नारी है एक प्रेम-व्यंजना
उढ़ेलती जाती प्रेम रस को…
चढ़ा देती है अपने प्यार के पुष्प वो
देवता और इन्सान के चरणो में
छू लेती है जब वो कलम को
बन के सुंदर गीत प्रेम के,
विरह के निकल आते हैं
कविता में ढल के उस के बोल
बस प्रेम मय हो जाते हैं
चुनती है वह घर का आँगन
जहाँ सिर्फ़ प्रेम के बाग लहराते हैं
उड़ने के लिए चुनती है सिर्फ़ वही आकाश
जहाँ सिर्फ़ उसके सपने सज जाते हैं
गीत लिखती है वो वही सिर्फ़
जिसके बोल उसके पिया मन भाते हैं
प्रेम में स्त्री के दोनो जहाँ सिमट आते हैं
प्रेम में डूब कर कब रहता है उस को भान समय का
उसके शब्दकोष में बस प्यार के रहस्य ही समाते हैं
उढ़ेलती जाती प्रेम रस को…
चढ़ा देती है अपने प्यार के पुष्प वो
देवता और इन्सान के चरणो में
छू लेती है जब वो कलम को
बन के सुंदर गीत प्रेम के,
विरह के निकल आते हैं
कविता में ढल के उस के बोल
बस प्रेम मय हो जाते हैं
चुनती है वह घर का आँगन
जहाँ सिर्फ़ प्रेम के बाग लहराते हैं
उड़ने के लिए चुनती है सिर्फ़ वही आकाश
जहाँ सिर्फ़ उसके सपने सज जाते हैं
गीत लिखती है वो वही सिर्फ़
जिसके बोल उसके पिया मन भाते हैं
प्रेम में स्त्री के दोनो जहाँ सिमट आते हैं
प्रेम में डूब कर कब रहता है उस को भान समय का
उसके शब्दकोष में बस प्यार के रहस्य ही समाते हैं
22 comments:
बहुत खूब!!
नारी के प्रेम पर एक बेहतरीन रचना!!
जहां तक मै समझता हूं एक नारी जब प्रेम में डूबती है तो सारे जहां से उपर उठ जाती है, आसपास, दीन-दुनिया का होश ही नह रहता फ़िर उसे।
शुभकामनाएं
उसके शब्कोश में बस प्यार के रहस्य ही समाते हैं .... बेहद सुन्दर
बहुत सुंदर चित्रित किया है नारी के प्रेम भाव को, बधाई.
सुन्दर भावपूर्ण रचना.
लिखते रहें
अच्छा है!
Ati sundar ranjana ji..!!Wah!!
"women"....
a topic with more to feel!..
and inexpresssible! at times....
nice one as always!
i become word less....
bahut khoob chitran hai naari prem ka. behatareen rachna. aap ki har rachna hi khoobsurat hoti hai. aap badhaai ki paatr hain. keep writing.
Different from your regular themes
Well written ….
Thank you for sharing it with us
नारी स्वभावगत ही प्रेम-मय होती है वह तो प्रेम-प्रार्थना है…अद्भुत रुप में चित्रित यह कविता…नारी सौंदर्य की पराकाष्ठा को दर्शा रही है…।
you are written a great theory of women thats nice,
बहुत सुन्दर लिखा है.. नारी के सच्चे रूप की कल्पना और व्याख्या की है आपने जिसे केवल एक स्त्री ही कर सकती है
apki tarif karta raha to aap bhi kahogi gi kahi makhan to nahi laga rah hu. par kya karu aap likhta hi itna accha ho ki koi bhi bina tarif kye bina nahi reh sakta. or tarif karte karte mere pass kahi sbado ki kami na pad jaye. is liye bus itna hi ki wah wah bahut sunder
Dear,
mam, aapne bahut sunder rachna likhi hai.bahut khoob chitran hai naari prem ka. behatareen rachna. aap ki har rachna hi khoobsurat hoti hai. aap badhaai ki paatr hain. god bless u
Sanju
गीत लिखती है वो वही सिर्फ़
जिसके बोल उसके पिया मन भाते हैं
प्रेम में स्त्री के दोनो जहाँ सिमट आते हैं
प्रेम में डूब कर कब रहता है उस को भान समय का
उसके शब्दकोष में बस प्यार के रहस्य ही समाते हैं
लीजिये मैं हाजिर हो गया , आपके ब्लाग पर । अब तो आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं है।
बहुत खूब लिखा है आपने रंजना जी। स्त्री के प्रेम का बहुत अच्छा विश्लेशन किया है आपने ।बधाई स्वीकारें।
शुक्रिया संजीत ....सही कहा आपने नारी का सुकोमल दिल सिर्फ़ प्यार देना जानता है
शुक्रिया सजीव
शुक्रिया समीर
शुक्रिया राकेशजी ..अनूपजी.. आलोक जी..
bahut bahut shukriya ..shiny ,,deepak ...mistery..aditya..mohinder ji ..mukesh ...sanju ..dil se shukriya ...
shukriya tanha kavi ji ..aap aaye aur aapne dil se is racahna ko saraha ..thanks aapka
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