महीने के आखिरी दिन चल रहे हैं ...रसोई घर में डब्बे खाली पड़े हमे मुंह चिढा रहे हैं .[जिन में हमे बुश का चेहरा नज़र आ रहा है ].सच में हम बहुत खाने लगे हैं ..पहले तो ऐसा नही होता था ..लगता है बुश साहब की नज़र लग गई हमे ..अब डिब्बे भी क्या करे पहले कभी हरे भरे रहते थे तो कारण था कि किलो दालें उतने में आ जाती थी जितनी में अब उनकी मात्रा आधी भी नही रह गई है .... इस बार जब सबसे सस्ते कहे जाने वाले बाज़ार से राशन लेने गए तो वहाँ जा कर जब आटे दाल का भाव देखा तो सच्चीमुची नानी बहुत याद आई
जो चीज बहुत पहले किलो के हिसाब पहले ही आधा किलो लानी शुरू कर दी थी इस बार के रेट देख कर वह उस से भी आधी कर दी और जब बिल बना तो वह कहीं पहले से ज्यादा था ..तब लगा कि सच में बुश जी सही कहते हैं ..... इतना बिल और समान आधा .... सब्जी के भाव आसमान को छू रहे हैं तब उस पर यह पढने को मिले कि प्याज कहीं कहीं १ रुपए किलो बिक रहा है है तो लगता है कि वही अपनी दुनिया बसा ले जहाँ जहाँ सब सब्जी सस्ती है यानी की एक बार फ़िर से खानाबदोश बन जाए ..पर महंगा क्या करेगा और मिडल क्लास क्या करेगी चार दिन हल्ला बोल करेगी और फ़िर से वही सब होने लगेगा यानी की शो मस्ट गो ओन..
एक ख़बर में पढ़ा की सयुंक्त राष्ट्रीय खाद्य कृषि संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में ४.०८ करोड़ टन का जो अनाज बचा है... उस से बमुश्किल तीन चार सप्ताह ही दुनिया का पेट भरा जा सकता है और अगर बढती महंगाई पर रोक न लगाई गई तो कुछ महीनों में विश्व बैंक में गरीबों की संख्या में दस करोड़ की बढत हो जायेगी इसको सुन कर कई देशों में हेती ,बंगलादेश अफ्रीका आदि कई देशों में दंगे हो गए .....भूख से बेहाल लोगों को यह सुन के हैरानी होगी कि अमरीका और चीन जैसे देशों ने मोटे अनाज से एथनाल नमक जीवाश्म इंधन बनाने में इस बीच दस करोड़ मोटे अनाज का इस्तेमाल किया ..पर महंगाई सिर्फ़ भारतीयों के खाने से ज्यादा बढ़ी है ..चालिए आप लोग अपना ईंधन अभियान जारी रखिये क्यूंकि शो नही रुकना चाहिए और न ही आपके देश की तरक्की ......
इस वक्त सिर्फ़ भारत ही नही पूरा संसार महंगाई की मार झेल रहा है १०० रूपए कमाने वाला मजदूर आज रोटी नही खा सकता है और हम अब सब आपस में कुछ इस तरह जुड़े हुए हैं कि एक देश में होने वाली सिथ्ती का प्रभाव दूसरे देशो पर भी पड़ने लगता है ...जैसे तेल गैस का महंगा होना पूरी अर्थव्यवस्था को हिला देता है और यह यह हमारी ही ग़लत नीति का नतीजा है हमारे योजनाकार उद्योगिक उत्पादन .शेयर बाज़ार मुद्दों आदि के बारे में तो सोच रहे हैं पर भारत एक खेती वाला देश है उसके बारे में कुछ नही सोचा जा रहा है शायद वह नही समझ पा रहे हैं कि जब भूख लगती है तब कागज नही अनाज चाहिए ...सब चीजो को आगे बढ़ा के खेती को उपेक्षित कर दिया है किसान आज आत्महत्या कर रहे हैं खेती वाली जमीन पर कंक्रीट इमारतों के जंगल बन रहे हैं ..और जो खेती लायक जमीन बची है उस पर फूलों की खेती का लालच दिया जा रहा है ताकि उसको बाहर भेजा जा सके जिस से कुछ अमीर लोग अपनी प्रेमिका को दे के खुश हो जाए भले ही यहाँ बच्चो के मुहं का निवाला छीन जाए ..गलोबल वार्मिंग से तो वैसे ही मौसम के मिजाज का पता ही नही चल रहा है ...रही सही कसर यहाँ पूरी हुए जा रही है .
अभी से कुछ न सोचा गया तो बहुत ही मुश्किल हो जायेगा फ़िर से नई नीति और खेती के बारे में सोचना होगा .ताकि आगे आने वाली समस्या से निपटा जा सके ...सुना है चीन ने स्पेस में कुछ बीजों को भेजा था उस को जब धरती पर वापस उगाया गया तो बड़े बड़े अच्छे नतीजे सामने आए हैं ..कई किलो का कद्दू तरबूज जिस में गुण कई गुना ज्यादा हैं ..बड़े बड़े तरबूज ..और भी कई अच्छे नतीजे सामने आए हैं .पर बाकी देशों का उसको इस में सहयोग नही मिल रहा है .बुश साहब यही तरीके अजमा ले शायद संसार का भला हो जाए ...और फ़िर आप हमारी रसोई को नज़र न लगा सके ..और हमारी रसोई फ़िर से हरी भरी हो जाए ..और शो चलता रहे पर हँसता खेलता ..!!
6 comments:
अभी किसी ब्लोगर ने वो बिल भी छापा है जो बुश साहेब ने अपने परिवार के साथ नाश्ते के बाद दिया था ,इसलिए चिंता न करे.....खूब खाए हाँ हमारे नीतिकारो को जरूर इस बात का ध्यान रखना चाहिए की किसानों के हितों का पुरा ध्यान रखा जाये वरना वे भी विलुप्त जाति की श्रेणी मे आ जायेंगे.
wah bahut hi badhiya alekh ranju ji,kya khub kaha.
बिल्कुल जी. शो मस्ट गो ऑन.
"हमारे योजनाकार उद्योगिक उत्पादन .शेयर बाज़ार मुद्दों आदि के बारे में तो सोच रहे हैं पर भारत एक खेती वाला देश है उसके बारे में कुछ नही सोचा जा रहा है शायद वह नही समझ पा रहे हैं कि जब भूख लगती है तब कागज नही अनाज चाहिए ...सब चीजो को आगे बढ़ा के खेती को उपेक्षित कर दिया है किसान आज आत्महत्या कर रहे हैं खेती वाली जमीन पर कंक्रीट इमारतों के जंगल बन रहे हैं ..और जो खेती लायक जमीन बची है उस पर फूलों की खेती का लालच दिया जा रहा है ताकि उसको बाहर भेजा जा सके जिस से कुछ अमीर लोग अपनी प्रेमिका को दे के खुश हो जाए भले ही यहाँ बच्चो के मुहं का निवाला छीन जाए"
आपने सही कहा है. एक किसान होने के नाते यही बात मैं लोगों तक पहुंचाना चाहता हूँ. जब किसान ही नही रहेंगे, अनाज कौन उपजायेगा? और जब अनाज ही नहीं उपजेगा, लोग खाएँगे क्या? इस देश में अनाज उत्पादक किसानों के साथ सबसे अधिक सौतेला बर्ताव होता है.
हाँ.
सही कहा आपने.
घायल की गति घायल जाने.
पर शो मस्ट गो ओन
आपका लेख पढ़ा, सही कहा है आपने :
"हमारे योजनाकार उद्योगिक उत्पादन .शेयर बाज़ार मुद्दों आदि के बारे में तो सोच रहे हैं पर भारत एक खेती वाला देश है उसके बारे में कुछ नही सोचा जा रहा है शायद वह नही समझ पा रहे हैं कि जब भूख लगती है तब कागज नही अनाज चाहिए ...सब चीजो को आगे बढ़ा के खेती को उपेक्षित कर दिया है किसान आज आत्महत्या कर रहे हैं खेती वाली जमीन पर कंक्रीट इमारतों के जंगल बन रहे हैं ..और जो खेती लायक जमीन बची है उस पर फूलों की खेती का लालच दिया जा रहा है ताकि उसको बाहर भेजा जा सके जिस से कुछ अमीर लोग अपनी प्रेमिका को दे के खुश हो जाए भले ही यहाँ बच्चो के मुहं का निवाला छीन जाए"
कृषि प्रधान देश में कृषि ही प्रधान नही रह गयी है.. सोचने वाली बात है..
अभी तो डिब्बे खाली हो रहे है.. यही सिलसिला रहा तो घरों में रसोई भी ऑप्शनल होने वाली है..
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