अमृता की आत्मकथा रसीदी टिकट में एक वाक्या है कि किसी ने एक एक बार उनका हाथ देख कर कहा कि धन की रेखा बहुत अच्छी है और इमरोज़ का हाथ देख कर कहा की धन की रेखा बहुत मद्धम है .इस पर अमृता हंस दी और उन्होंने कहा की कोई बात नहीं हम दोनों मिल कर एक ही रेखा से काम चला लेंगे ....
और इस वाकये के बाद उनके पास एक पोस्ट कार्ड आया जिस पर लिखा था ----
मैं हस्त रेखा का ज्ञान रखती हूँ ..क्या वह हाथ देख सकती हूँ जिसकी एक रेखा से आप और इमरोज़ मिल कर ज़िन्दगी चला लेंगे .?
उस पोस्ट कार्ड पर नाम लिखा हुआ था उर्मिला शर्मा ..
वह पोस्ट कार्ड कुछ दिन तक अमृता जी के पास यूँ ही पड़ा रहा .फिर उन्होंने उसका एक दिन साधारण सा जवाब दिया आप जब चाहे आ जाए कोई एतराज़ नहीं है ...
उसी ख़त में उनका फ़ोन नम्बर भी था उन्हें लगा कि जब वह आएँगी तो फ़ोन कर के आएँगी ..पर ऐसा नहीं हुआ ..एक दिन वह अचानक आ गयीं उन्हें मालूम नहीं था अमृता ऊपर की मंजिल पर रहती हैं ..इस लिए उन्होंने नीचे का दरवाजा खटखटाया अमृता जी की बहू ने दरवाजा खोला तो उन्होंने अमृता जी का नाम सुन कर उन्हें ऊपर भेज दिया .
अमृता जी ने उन्हें पहचाना नहीं तब उन्होंने खुद ही बताया कि वह हाथ की रेखाए देखने आई है और तुंरत अमृता से पूछा नीचे कौन था उन्होंने कहा मेरी बहू ..वह एक मिनट चुप रह कर बोलीं कि उनके यहाँ कोई बच्चा नहीं होगा ..
अमृता ने सुना और कहा आपको इस तरह से नहीं कहना चाहिए ..न तो आपने उसका हाथ देखा न जन्मपत्री ..फिर कैसे इतनी बड़ी बात कह सकती है ...
बस मैंने कह दिया .उर्मिल जी ने कहा ..अमृता को उनके बोलने का ढंग बहुत रुखा सा लगा ...लेकिन वह मेहमान थी ...बाद में चाय पीते हुए अमृता ने महसूस किया कि भले ही वह बहुत रुखा बोलतीं है पर इंसान भली हैं ...
उन्होंने अमृता से पूछा कि आपकी जन्मपत्री है ? नहीं तो मैं बना देती हूँ ..
अमृता ने हंस कर कहा मेरी जन्मपत्री तो मेरे पास नहीं हैं खुदा के पास होगी वहां से लेने मुझे जाना होगा ..
उन्होंने अमृता से फिर पूछा अच्छा तारीख तो आपकी कहीं मैंने देखी है और साल भी क्या समय था आपको कुछ याद है ? यह सुन कर अमृता ने सोचा अपनी पूरी ज़िन्दगी के हालात "रसीदी टिकट" में लिख दिया हैं क्या उनको पढ़ कर इस विद्या से वक़्त का पता नहीं चल सकता है ..? पर अमृता ने कुछ कहा नहीं ...और पूछा कि क्या अपने मेरी किताब पढ़ी है .. क्या सोचती है वह उसको पढ़ कर ?
उनका जवाब था मैंने तो किताब नहीं पढ़ी क्यों कि किताबे पढने की मेरी आदत नहीं हैं ..वह मेरे पति ने पढ़ी है और उन्होंने ही बीच में मुझे यह एक वाक्या सुना दिया था वह बहुत पढ़ते हैं ..
अमृता को उनकी बातों में बहुत सफाई और सादगी दिखी ..जो उन्हें अच्छी लगी ...इस तरह बात आगे बढ़ी वह धीरे धीरे अमृता के घर आने लगी ...
फिर एक दिन कुछ इस तरह से हुआ जब वह आयीं तो आते ही पूछने लगीं कि आपकी बहू यहीं है ?
जी हाँ अभी तो यहीं है .उसके मायके वाले हिन्दुस्तान में नहीं लन्दन में हैं ...शायद वहां जाए ..
हाँ वह जायेगी पर वापस नहीं आएगी वह अगस्त में यहाँ से चली जायेगी .अमृता को सुन का अच्छा नहीं लगा ..पर कुछ कहा नहीं उन्होंने ..मई का महीना था .कुछ दिनों बाद उनकी बहू का जन्मदिन था .जन्मदिन वाले दिन अमृता जी ने मेज पर केक और छोटा सा उपहार रखे तो यह देख कर उनकी बहू अचानक से रोने लगी ..अमृता को समझ नहीं आया कि यह क्या हुआ क्यों रो रही हैं यह ..उन्होंने उसको बहुत प्यार किया और पूछा आखिर हुआ क्या है ? पर उसकी बजाय उनके बेटे ने कहा वह तलाक ले कर वापस लन्दन जाना चाहती है और यहाँ नहीं रहना चाहती है पर आप सब लोगों को यह करते हुए देख कर इसका मन भर आया है यह सब अमृता जी नहीं जानती थी ..सुनते ही उन्हें उर्मिल की बात याद हो आई यह सब उन्होंने इतना पहले कैसे कह दिया ..?
बाद में वीजा मिलने की कुछ दिक्कत हुई और उनकी बहू तलाक ले कर सितम्बर में लन्दन चली गयी .कभी न वापस आने के लिए ..
उसके बाद तीन साल तक उनके घर का माहौल यूँ ही उदास सा रहा पर उर्मिल का कहना था कि उनका बेटा जरुर शादी करेगा और उसके दो बच्चे होंगे .. पर बेटा शादी के लिए तैयार ही नहीं था ..आखिर १९८२ में उसका मन बदला और उसकी एक लड़की से जान पहचान हुई से बात दुबारा चली पर उर्मिल जी ने कहा की यह इस लड़की को न कहेगा .. और दूसरी लड़की आएगी इसके जीवन में ..अमृता ने कहा मैं नहीं अब मन सकती इसने खुद लड़की को पसनद किए है अब यह न नहीं कर सकता पर न जाने अचानक से क्या हुआ उनके लड़के ने उस लड़की से शादी करने से इनकार कर दिया ..वह उर्मिल जी की बातो को कभी नहीं मानता था इस लिए अमृता बेटे को बताये बगेरबगैर उर्मिल से बात करती थी ..कुछ समय बाद उसने फिर एक लड़की को पसन्द किया ..अमृता ने उर्मिल जो को उस लड़की के बारे में बताया तो उन्होंने कुछ सितारों की गणना करके कहा हां अब यह इस से शादी करेगा ...और अच्छा रहेगा ..
यही हुआ ..अमृता जी की उस से दोस्ती और बढती गयी ..और तब उन्होंने माना कि ज्योतिष के ज्ञान की कोई सीमा नहीं है सिर्फ कुछ एक कण हाथ लगते हैं कुदरत के रहस्य कब किस तरह अपने रंग दिखाए कौन जानता है
....ranju bhatia ......
और इस वाकये के बाद उनके पास एक पोस्ट कार्ड आया जिस पर लिखा था ----
मैं हस्त रेखा का ज्ञान रखती हूँ ..क्या वह हाथ देख सकती हूँ जिसकी एक रेखा से आप और इमरोज़ मिल कर ज़िन्दगी चला लेंगे .?
उस पोस्ट कार्ड पर नाम लिखा हुआ था उर्मिला शर्मा ..
वह पोस्ट कार्ड कुछ दिन तक अमृता जी के पास यूँ ही पड़ा रहा .फिर उन्होंने उसका एक दिन साधारण सा जवाब दिया आप जब चाहे आ जाए कोई एतराज़ नहीं है ...
उसी ख़त में उनका फ़ोन नम्बर भी था उन्हें लगा कि जब वह आएँगी तो फ़ोन कर के आएँगी ..पर ऐसा नहीं हुआ ..एक दिन वह अचानक आ गयीं उन्हें मालूम नहीं था अमृता ऊपर की मंजिल पर रहती हैं ..इस लिए उन्होंने नीचे का दरवाजा खटखटाया अमृता जी की बहू ने दरवाजा खोला तो उन्होंने अमृता जी का नाम सुन कर उन्हें ऊपर भेज दिया .
अमृता जी ने उन्हें पहचाना नहीं तब उन्होंने खुद ही बताया कि वह हाथ की रेखाए देखने आई है और तुंरत अमृता से पूछा नीचे कौन था उन्होंने कहा मेरी बहू ..वह एक मिनट चुप रह कर बोलीं कि उनके यहाँ कोई बच्चा नहीं होगा ..
अमृता ने सुना और कहा आपको इस तरह से नहीं कहना चाहिए ..न तो आपने उसका हाथ देखा न जन्मपत्री ..फिर कैसे इतनी बड़ी बात कह सकती है ...
बस मैंने कह दिया .उर्मिल जी ने कहा ..अमृता को उनके बोलने का ढंग बहुत रुखा सा लगा ...लेकिन वह मेहमान थी ...बाद में चाय पीते हुए अमृता ने महसूस किया कि भले ही वह बहुत रुखा बोलतीं है पर इंसान भली हैं ...
उन्होंने अमृता से पूछा कि आपकी जन्मपत्री है ? नहीं तो मैं बना देती हूँ ..
अमृता ने हंस कर कहा मेरी जन्मपत्री तो मेरे पास नहीं हैं खुदा के पास होगी वहां से लेने मुझे जाना होगा ..
उन्होंने अमृता से फिर पूछा अच्छा तारीख तो आपकी कहीं मैंने देखी है और साल भी क्या समय था आपको कुछ याद है ? यह सुन कर अमृता ने सोचा अपनी पूरी ज़िन्दगी के हालात "रसीदी टिकट" में लिख दिया हैं क्या उनको पढ़ कर इस विद्या से वक़्त का पता नहीं चल सकता है ..? पर अमृता ने कुछ कहा नहीं ...और पूछा कि क्या अपने मेरी किताब पढ़ी है .. क्या सोचती है वह उसको पढ़ कर ?
उनका जवाब था मैंने तो किताब नहीं पढ़ी क्यों कि किताबे पढने की मेरी आदत नहीं हैं ..वह मेरे पति ने पढ़ी है और उन्होंने ही बीच में मुझे यह एक वाक्या सुना दिया था वह बहुत पढ़ते हैं ..
अमृता को उनकी बातों में बहुत सफाई और सादगी दिखी ..जो उन्हें अच्छी लगी ...इस तरह बात आगे बढ़ी वह धीरे धीरे अमृता के घर आने लगी ...
फिर एक दिन कुछ इस तरह से हुआ जब वह आयीं तो आते ही पूछने लगीं कि आपकी बहू यहीं है ?
जी हाँ अभी तो यहीं है .उसके मायके वाले हिन्दुस्तान में नहीं लन्दन में हैं ...शायद वहां जाए ..
हाँ वह जायेगी पर वापस नहीं आएगी वह अगस्त में यहाँ से चली जायेगी .अमृता को सुन का अच्छा नहीं लगा ..पर कुछ कहा नहीं उन्होंने ..मई का महीना था .कुछ दिनों बाद उनकी बहू का जन्मदिन था .जन्मदिन वाले दिन अमृता जी ने मेज पर केक और छोटा सा उपहार रखे तो यह देख कर उनकी बहू अचानक से रोने लगी ..अमृता को समझ नहीं आया कि यह क्या हुआ क्यों रो रही हैं यह ..उन्होंने उसको बहुत प्यार किया और पूछा आखिर हुआ क्या है ? पर उसकी बजाय उनके बेटे ने कहा वह तलाक ले कर वापस लन्दन जाना चाहती है और यहाँ नहीं रहना चाहती है पर आप सब लोगों को यह करते हुए देख कर इसका मन भर आया है यह सब अमृता जी नहीं जानती थी ..सुनते ही उन्हें उर्मिल की बात याद हो आई यह सब उन्होंने इतना पहले कैसे कह दिया ..?
बाद में वीजा मिलने की कुछ दिक्कत हुई और उनकी बहू तलाक ले कर सितम्बर में लन्दन चली गयी .कभी न वापस आने के लिए ..
उसके बाद तीन साल तक उनके घर का माहौल यूँ ही उदास सा रहा पर उर्मिल का कहना था कि उनका बेटा जरुर शादी करेगा और उसके दो बच्चे होंगे .. पर बेटा शादी के लिए तैयार ही नहीं था ..आखिर १९८२ में उसका मन बदला और उसकी एक लड़की से जान पहचान हुई से बात दुबारा चली पर उर्मिल जी ने कहा की यह इस लड़की को न कहेगा .. और दूसरी लड़की आएगी इसके जीवन में ..अमृता ने कहा मैं नहीं अब मन सकती इसने खुद लड़की को पसनद किए है अब यह न नहीं कर सकता पर न जाने अचानक से क्या हुआ उनके लड़के ने उस लड़की से शादी करने से इनकार कर दिया ..वह उर्मिल जी की बातो को कभी नहीं मानता था इस लिए अमृता बेटे को बताये बगेरबगैर उर्मिल से बात करती थी ..कुछ समय बाद उसने फिर एक लड़की को पसन्द किया ..अमृता ने उर्मिल जो को उस लड़की के बारे में बताया तो उन्होंने कुछ सितारों की गणना करके कहा हां अब यह इस से शादी करेगा ...और अच्छा रहेगा ..
यही हुआ ..अमृता जी की उस से दोस्ती और बढती गयी ..और तब उन्होंने माना कि ज्योतिष के ज्ञान की कोई सीमा नहीं है सिर्फ कुछ एक कण हाथ लगते हैं कुदरत के रहस्य कब किस तरह अपने रंग दिखाए कौन जानता है
....ranju bhatia ......
1 comment:
विस्मित हूँ -ऐसे जानकार बहुत दुर्लभ हैं .
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