Thursday, April 24, 2008

उलझन ....

ईश्वर ने जब रचा यह संसार
तब शायद बनाया
ज़मीन को एक किताब
चाँद सितारों की जिल्द
से उसको सजा कर
फूलों और नज़ारों
से कुछ पन्ने लिख डाले
वही उस किताब में ही
लिखे कुछ बेकारी और
जुल्म के किस्से
और ....
कई अनचाहे दर्द भर डाले
अब यह उस किताब में लिखी
कोई सच्ची कहानी है
या खुदा की लिखावट
से छूटी हुई कुछ गलतियां ??

7 comments:

राकेश खंडेलवाल said...

कलम किसी की हो, लिखती है कागज़ लेकर एक कहानी
हँसी खुशी के साथ साथ ही होता लिखा आँख का पानी
केवल सांचा एक न रहता जिसमें ढलती रही कथायें
अगर जान लें हम ये सब तो, कभी न हो हमको हैरानी

अबरार अहमद said...

अच्छी कविता। बधाई।

डॉ .अनुराग said...

वही उस किताब में ही
लिखे कुछ बेकारी और
जुल्म के किस्से
और ....
कई अनचाहे दर्द भर डाले
अब यह उस किताब में लिखी
कोई सच्ची कहानी है
या खुदा की लिखावट
से छूटी हुई कुछ गलतियां ??

आज आप का वही रूप देखने को मिला ,जो मुझे खासा पसंद है....बस लिखती रहिये यूं ही.....

Kavi Kulwant said...

कलयुग में -
भगवन सुख से सो रहा, असुर धरा सब भेज ।
देवों की रक्षा हुई, मनुज फंसा निस्तेज ॥

SahityaShilpi said...

सुंदर तरीके से पूछा गया अच्छा प्रश्न!

Asha Joglekar said...

कई अनचाहे दर्द भर डाले जो अधिक तर नारी के हिस्से में आये । बहुत खूब सूरत कविता ।

Mukesh Garg said...

ati sunder