कभी राह का हर निशान
हर पेड़ और हर पत्ता
खिलते फूलों की महक,
बहती मीठी मंद बयार
आसमान पर खिलता चाँद
और अनगिनत चमकते सितारे
मिल के हमने ...
एक साथ ही तो देखे थे...
तब से इन्ही अधखुली आंखों में
मेरी नींद तो क्वारी सो रही है
पर
जन्म दिया है ...
उन्ही अधूरे ख्यालों ने
सपनो को
जो दिन ब दिन
पल पल कुछ तलाश करते
आज भी तुझे हमराह बनाने को
उसी मंजिल को दिखा रहे हैं !!
14 comments:
बहुत सुंदर रचना.. बधाई..
"मेरी नींद तो क्वारी सो रही है
पर
जन्म दिया है ...
उन्ही अधूरे ख्यालों ने
सपनो को"
आपकी ये पंक्तियाँ सीधे रूह से संवाद स्थापित करती हैं, बहुत ही सुन्दर....
रंजना जी
एक गाना याद आ गया आप की कविता पढ कर
अश्कों में जो पाया था, वो गीतों में दिया है
इस पर भी सुना है कि जमाने को गिला है
जो साज से निकली है वो धुन सबने सुनी है
जो साज पे गुजरी है वो किस दिल को पता है
तब से इन्ही अधखुली आंखों में
मेरी नींद तो क्वारी सो रही है
और
जन्म दिया है ...
उन्ही अधूरे ख्यालों ने
सपनो को
पंक्तियों में आपने गजब ढा दिया है,बेहतरीन,
आलोक सिंह "साहिल"
दिल से लिखी बात कागज पर उतरी है .....सच ना ?
उन्ही अधूरे ख्यालों ने
सपनो को
जो दिन ब दिन
पल पल कुछ तलाश करते
आज भी तुझे हमराह बनाने को
उसी मंजिल को दिखा रहे हैं !!
बहुत खूब रंजना जी..
*** राजीव रंजन प्रसाद
वाह ! क्या बात है. बहुत बढ़िया.
बेहतरीन!!
बहुत नाज़ुक सा एह्सास लिखती रहीये यूँ ही
स्नेह्,
- लावण्या
तुम्हारे गीत तुम्हारे हामराह है...
चलते रहों वर्तनी थामे..
बहुत ही अच्छी लगी है......
मन तक उतर गई.
तुम जो लिखती हो,
उसे मैंने अक्सर महसूस किया है,
साझी सोच है.
सुंदर !
bahut hi aachi rachna
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