Sunday, August 21, 2022

लावा

 एक सन्नाटा

एक ख़ामोशी

किस कदर

एक दूजे के साथ है

"सन्नाटा" जमे हुए लावे का

"ख़ामोशी "सर्द जमी हुई बर्फ की

दोनों एक दूजे के विपरीत

पर संग संग एक दूजे को

निहारते सहलाते से अडिग है

लावा जो धधक रहा है

जब बहेगा आवेग से

तो जमी बर्फ का अस्तित्व

भी नहीं रह पायेगा

हर हसरत हर कशिश

उस की उगलते

काले धुंए में

तब्दील हो जाएगी

तय है दोनों के अस्तित्व का

नष्ट होना ...फिर भी

साथ साथ है दोनों

ख़ामोशी से एक दूजे को सुनते हुए

एक दूजे के साथ रहने के एहसास

को सहते हुए ...

ठीक एक आदम और हव्वा से

जो सदियों से प्रतीक हैं

इसी जमे लावे के

और सर्द होती जमी बर्फ के !!!!


अंबर की एक पाक सुराही..@अमृता कोट्स


14 comments:

Onkar said...

सुंदर प्रस्तुति

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आपकी लिखी रचना सोमवार 22 अगस्त 2022 को
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

संगीता स्वरूप

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२२-०८ -२०२२ ) को 'साँझ ढलती कह रही है'(चर्चा अंक-१५२९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

प्रतिभा सक्सेना said...

सही कहा है - विरोधों का समन्वय जीवन है .

Abhilasha said...

सुंदर और सार्थक रचना

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ख़ामोशी से एक दूजे को सुनते हुए

एक दूजे के साथ रहने के एहसास

को सहते हुए ...

ठीक एक आदम और हव्वा से

जो सदियों से प्रतीक हैं

इसी जमे लावे के

और सर्द होती जमी बर्फ के !!!!

यही ज़िन्दगी है .... कहीं समझौता है कहीं मजबूरी है ,फिर भी साथ हैं

मन की वीणा said...

बस यही जीवन है।
या फिर टूटने!!

अनीता सैनी said...

गहन भाव लिए मर्मस्पर्शी सृजन।
सादर

Sweta sinha said...

सचमुच विपरीत ध्रुवों के मध्य धुरी पर नाचती पृथ्वी की तरह ही जीवन और उसकी विरोधाभासी परिस्थिति।
बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
सादर।

जिज्ञासा सिंह said...

ठीक एक आदम और हव्वा से
जो सदियों से प्रतीक हैं
इसी जमे लावे के
और सर्द होती जमी बर्फ के !!!!
..जीवन संदर्भ पर हृदयस्पर्शी रचना । बधाई आपको ।

विश्वमोहन said...

वाह! कमाल की अभिव्यक्ति! 'थीसिस' और 'एंटी-थीसिस' का 'सिंथेसिस'! हेगल का दर्शन!!!!

रेणु said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय रंजू जी।🙏

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण सार्थक भावाभिव्यक्ति ।

Anupama Tripathi said...

विपरीत हैं अस्तित्व किन्तु फिर भी साथ!सराहनीय रचना!