से फोटो भी लेना चाहिए और पूरे नाम पते के साथ विस्तार से रिपोर्ट छापना चाहिए! पैसे और घमंड के अलावा कुछ और है इनके पास?
कैसी तबियत है अब?
रंजू जी,
आपकी आपबीती दास्ताँ पढी, मानवता के उड़ते परखच्चों की ऐसे ही दास्ताँ नित ही मिल रही है. अपनी परेशानी छोड़ बाकी सभी के लिए हम संवेदन शून्य से क्यों हो जाते हैं, शायद स्वार्थ के चलते. इसी पर मेरी लिखी एक श्रद्धामय कविता पर नज़ारे इनायत करें..........
श्रद्धा
(३५)
गहन विचारों में है जाता कौंन
सतही बातें ही होती रहती है
गैरों के दर्दों को है किसने समझा
अपनी तो जान निकलती रहती है
थोड़े पल को तो करो मुक्त, खो
जाने को, गैरों के अहसासों में
श्रद्धा स्वयं अवतरित होगी मन में
'मानवता' नहीं अनजानी रहती है
आशा है अभी राजीव जी की सेहत में काफी सुधार होगा. हमारी दुवाएं आप सब के साथ हैं.
चन्द्र मोहन गुप्त
दर्द का अहसास उसे ही होता है जिस की उंगली कटती है। पर आज देखा कि किसी और को यह अहसास शायद और अधिक होता है।
चिकित्सक के पास सभी तरह के रोगी होते हैं, उन में वह गंभीरतम को पहले देखेगा। लगातार काम करने पर होने वाली थकान के बाद कुछ सुस्ता कर थकान उतारने का मन करता है। लेकिन जब चिकित्शक यह करता है तो लगता है वह लापरवाही करता है। मैं ने देखा है अनेक चिकित्सक नींद भी पूरी नहीं ले पाते।
राजीव जी के स्वस्थ होने के लिए शुभकामना।
और हमें आज पता चल रहा है... चलिए अब तक तो सब ठीक हो गया होगा.
व्यवस्था का क्या करें... रोज़ सुनाने को मिलता है.
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