Tuesday, August 21, 2007

प्रतीक्षा


छलकता रहा उनके अधरो पर एक प्यार का सागर
नज़रों में प्यास भर के हम बस उन्हे देखते रहे

तड़पता रहा दिल कोई फ़रियाद लिए मासूम सी
एक आचमन को बस लब मेरे तरसते ही रहे

खिल के बिखरती रही चाँदनी सब तरफ़ फिजा में
हम नजरों में उनकी प्यार की किरण तो तक़ते रहे

बूँदे स्वाती की सीपी में जा के मोती बनी
हम भी उनसे ऐसे मिलन को तरसते रहे

जलाते रहे दिल में प्यार की रोशनी
अपने तक़दीर के अंधेरो से यूँ लड़ते रहे

कई ख़वाब सजते रहे इन बंद पलको में मेरी
हम हर ख्वाब में उनसे मिलने को भटकते रहे

छलकता रहा उनके अधरो पर एक प्यार का सागर
और हम बस एक आचमन को तरसते ही रहे !!


रंजना

21 comments:

Unknown said...

Bahut ache janab...

Yeh dilo ka fasal kuch is kadar baad gaya, ki jindagi ka noor bhi jaise dal gaya.. Jindgai ki chamak kya hoti hai ab muzse na phucho eh duniyaa walo,ki ab her chamak se ab yeh dil derne laga..

Unknown said...

ranjana mam..........aapki partiksha mujhe bahut achhi lagi....rly. mein.....
aapki likhi har pankti mein jaan rahta hai....main iska byan sabdon mein nahi kar sakta ki aapki likha mujhe kitna achha lagta hai;.....rly....mein mam....
bahut achha lagta hai...par mujhe thora time kam milta hai na...isliye nahi dekh pata huin...

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav said...

बहुत सुन्दर रचना, मन की अभिव्यक्ति बहुत ही सुन्दर ढंग से व्यक्त की है..

बधाई स्वीकारें.

loke said...

hi wakai kaafi achi hai kep it up

Anupama said...

तड़पता रहा दिल कोई फ़रियाद लिए मासूम सी
एक आचमन को बस लब मेरे तरसते ही रहे

जलाते रहे दिल में प्यार की रोशनी
अपने तक़दीर के अंधेरो से यूँ लड़ते रहे

kya baat kahi hai.....dil khush kar dita.....aacha laga pad karr....aur aapke blog ki chidiya bhi pasand aai

Luv
Anu

गीता पंडित said...

ranju ji,

ek bahut hee...
bhaav-praveen rachna...

man ko udvelit kar gayee..

aabhaar

badhaaee

Rakesh K Srivastava said...

बहुत ही उत्तम लिखा है आप ने, दिल के भावो कि अभिवय्क्ति शब्दो मे बहुत अच्छे तरीके से व्यक्त कि है. बधाई स्वीकारे.

Purva said...

खिल के बिखरती रही चाँदनी सब तरफ़ फिजा में
हम नजरों में उनकी प्यार की किरण तो तक़ते रहे....


good use of words......liked this poem a lot

Sanjeet Tripathi said...

"कई ख़वाब सजते रहे इन बंद पलको में मेरी
हम हर ख्वाब में उनसे मिलने को भटकते रहे"

सुंदर!!

Udan Tashtari said...

छलकता रहा उनके अधरो पर एक प्यार का सागर
और हम बस एक आचमन को तरसते ही रहे !!


-वाह, क्या बात है. बहुत सुन्दर. बधाई.

Unknown said...

Behaad khubsurat kavita likhi hay aapne ..' partiksha' .. kisi ne sahi kaha hay ' piyar ka maza partiksha main hi hay ... kyu ki asaani se kuchh mil jaye toh uski ahamiyat nahi hoti...

best of luck ranjana jee.

Divine India said...

सुंदर और साथ-2 आकर्षण है भाव में… प्रतीक्षारत मन की खामोश पुकार है यह…।

सुनीता शानू said...

कई ख़वाब सजते रहे इन बंद पलको में मेरी
हम हर ख्वाब में उनसे मिलने को भटकते रहे

छलकता रहा उनके अधरो पर एक प्यार का सागर
और हम बस एक आचमन को तरसते ही रहे !!

वाह क्या बात है भई इतनी रोमांटिक कविता दी...मज़ा आ गया...:)

शानू

Neeraj lohan -"pyasaa..." said...

laa jawaab
or shabd hee nahi hain mee pass

Unknown said...

ranjanaji ,first time i read ur post in this blog n i m really impress."pratiksha" is really very beautiful coverage of desperate emotions.

Anonymous said...

Kavita k bhaav bahut achhey hain.Aapkey priyatam ki "prateeksha" mein aapkee nishthaa,badhtee pavitrataa aur saath hee saath badhtee bechainee ko poornataha vyakt karney mein aap samarth hueen.Par shabdon mein thodaa her-pher ho jaata toh bhaav achhey se vyakt ho paatey!
Kavita achhee lagee(:

Mukesh Garg said...

badhai ranjna ji bahut acchi lagi aapki rachna

Anonymous said...

नमस्‍कार रंजनाजी
मैं एक नया पाठक हूं जिसने पहली बार आपकी रचनाओ को पढा है वेसे आपने अच्‍छा लिखा है किन्‍तु अगर वाक्‍यो को अपनी भावो के साथ तोड्कर लिखे तो उसे पढने मे और मजा आता है माफि चाहूंगा हमे शायद हिन्‍दी का ज्ञान कम है फिर भी मेने आपकी रचना को अपने हिसाब से कुछ इस तरह बांटा है-

छलकता रहा उनके अधरो पर
एक प्यार का सागर
नज़रों में प्यास भर कर हम
बस उन्हे देखते रहे

तड़पता रहा दिल
कोई मासूम सी फ़रियाद लिए
एक आचमन को
बस लब मेरे तरसते रहे

खिल के बिखरती रही चाँदनी
हर तरफ़ फिजाओं में
हमारी नजरे
उनके प्यार की किरण तो तक़ती रही

बूँदे स्वाती की
सीपी में जा के मोती बनी
हम भी उनसे
मिलन को तरसते रहे

वो जलाते रहे दिल में
प्यार की रोशनी
हम अपने ही तक़दीर
से यूँ लड़ते रहे

कई ख़वाब सजते रहे
इन बंद पलको में
हम हर ख्वाब में उनसे
मिलने को भटकते रहे

छलकता रहा उनके अधरो
पर एक प्यार का सागर
और हम बस एक आचमन को
तरसते ही रहे !!

Neeraj lohan -"pyasaa..." said...

ranjana ji
प्रतीक्षा
1 aachi rachna lagi mujhe

जलाते रहे दिल में प्यार की रोशनी
अपने तक़दीर के अंधेरो से यूँ लड़ते रहे
ye batate hai kaise koi jeene k liye pakaa nishchye kar k haar nahi manta

कई ख़वाब सजते रहे इन बंद पलको में मेरी
हम हर ख्वाब में उनसे मिलने को भटकते रहे
ye batata hai kaisi sab kuch hamaare pass hota hai or hum use paane k liye bhatakte rahte hai.

10x & regards
NEERAJ LOHAN

Mohinder56 said...

प्यार का एक धागा तो लोहे की जंजीरों से भी ज्यादा मजबूत होता है, बहुत सुन्दर भाव व शब्दों भरी रचना है.....मुझे जोशी जी के सुझाव से इत्तेफ़ाक है.

vandana gupta said...

ranjana ji
aaj pahli baar aapke blog par aayi hun. aap to kai baar mere blog par aayi hain uske liye aapka hardik dhanyavaad.

aapki har rachna bahut hi bhavpravan hai.