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Sunday, June 19, 2022

खत अमृता के बच्चों के नाम भाग एक

 खिड़कियां... यह वो संग्रह है जिसमे सोवियत रूस से प्यारे से खत नवराज़ और कंदला दोनो बच्चों को लिखे गए हैं। बेहद खूबसूरत अंदाज में अमृता द्वारा..



खत बच्चों के नाम भाग एक 


https://youtu.be/WQdPH7ER4jQ

मेरे प्यारे बच्चों,

तुमने बचपन में यह कहानी तो सुनी होगी कि एक थी शहजादी। उसे किसी दुरात्मा का श्राप लग गया था और वह सौ बरस सोई रही। फिर एक दूर देश का शहजादा आया ,और उसने जादू की छड़ी से उस शहजादी को जगा लिया। मैं तुम्हे आज जिस घाटी से पत्र लिख रहीं हूं इस घाटी की कहानी भी उस परी जैसी है।


आगे पूरा ख़त सुनिएगा मेरी आवाज़ में इस लिंक में .. रोचक पत्र हैं यह अमृता के बच्चों के नाम । आज समझिए इसका यह पहला भाग है आगे सिलसिला जारी रहेगा। 

चैनल को लाइक और सब्सक्राइब करना ना भूलें ,ताकि आगे के पत्र आपको भी नवराज और कंदला के साथ मिलते रहें।

https://youtu.be/WQdPH7ER4jQ


Monday, June 13, 2022

कोई इंसान नज़र आए तो बुलाओ उसको



इक ऐसी किताब के पन्ने से लिए शब्द ,जो आज के वक्त की भी सच्चाई ब्यान करते हैं, आज का सब माहौल देख कर समझ में नहीं आ रहा कि हम आगे बढ़ रहे हैं विकास की तरफ या फिर से बंटवारे के वक्त की तरफ लौट रहे हैं...

 https://youtu.be/sSa1_mabHJk


पत्थर तो पत्थर है ,वो ग़लत हाथो में आ जाए तो किसी का जख्म बन जाता है ,किसी माइकल एंजलो के हाथ में आ जाए तो हुनर का शाहकार बन जाता है , किसी का चिंतन उसको छू ले तो वह शिलालेख बन जाता है ।वो किसी गौतम को छू ले तो व्रजासन बन जाता है .और किसी की आत्मा उसके कण कण को सुन ले तो वह गारेहिरा बन जाता है ।


इसी तरह अक्षर अक्षर है ..
उस को किसी की नफरत छू ले तो वह एक गाली बन जाता है ,वो किसी आदि बिन्दु के कम्पन को छू ले तो कास्मिक ध्वनि बन जाता है। वो किसी की आत्मा को छू ले तो वेद की ऋचा बन जाता है ,गीता का श्लोक बन जाता है ,कुरान की आयत बन जाता है ,गुरु ग्रन्थ साहिब की गुरु वाणी बन जाता है ।


और इसी तरह मजहब एक बहुत बड़ी संभावना का नाम है ।  वह संभावना किसी के संग हो ले तो एक राह बन जाती है । कास्मिक चेतना की बहती हुई धारा तक पहुँचने की और हर मजहब की जो भी राहो रस्म है -वो एक तैयारी  है  जड़  में से चेतना को जगाने की ।


   चेतना की पहचान "मैं "के माध्यम से होती है और मजहब उस "मैं "को एक जमीन देता है , खडे होने की वह उसको अपने नाम की पनाह देता है । लेकिन यहाँ एक बहुत बड़ी संभावना होते होते रह जाती है । मजहब में कोई कमी नही आती है ,कमी आती है इंसान में और मजहब लफ्ज़ की तशरीह करने वालों में ।


जब बहती हुई धारा को रोक लिया जाता है ,थाम लिया जाता है तो वो पानी एक जोर पकड़ता है .उस वक्त इंसान को एक ताकत का एहसास होता है .लेकिन यह ताकत चेतना की नहीं अहंकार की होती है । कुदरत पर भी फतह पाने की जिद बढ जाती है ,तब यह अहंकार  की ताकत नफरत .और कत्लो खून में बदल जाती है ।


दुनिया के इतिहास का हर मज़हब के  नाम पर खून कत्लो आम हुआ है ..और हम इल्जाम देते हैं मज़हब को इसलिए कि कोई इल्जाम हम अपने पर लेना नही चाहते हैं ।हम जो मजहब को अपने अन्तर में उतार नही पाते हैं | मजहब को अन्तर की क्रान्ति है स्थूल से सूक्ष्म हो जाने की और हम इसको सिर्फ़ बाहर से पहनते हैं । सिर्फ़ पहनते ही नहीं बल्कि दूसरों को भी जबरदस्ती पहनाने की कोशिश करते हैं ।

हमारी दुनिया में वक्त -वक्त पर कुछ ऐसे लोग जन्म लेते हैं -जिन्हें हम देवता ,महात्मा ,गुरु और पीर पैगम्बर कहते हैं । वह उसी जागृत चेतना की सूरत होते है ,जो इंसान से खो चुकी है । और हमारे पीर पैगम्बर इस थके हुए ,हारे हुए इंसान की अंतर चेतना को जगाने का यत्न करते हैं लेकिन उनके बाद उनके नाम से जब उनके यत्न  को संस्थाई रूप दे दिया जाता है तो उस वक्त वह यात्रा बाहर की यात्रा हो जाती है वह हमारे अंतर की यात्रा नही बन पाती है ।

आज हमारे देश के जो हालात है वह हमारे अपने होंठों से निकली हुई एक एक भयानक चीख हैं और हम जो टूटते चले गए , हमने इस चीख को भी टुकडों में बाँट लिया हिंदू चीख ,सिख चीख ,मुस्लिम चीख कह कर इस चीख का नामाकरण हुआ । इसी से जातिकरण हुआ और पंजाब बिहार ,गुजरात  बंगाल कह कर इस चीख का प्रांतीयकरण हुआ ।


पश्चिम में एक सांइस दान हुए हैं लेथ ब्रेज। उन्होंने पेंडुलम की मदद से जमीनदोज शक्तियों की खोज की ,और अलग अलग शक्तियों की पहचान के दर नियत किए   उन्होंने पाया कि...

१० इंच की दूरी से  जिन शक्तियों का संकेत मिलता है ,वह सूरज अगनी लाल रंग सच्चाई और पूर्व दिशा है ..

२० इंच की दूरी से धरती ज़िन्दगी गरिमा सफ़ेद रंग और दक्षिण दिशा का संकेत मिलता है ..

३० इंच की दूरी से आवाज़ ,ध्वनि ,चाँद ,पानी हरा रंग और पश्चिम दिशा का संकेत मिलता है

और ४० इंच की दूरी से जिन शक्तियों का संकेत मिलता है वह मौत की ,नींद की झूठ की ,काले रंग की और उत्तर दिशा की शक्तियां  है.


यही लेथ ब्रेज थे जिन्होंने उन पत्थरों का मुआइना किया जो कभी किसी प्राचीन ज़ंग में इस्तेमाल  हुए थे   और उन्होंने पाया  कि उन पत्थरों  पर नफरत और लड़ाई   झगडे के आसार इस कदर उन पर अंकित हो चुके थे कि  उनका  पेंडुलम ,वही दर नियत कर रहा था --जो उसके मौत का किया था ..

हमारे प्राचीन  इतिहास में एक नाम मीरदाद का आता है , वक्त का यह सवाल तब भी बहुत बड़ा होगा कि ज़िन्दगी से थके हुए , हारे हुए कुछ  लोग मीरदाद के पास गए तो मीरदाद ने कहा --हम जिस हवा में साँस लेते हैं ,क्या आप उस हवा को अदालत में तलब कर सकते हैं ? हम लोग इतने उदास क्यूँ हैं ? इसकी गवाही तो उस हवा से लेनी होगी ,जिस हवा में हम साँस लेते हैं और जो हवा हमारे ख्यालों के जहर में भरी हुई है ..

लेथ ब्रेज ने आज साइंस की मदद से हमारे सामने रखा  है कि हमारे ही ख्यालों में भरी हुई नफरत ,हमारे ही हाथो हो रहा कत्लोआम  और हमारे ही होंठों से निकला हुआ जहर ,उस हवा में मिला हुआ है ,जिस हवा में हम साँस लेते हैं .और वही सब कुछ हमारे घर के आँगन में ,हमारी गलियों में ,और हमारे माहौल की दरो दिवार पर अंकित हो गया है ।
और आज हम महाचेतना के वारिस नहीं ,आज हम चीखों के वारिस है ।आज हम जख्मों के वारिस हैं ।आज हम इस सड़कों पर बहते हुए खून के वारिस हैं। उन्ही की लिखी और मेरे द्वारा पढ़ी यह नज़्म आज सच के बहुत करीब है.. सुनिएगा और चैनल को सब्सक्राइब जरूर करिएगा । अग्रिम धन्यवाद 


https://youtu.be/sSa1_mabHJk


प्रस्तुती रंजू भाटिया


Friday, June 10, 2022

उठो वारिस शाह कब्रों से ...

 बहुत पहले की एक घटना याद आती, जब मां थी, और जब कभी मां के साथ उनके गांव में जाना होता, स्टेशनों पर आवाज़ें आती थीं-हिंदू पानी, मुसलमान पानी, और मैं मां से पूछती थी-क्या पानी भी हिन्दू मुसलमान होता है ?-तो मां इतना ही कह पाती-यहां होता है, पता नहीं क्या क्या होता है...

फिर जब लाहौर में, रात को दूर -पास के घरों में आग की लपटें निकलती हुई दिखाई देने लगीं, और वह चीखें सुनाई देतीं जो दिन के समय लंबे कर्फ्यू में दब जाती थीं...पर अखबारों में से सुनाई देती थीं-तब लाहौर छोड़ना पड़ा था...

थोड़े दिन के लिए देहरादून में पनाह ली थी-जहां अखबारों की सुर्खियों से भी जाने कहां-कहां से उठी हुई चीखें सुनाई देतीं...रोज़ी-रोटी की तलाश में दिल्ली जाना हुआ-तो देखा-बेघर लोग वीरान से चेहरे लिए-उस ज़मीन की ओर देख रहे होते, जहां उन्हें पनाहगीर कहा जाने लगा था... अपने वतन में-बेवतन हुए लोग....

चलती हुई गाड़ी से भी बाहर के अंधेरे में मिट्टी के टीले इस तरह दिखाई देते-जैसे अंधेरे का विलाप हो ! उस समय वारिस शाह का कलाम मेरे सामने आया, जिसने हीर की लंबी दास्तान लिखी थी-जो लोग घर-घर में गाते थे। मैं वारिस शाह से ही मुखातिब हुई...

https://youtu.be/uIzPv4ng6cg


उठो वारिस शाह-

कहीं कब्र में से बोलो

और इश्क की कहानी का-

कोई नया वरक खोलो....


पंजाब की एक बेटी रोई थी

तूने लंबी दास्तान लिखी

आज जो लाखों बेटियां रोती हैं

तुम्हें-वारिस शाह से-कहती हैं...

सभी कैदों में नज़र आते हैं

हुस्न और इश्क को चुराने वाले

और वारिस कहां से लाएं

हीर की दास्तान गाने वाले...


तुम्हीं से कहती हूं-वारिस !

उठो ! कब्र में से बोलो

और इश्क की कहानी का

कोई नया वरक खोलो...

तब अजीब वक्त सामने आया-यह नज़्म जगह-जगह गाई जाने लगी। लोग रोते और गाते। पर साथ ही कुछ लोग थे, जो अखबारों में मेरे लिए गालियां बरसाने लगे, कि मैंने एक मुसलमान वारिस शाह से मुखातिब होकर यह सब क्यों लिखा ? सिक्ख तबके के लोग कहते कि गुरु नानक से मुखातिब होना चाहिए था। और कम्युनिस्ट लोग कहते कि गुरु नानक से नहीं-लेनिन से मुखातिब होना होना चाहिए था...

उन दिनों जनरल शाह नवाज़ अगवा हुई लड़कियों को तलाश रहे थे, उनके लोग, जगह-जगह से टूटी बिलखती लड़कियों को ला रहे थे-और पूरा-पूरा दिन-ये रिपोर्ट उन्हें मिलती रहतीं। मैंने कुछ एक बार उनके पास बैठ कर बहुत सी वारदातें सुनीं। ज़ाहिर है कि कई लड़कियां गर्भवती हालात में होती थीं...उस लड़की का दर्द कौन जान सकता है-जिसके दिल की जवानी को ज़बर से मां बना दिया जाता है....एक नज़्म लिखी थी-मज़दूर ! उस बच्चे की ओर से-जिसके जन्म पर किसी भी आंख में उसके लिए ममता नहीं होती, रोती हुई मां और गुमशुदा बाप उसे विरासत में मिलते हैं...

यहां अमृता की इस फेमस नज़्म को सुनिए..

https://youtu.be/uIzPv4ng6cg




Thursday, June 01, 2017

तू पास नहीं और पास भी है

मायूस हूँ तेरे वादे से
कुछ आस नही ,कुछ आस भी है
मैं अपने ख्यालों के सदके
तू पास नही और पास भी है ....

हमने तो खुशी मांगी थी मगर
जो तूने  दिया अच्छा ही किया
जिस गम का तालुक्क हो तुझसे
वह रास नही और रास भी है ....

         साहिर की लिखी यह पंक्तियाँ ..अपने में ही एक जादू सा जगा देती हैं .इश्क का जादू .. इश्क की इबादत .उस खुदा से मिलने जैसा ,जो नही पास हो कर भी साथ ही है ....यहाँ है और नही का मिलन वह मुकाम है .जो दिल को वहां ले जाता है जहाँ सिर्फ़ एहसास हैं और एहसासों की सुंदर मादकता ...जो इश्क करे वही इसको जाने ...जैसे हीर, राँझा -राँझा करती ख़ुद राँझा हो गई ...यह इश्क की दास्तान यूँ ही बीतते लम्हों के साथ साथ बीतती रही |जो इश्क करे वही इसको जाने ...जैसे हीर, राँझा -राँझा करती ख़ुद राँझा हो गई ...यह इश्क की दास्तान यूँ ही बीतते लम्हों के साथ साथ बीतती रही ...कहते हैं जब किसी इंसान को को किसी के लिए पहली मोहब्बत का एहसास होता है तो वह अपनी कलम से इसको अपने निजी अनुभव से महसूस कर लफ्जों में ढाल देता है | उसको इश्क में खुदा नजर आने लगता है |
इस से जुड़ी एक घटना याद रही है कहीं पढ़ी थी मैंने ..कि एक बार जिगर मुरादाबादी के यहाँ एक मुशायरे में एक नए गजल कार अपनी गजल सुनाने लगे .जिगर कुछ देर तो सुनते रहे फ़िर एक दम बोले कि आप अगर इश्क करना नही जानते तो गजल क्यूँ लिखते हैं ? जो एहसास पास ही नहीं उसका अनुभव  न आपकी रूह कर पाएगी न आपकी कलम ..

..एक रिश्ता जो कण कण में रहता है  और पूरी कायनात को अपने वजूद में समेट लेता है .यह एहसास  सिर्फ़ मन में उतरना जानता है ..किसी बहस में पड़ना  नही .....यह सदियों से वक्त के सीने में धड़कता रहा ...कभी मीरा बन कर ,कभी लैला मजनू बन कर ..और कभी शीरी फरहाद बन कर ..
और कभी बाहर निकला भी तो  कविता बन कर या शायरी की जुबान में .....जो चुपके से उन अक्षरों में ढल गई और सीधे एहसासों में उतर गई ..पर होंठों तक अपनी मोजूदगी नही दर्ज करा पायी ..
साहिर ने भी शायद यही मुकाम देखा .कुछ बोला नही गया तो  धीरे से यही कहा कि  मैं अपने ख्यालों के सदके ....

पलकों पर लरजते अश्कों में
तस्वीर झलकती है तेरी
दीदार की प्यासी आँखों में
अब प्यास नही और प्यास भी है ...

यही इश्क का रिश्ता जब सब तरफ़ फ़ैल जाता है तो इस में किसी दुरी का दखल नही होता .किसी भी तर्क का दखल नही होता और न ही किसी तरह के त्याग का ..वह तो लफ्जों के भी पार चला जाता है ....सोलाह कलाएं सम्पूर्ण कही जाती है पर मोहब्बत .इश्क सत्रहवीं कला का नाम है जिस में डूब कर  इंसान ख़ुद को पा जाता है ..जहाँ इंसान की चौथी  कही   जाने वाली अवस्था तक तो शब्द है पर अगली अवस्था पाँचवीं अवस्था है जिसको सिर्फ़ अनुभव से पाया जा सकता है .जहाँ न कोई संकेत है न कोई शब्द ..बस उस में एक अकार होने का नाम ही सच्चा रूहानी इश्क है ..जुलफियां खानम की लिखी पंक्तियाँ इस संदर्भ में कितनी सही उतरती है ..

तेरे होंठो का रंग ,दिल के खून जैसा
और रगों में एक मुहब्बत बह रही
लेकिन उस दर्द  का क्या होगा
जो तूने दिल में छिपा लिया ..
इतना ...
कि  किसी शिकवे का धुंआ नही उठने दिया ..
वो कौन था ?
अच्छा मैं उसका नाम नही पूछती
तेरी जुबान जलने लगेगी .....

Sunday, April 23, 2017

सितारों की कही सुनी

अमृता की आत्मकथा रसीदी टिकट में एक वाक्या है कि  किसी ने एक एक बार उनका हाथ देख कर कहा कि धन की रेखा बहुत अच्छी है और इमरोज़  का हाथ देख कर कहा की धन की रेखा बहुत मद्धम है .इस पर अमृता हंस दी और उन्होंने कहा की कोई बात नहीं हम दोनों मिल कर  एक ही रेखा से काम चला लेंगे ....

और इस वाकये के बाद उनके पास एक पोस्ट कार्ड आया जिस पर लिखा था  ----

मैं हस्त रेखा का ज्ञान रखती हूँ ..क्या वह हाथ देख सकती हूँ जिसकी एक रेखा से आप और इमरोज़ मिल कर ज़िन्दगी चला लेंगे .?

उस पोस्ट कार्ड पर नाम लिखा हुआ था उर्मिला शर्मा ..
वह पोस्ट कार्ड कुछ दिन तक अमृता जी के पास यूँ ही पड़ा रहा  .फिर उन्होंने उसका एक दिन  साधारण सा जवाब दिया आप जब चाहे आ जाए कोई एतराज़ नहीं है ...
उसी ख़त में उनका फ़ोन नम्बर भी था उन्हें लगा कि जब वह आएँगी तो फ़ोन कर के आएँगी ..पर ऐसा नहीं हुआ ..एक दिन वह अचानक आ गयीं उन्हें मालूम नहीं था    अमृता ऊपर की मंजिल पर रहती हैं ..इस लिए उन्होंने नीचे का दरवाजा खटखटाया  अमृता जी की बहू ने दरवाजा खोला तो उन्होंने अमृता जी का नाम सुन कर उन्हें ऊपर भेज दिया .

अमृता जी ने उन्हें पहचाना नहीं तब उन्होंने खुद ही बताया कि वह हाथ की रेखाए देखने आई है  और तुंरत अमृता से पूछा  नीचे कौन था उन्होंने कहा मेरी बहू ..वह एक मिनट चुप रह कर बोलीं कि उनके यहाँ कोई बच्चा नहीं होगा ..
अमृता ने सुना और कहा  आपको इस तरह से नहीं कहना चाहिए ..न तो आपने उसका हाथ देखा न जन्मपत्री ..फिर कैसे इतनी बड़ी बात कह सकती है ...

बस मैंने कह दिया .उर्मिल जी ने कहा ..अमृता को उनके बोलने का ढंग बहुत रुखा सा लगा ...लेकिन वह मेहमान थी ...बाद में चाय पीते हुए अमृता ने महसूस किया कि भले  ही वह बहुत रुखा बोलतीं है पर इंसान भली हैं ...
उन्होंने अमृता से पूछा  कि आपकी जन्मपत्री है ? नहीं तो  मैं बना देती हूँ ..
अमृता ने हंस कर कहा   मेरी जन्मपत्री तो मेरे पास नहीं हैं खुदा के पास होगी वहां से लेने मुझे जाना होगा ..
उन्होंने अमृता से फिर पूछा  अच्छा तारीख तो आपकी कहीं मैंने देखी है और साल भी  क्या समय  था आपको कुछ याद है ? यह सुन कर अमृता ने सोचा अपनी पूरी ज़िन्दगी के हालात "रसीदी  टिकट" में लिख दिया हैं क्या उनको पढ़ कर इस विद्या से वक़्त का पता  नहीं  चल सकता है ..? पर अमृता ने कुछ कहा नहीं ...और पूछा कि क्या अपने मेरी किताब पढ़ी है .. क्या सोचती है वह उसको पढ़ कर ?
उनका जवाब था  मैंने तो किताब नहीं पढ़ी क्यों कि किताबे पढने की मेरी आदत नहीं हैं ..वह मेरे पति ने पढ़ी है और उन्होंने ही बीच में मुझे यह एक वाक्या सुना दिया था वह बहुत  पढ़ते हैं ..
अमृता को उनकी बातों में बहुत सफाई और सादगी दिखी ..जो उन्हें अच्छी लगी ...इस तरह बात आगे बढ़ी  वह धीरे धीरे अमृता के घर आने लगी ...
  फिर एक दिन कुछ इस तरह से हुआ जब वह आयीं तो आते ही पूछने लगीं कि आपकी बहू यहीं है ?
जी  हाँ अभी तो यहीं है .उसके मायके वाले हिन्दुस्तान में नहीं लन्दन में हैं ...शायद वहां जाए ..
हाँ वह जायेगी पर वापस नहीं आएगी वह  अगस्त में यहाँ से चली जायेगी  .अमृता को सुन का अच्छा नहीं लगा ..पर कुछ कहा नहीं उन्होंने ..मई का महीना था .कुछ दिनों बाद उनकी बहू का जन्मदिन था   .जन्मदिन वाले दिन अमृता जी ने मेज पर केक और छोटा सा उपहार रखे तो यह देख कर उनकी  बहू अचानक से रोने लगी ..अमृता को समझ नहीं आया कि यह क्या हुआ क्यों रो रही हैं यह ..उन्होंने उसको बहुत प्यार किया और पूछा  आखिर हुआ क्या है ? पर उसकी  बजाय उनके बेटे ने कहा  वह तलाक ले कर वापस लन्दन जाना चाहती है और यहाँ नहीं रहना चाहती है पर आप सब लोगों को यह करते हुए देख  कर इसका मन भर आया है   यह सब अमृता जी नहीं जानती थी ..सुनते ही उन्हें उर्मिल की बात याद हो  आई   यह सब उन्होंने इतना पहले कैसे कह दिया ..?

बाद में वीजा मिलने की कुछ  दिक्कत हुई और उनकी बहू तलाक ले कर सितम्बर में लन्दन चली गयी .कभी न वापस आने के लिए ..
उसके बाद तीन साल तक उनके घर का माहौल यूँ ही उदास सा रहा पर उर्मिल का कहना   था कि उनका बेटा जरुर शादी  करेगा और उसके दो बच्चे होंगे .. पर बेटा शादी  के लिए तैयार ही नहीं था ..आखिर १९८२ में उसका मन बदला और उसकी   एक  लड़की से जान पहचान  हुई   से बात दुबारा    चली  पर उर्मिल जी ने कहा की यह इस लड़की   को न कहेगा .. और दूसरी लड़की आएगी इसके जीवन में ..अमृता ने कहा मैं नहीं अब मन सकती इसने खुद लड़की को पसनद किए है अब यह न नहीं कर सकता पर  न जाने अचानक से क्या हुआ उनके लड़के ने उस लड़की से  शादी  करने से इनकार कर दिया ..वह उर्मिल जी की बातो को कभी नहीं मानता था इस लिए अमृता बेटे को बताये बगेरबगैर  उर्मिल से बात करती थी ..कुछ समय बाद उसने फिर एक लड़की को पसन्द किया ..अमृता ने उर्मिल जो को उस लड़की के बारे में बताया   तो  उन्होंने कुछ सितारों की गणना  करके कहा हां अब यह इस से शादी करेगा ...और अच्छा रहेगा ..
यही हुआ ..अमृता जी की उस से दोस्ती और बढती  गयी ..और तब उन्होंने  माना  कि ज्योतिष के ज्ञान की कोई सीमा नहीं है  सिर्फ कुछ एक कण हाथ लगते हैं कुदरत के रहस्य कब किस तरह अपने रंग  दिखाए  कौन जानता है
....ranju bhatia ......