Saturday, February 24, 2007

निशानियाँ


जाते जाते माँग ली उसने सभी निशानियाँ अपनी
मौत देनी थी यूँ मुझे तो किश्तो में तो दी होती

थी ख़बर क्या एक दिन यह भी होगा
हमने तो अपनी साँसे तक उनके नाम थी कर दी

बदल गये वो भी हवाओ, की रुख़ की तरह
कुछ तो अपने जाने की ख़बर हमको दी होती

मिल जाती हमे पनाह उनकी बाहों में अगर
तो यह ज़िंदगी यूँ ना मुश्किल हुई होती

था वो बेबसी का आलम जब हम जुदा हुए
काश उस पल में यह दर्द की दास्तान ना हुई होती

माँगना था तो माँग लेते हमसे वो हमारी जान भी
पर यूँ अपने बीते पलो की निशानियाँ तो ना माँगी होती

8 comments:

Anonymous said...

बदल गये वो भी हवाओ, की रुख़ की तरह
कुछ तो अपने जाने की ख़बर हमको दी होती

.. apne dil ka dard wo mere dil me chhod gya,
jaate jaate wo dil ke ddayre ka ek wark aur mod gaya.

Jitendra Chaudhary said...

बहुत सुन्दर लिखा है, इसी बात पर एक गज़ल याद आ रही है,मुलाहिज़ा फरमाएं :

जाते जाते वो मुझे, अच्छी निशानी दे गया।
उम्र भर दोहराऊंगा, ऐसी कहानी दे गया।

उस से मै कुछ पा सकूं, ऐसी कहाँ उम्मीद थी
गम भी वो शायद बराए मेहरबानी दे गया

खैर मे प्यासा रहा, पर उसने इतना तो किया
मेरी पलकों की कतारों को वो पानी दे गया।

उम्र भर दोहराऊंगा.....

Reetesh Gupta said...

माँगना था तो माँग लेते हमसे वो हमारी जान भी
पर यूँ अपने बीते पलो की निशानियाँ तो ना माँगी होती

बहुत सुंदर ...बधाई

Udan Tashtari said...

अच्छी रचना है, बहुत खूब.

Divine India said...

मेरी और लोगों से थोड़ी विपरीत स्थिती है…मुझे इस बार वह धार नहीं दिखी जो अक्सर देखता आया हूँ।
तुम्हारा प्रयास उत्कृष्टतम हो यह देखना है…।

Divine India said...

put a "Statcounter" in ur blog this is very imp..accessory...do it fast.Thnx.

रंजू भाटिया said...

shukriya manya ....sahi kaha aapne ..

shukriya jitendra ji..bahut hi khunsuart lines hain .....shukriya ....mujhe bhi yah ghazal bahut pasand hai ...


shukriya ritesh ji ...


shukriya sameer ji ...

रंजू भाटिया said...

shukriya divyabh ...aapke kahe ne kuch naye vichaaro ko naye tareeke se likhne ki prerena di ...