Monday, February 26, 2007

अधूरा जीवन


ज़िंदगी को पूरी तरह से जीने की कला
भला किसे आती है
कहीं ना कहीं ज़िंदगी में ........
हर किसी के कोई कमी तो रह जाती है

प्यार का गीत गुनगुनाता है हर कोई,
दिल की आवाज़ो का तराना सुनता है हर कोई
आसमान पर बने इन रिश्तो को निभाता है हर कोई.
फिर भी हर चेहरे पर वो ख़ुशी क्यूं नही नज़र आती है
पूरा प्यार पाने में कुछ तो कमी रह जाती है
हर किसी की ज़िंदगी में कही ना कही कुछ तो कमी रह जाती है

दिल से जब निकलती है कविता
पूरी ही नज़र आती है
पर काग़ज़ो पर बिछते ही..........
वोह क्यूं अधूरी सी हो जाती है
शब्दो के जाल में भावनाएँ उलझ सी जाती हैं
प्यार ,किस्से. कविता .यह सिर्फ़ दिल को ही तो बहलाती हैं
अपनी बात समझने में कुछ तो कमी रह जाती है

हर किसी की निगाहें मुझे क्यूं.........
किसी नयी चीज़ो को तलाशती नज़र आती हैं
सब कुछ पा कर भी एक प्यास सी क्यूं रह जाती है
ज़िंदगी में कही ना कही कुछ तो कमी रह जाती है
संपूर्ण जीवन जीने की कला भला किसे आती है ???

16 comments:

Gaurav Shukla said...

रंजना जी,

हिन्दी-युग्म के माध्यम से परिचित हुआ आपसे
मैं नहीं जानता था कि आप भी लिखती है और इतना सुन्दर लिखती है

आज आपको पढने का अवसर मिला
हार्दिक बधाई आपको

सस्नेह
गौरव

रजनी भार्गव said...

दिल से जब निकलती है कविता
पूरी ही नज़र आती है
पर काग़ज़ो पर बिछते ही..........
वोह क्यूं अधूरी सी हो जाती है
बहुत अच्छी लगी ये कविता,विशेषकर ये पंक्तियाँ.

Udan Tashtari said...

कविता सुंदर है.

आपको यहाँ http://udantashtari.blogspot.com/2007/02/blog-post_25.html टैग किया गया है. :)

Divine India said...

और…!!! इसबार "Salute"…।
बहुत अच्छा मैं यह चाहता हूँ अपने मित्रों से कि
कम-से-कम एक रास्तों पर ही अहसासों के पुल
अगर बनते हैं तो तस्वीर का रुख़ मात्र रेखाओं का
जाल बन जाता है… अपने भावनाओं को अन्य मोड़ों
तक भी पहुंचाना आवश्यक है कि एकरुपता में न बंध जाएँ…!!
यह इसी प्रकार का था मजा आ गया…बधाई!!

राकेश खंडेलवाल said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया समीर जी ....

समीर जी आपका लिखा दिल को बाँध लेता है ...बहुत ही भाव पूर्ण शेली में लिखते हैं आप ..
पहले में चिट्ठाकारी के विषय में नही जानती थे ..लिखती कई जगह थी पर वह संतुष्टि नही मिलती थी ..जो अब यहाँ लिखने में मिलती है ...

आपके प्रश्नो का उतर देने की कोशिश करती हूँ :)
१.आपके लिये चिट्ठाकारी के क्या मायने हैं?

यह मेरे लिए सच में अब एक नशा बन चुका है ..यहाँ पर सब इतना अच्छा और भाव पूर्ण लिखते हैं की अब बिना पढ़े रहा नही जाता है ..रोज़ नयी बात पढ़ने को मिलती है यहाँ पर

२.क्या चिट्ठाकारी ने आपके जीवन/व्यक्तित्व को प्रभावित किया है?

यहाँ सब एक परिवार की तरह हैं ..सो सबका लिखा हुआ पढ़ने से असर तो पड़ता ही है कई अच्छी बाते जानने को मिलती हैं ..कई के विचार हमे परभावित करते हैं ..अब यहाँ एक का नाम लेना मुश्किल है सच में कई के लिखा पड़ने से मेरे अंदर एक सकरात्मक सोच उत्पन हुई है ....
है?

३.आप किन विषयों पर लिखना पसन्द/झिझकते है?
मेरे पसंद के विषय कविता ही हैं मुझे ज़िंदगी की सचाई ,प्यार और दर्द पर लिखना बहुत पसंद है ...लिखना पसंद नही है तो किसी विवाद पर कुछ ऐसा नही लिखना चाहती की किसी का दिल दुखे ..क्यू की मेरे लिखने के मक़सद हमेशा दूसरो के दिल की बात अपने लफ़्ज़ो में कहना है ..अब इसमें कितनी कामयाब हूँ नही तो नही जानती .पर दिल कि बात हमेशा दिल से लिखने कि कोशिश रहती है मेरी !
४.यदि आप किसी साथी चिट्ठाकार से प्रत्यक्ष में मिलना चाहते हैं तो वो कौन है?

यह सबसे मुश्किल सवाल है ...क्यूं कि जिनको मैं इतने दिन से पढ़ रही हूँ उन सबसे मिलने की इच्छा होना स्वभाविक है ..अब इनमें किसी एक का नाम नही लिया जा सकता है ..दिल में बस एक उमीद है कि एक दिन सबसे ज़रूर मुलाक़ात होगी ...:)

५.आपकी पसँद की कोई दो पुस्तकें जो आप बार बार पढते हैं.

मेरी पसंद कि पुस्तके जो मैं बार -बार पढ़ती हूँ ..एक "अमृता प्रीतम" कि "रसिदी टिकट" और दूसरी "बशीर बद्र" कि "तुम्हारे लिए"

और अंत में आप सबका तहे दिल से शुक्रिया कि आप सब मेरा लिखा इतने प्यार से और इतने ध्यान से पड़ते हैं ..यही बात मुझे और अच्छा लिखने कि प्रेरणा देती है ..शुक्रिया
रंजू

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया ग़ौरव...आप यहाँ आए और इतने प्यार से इसको पढ़ा !!

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया रजनी ...यह पंक्तियाँ.
सची हैं इसलिए अच्छी लगी .. :)शुक्रिया

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया दिव्याभ ..कोशिश तो रहती है कि अपने लफ़ज़ को अलग ढंग से लिखा जाए ताकि एक पड़ने कि kashish बनी रहे और नये तरह से लिखने कि भी ...आपने इसको दिल से पढ़ा अच्छा लगा ..शुक्रिया

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया राकेश जी ..आप यहाँ आए और इतने प्यार से इसको पढ़ा

Mohinder56 said...

तेरे दिल में, मेरे दिल में, सबके दिले में
एक से भाव ही रह्ते हैं
कहीं ठहराव का आलम होगा
यहां ये दरिया बन बह्ते है

सुन्दर मनो-भाव भरी कविता.....बधायी हो

devesh said...

saans lete hain hum
poori nahin
thodi thodi

dil ki baatein bhi
dil mein hi reh jaati hai
shabd kuch kehte hain
aur kuch aankh
thodi thodi

waqt
bhula deta hai
har chot ko
lekin
phir bhi
tees deti hai
koi faans kahin
thodi thodi

रंजू भाटिया said...

shukriya devesh ji ..bahut khoob ...lines likhi hai aapne

Rising Rahul said...

रात के 1 बज रहे हैं और अभी अभी मैने खिचड़ी खाई है उससे आती डकारों के साथ ठीक वही सोच रहा हू जो कल सब्ज़ी काटते वक़्त सोच रहा था , हमेशा अपने मे ही क्यों डूबी रहती हैं आप ? इधर उधर और कुछ नज़र आता है ? कुछ उसपर भी शुरू कीजिए , कल्पना है , शब्द हैं ... सब कुछ तो है .

रंजू भाटिया said...

shurkiya Rahul [bazaar waala ] hm accha naam hai :) apne baare mein hi nahi sochati sirf ..bahut kuch sochati hun ..aap bataaye aap kis subject par suanna chahate hain ?
Mumbai bomb blast ? Female -Foeticide? par in pat likha yahan jab post kiya toh us ko yahan kisi ne nahi padha ..:)
waise shukriya aap yahan aaye aur inhe padha ..apana keemati waqt diya ..waise ek baat hai ki mere likhe hue ne kuch toh aapko parbhavit kiya jo aap sabazi katate waqt aur baad mein bhi sochate rahe :)shukriya ...

Anonymous said...

दिल से जब निकलती है कविता
पूरी ही नज़र आती है
पर काग़ज़ो पर बिछते ही..........
वोह क्यूं अधूरी सी हो जाती है

wah.. wah...
mere dil bhi kabhi aise sawaal karti hain!!