Wednesday, April 04, 2007

एक दर्द




दिल मेरा बन के बंज़ारा कहाँ कहाँ से ना गुज़रा
हर एक रिश्ता ज़िंदगी का एक दास्तान बन के गुज़रा

आती रही हिचकियाँ हमे तमाम रात
दिल में फिर से किसी का याद का बादल था उतरा

फिर से बहलया हमने अपने दिल को दे के झूठी तसलियाँ
पर यह किसा भी सिर्फ़ मासूम दिल को बहलाने का सबब निकाला

ना मिलेगा सकुन कभी मेरी इस भटकती रूह को
जो भी गुज़रा मेरे दिल कि गली से एक दर्द नया दे के गुज़रा !!

4 comments:

Mohinder56 said...

वाह वाह्..
दीवाने दिल की सदा यही है
खुशियाँ बाँट ली और ग़म तन्हा सहे
हम से दीवाने तो बस यूं ही जिया करते हैं

ghughutibasuti said...

अच्छी कविता है।
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

भाव अच्छे हैं.

Anonymous said...

Di ya ... bahut accha laga aap ki khud ki ek e-book dekh ke.

tosha