क्या कभी शीशे के उस पार झाँक कर देखा है तुमने
क्या कभी ख़ुद क अंदर जलते हुए ख़ावाबो को देखा है तुमने
क्या कभी हँसते हुए की आँखो में आँसू देखा है तुमने
क्या कभी पानी से जलते हुए शूलो को देखा है तुमने
क्या कभी बादलो में छुपे हुए अरमानो को देखा है तुमने
क्या कभी सोते बच्चे की बंद मुट्ठी को देखा है तुमने
क्या कभी कानो में तुमको सादा सुनाई दी है किसी दिल
क्या कभी इन मेहफ़ीलो में तन्हा पड़े हुए फूलो को देखा है तुमने
क्या कभी हाँ ,अब बोलो क्या कभी इस दिल की आँखो से मुझको देखा है तुमने????
7 comments:
बहुत सुन्दर कविता,बहुत सारे प्रश्न ।
घुघूती बासूती
एक साथ इतने सारे प्रश्न??
-रचना बढ़िया है.
टेम्पलेट में केलेन्डर और घड़ी को साईड बार मे ले आओ. उपर बहुत जगह घेर रहा है.
सुन्दर... मेरे शब्दों में
कितने है सवाल मगर, मिलता नही जबाव
क्यों फ़लसफ़े की बातें, करता है आदमी
Hello Ranju,
कोई देखने की आश ही क्यों करे जब साथ में
उसका ही भान है...पिछे देखे तो वो मिलती है
आगे की शिला पर भी वही बैठी रहती है...
अस्पष्ट छवि तो है मगर वही हर की बाहों
में झुला करती है।
shukriya mired ji ...
samir ji inhi sawwalo ke jawaab nahi milte[:)]
sahi kaha aapne mohinder ji
shukriya divyabh .....[:)]
khubsoorat rachna ke liye aapko badhai
shukriya sandeep ...
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