Thursday, April 12, 2007

मोहब्बत का दिया


जला तो दीया है किसी ने दिल में मोहब्बत का दिया
तलाशता है दिल अब बस उन्ही को यही कही

बेते हैं हम उस राहा पर उनके इंतज़ार में
जहाँ से तेरी राहगुज़र भी अब नही

हर पल बस देखा है तुझे अपने तस्वुर में
तुझे एक पल भी दिल भुला हो ऐसा कभी हुआ ही नही

तुझे सोचा है इतना महसूस किया है रूह से
कि बस अब तेरी जुदाई का भी हम पर कोई असर नही

6 comments:

Mohinder56 said...

मुहब्बत में वैसे भी (दिया ही दिया) है... लेने का सवाल ही नही...
सुन्दर गजल है मैं समझ रहा हू‍ आप ने जो दिया लिखा है उसका मतलब लाईट वाले दिये से है...

Udan Tashtari said...

बढ़िया है, अच्छा लगा. लिखती रहो!!

Anonymous said...

Nice wordings, seems that you poured out the inner core of your heart

रंजू भाटिया said...

SHUKRIYA MOHINDER :)
SAMIR JI ..
AND LOVERSLOBBY ..AAP AAYE AUR IS KO PASAND KIYA THANKS AGAIN

Sandeep said...

shabdo ka kaafi achaa prayog hai is rahchna mein...achii rachna ki liye badhai

Mukesh Garg said...

mohbat ka ijhar karna kafi aaccha laga