Thursday, August 18, 2022

गुलज़ार जन्मदिन पर विशेष

 


Gulzar ji ki kuch bemisal lines


मैं जब छांव छांव चला था अपना बदन बचा कर

कि रूह को एक खुबसूरत जिस्म दे दूँ

न कोई सिलवट .न दाग कोई

न धुप झुलसे ,न चोट खाएं

न जख्म छुए ,न दर्द पहुंचे

बस एक कोरी कुंवारी सुबह का जिस्म पहना दूँ रूह को मैं


मगर तपी जब दोपहर दर्दों की दर्द की धूप से   जो गुजरा

तो रूह को छांव मिल गई है


अजीब है दर्द और तस्कीं [शान्ति ] का साँझा रिश्ता

मिलेगी छांव तो बस कहीं धूप में मिलेगी ...


जिस शख्स को शान्ति तुष्टि भी धूप में नज़र आती है उसकी लिखी एक एक पंक्ति  की एक एक लफ्ज़ के साए से हो कर जब दिल गुजरता है तो यकीनन् इस शख्स से प्यार करने लगता है |सुबह की ताजगी हो, रात की चांदनी हो, सांझ की झुरमुट हो या सूरज का ताप, उन्हें खूबसूरती से अपने लफ्जों में पिरो कर किसी भी रंग में रंगने का हुनर तो बस गुलजार साहब को ही आता है। मुहावरों के नये प्रयोग अपने आप खुलने लगते हैं उनकी कलम से। बात चाहे रस की हो या गंध की, उनके पास जा कर सभी अपना वजूद भूल कर उनके हो जाते हैं और उनकी लेखनी में रचबस जाते है। यादों और सच को वे एक नया रूप दे देते है। उदासी की बात चलती है तो बीहड़ों में उतर जाते हैं, बर्फीली पहाडियों  में रम जाते हैं। रिश्तों की बात हो वे जुलाहे से भी साझा हो जाते हैं। दिल में उठने वाले तूफान, आवेग, सुख, दुख, इच्छाएं, अनुभूतियां सब उनकी लेखनी से चल कर ऐसे आ जाते हैं जैसे कि वे हमारे पास की ही बातें हो।


तुम्हारे गम की डाली उठा कर

जुबान पर रख ली हैं मैंने

वह कतरा कतरा पिघल रही है

मैं कतरा कतरा ही जी  रहा हूँ

पिघल पिघल कर  गले से उतरेगी ,आखरी बूंद दर्द की जब

मैं साँस की आखरी गिरह को भी खोल दूंगा ----


जब हम गुलजार साहब के गाने सुनते हैं तो .एहसास होता है की यह तो हमारे आस पास के लफ्ज़ हैं पर अक्सर कई गीतों में गुलज़ार साब ने ऐसे शब्दों का प्रयोग किया है जो श्रोता को चकित कर देते हैं.जैसे की उन्होने कोई जाल बुना हो और हम उसमें बहुत आसानी से फँस जाते हैं.दो अलग अलग शब्द जिनका साउंड बिल्कुल एक तरह होता है और वो प्रयोग भी इस तरह किए जा सकते हैं की कुछ अच्छा ही अर्थ निकले गीत का...गुलज़ार साब ने अक्सर ही ऐसा किया है.इसे हम गुलज़ार का तिलिस्म भी कह सकते हैं.


 खट्टा मीठा फिल्म के एक गीत को लीजिए जिसमें वो कहते हैं-

तुमअबसे मिला था प्यार अच्छे नसीब थे

हम उन दिनों अमीर थे जब तुम करीब थे


चलते फिरते अगर ये गीत सुना जाए तो कोई हैरानी  नहीं होगी की करीब को ग़रीब सुन लिया जाए.ये ज़रूर है की इसका अर्थ थोड़ा कमज़ोर हो जाता है मगर ये तो इंसान की फ़ितरत है की जब अमीर शब्द आता है हम खुद बा खुद मान लेते हैं की अब ग़रीब आएगा और उसी मानसिक स्थिति में करीब को ग़रीब सुन भी लेते हैं.

मरासिम एलबम की एक ग़ज़ल है -


हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते.....


इसके बीच एक शेर आता है-

शहद  जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा

जाने वालों के लिए दिल नहीं थोड़ा करते

कितना आसान है दूसरे मिसरे में थोड़ा को तोड़ा सुन लेना.और उसका मतलब भी बिल्कुल सटीक बैठता है.मगर यही जादू है गुलज़ार साब की कलम का.साउंड का कमाल.


आर डी बर्मन और गुलजार की जोड़ी के कमाल को कौन नही जानता...मेरा कुछ सामान गाना जब आर डी बर्मन के सामने रखा गया तो आर डी बर्मन ने कहा की आप इस डायलोग को गाना कह रहे हैं ...और इस में ११६ चाँद की रातों का क्या मतलब है ? गुलजार ने कहा आप इसको कम्पोज तो करिए ..उन्होंने इसको धुन डी और साथ बैठी आशा जी ने जब इस को सुर दिया तो यह गाना अमर गाना बन गया  | ११६ चाँद की राते जो इस गाने में रोमांस भर  देता है वह कमाल इस गाने को दिल से सुनाने वाला हर दिल पहचानता है |


मुसाफिर हूँ यारों .गाना बनने के बारे में गुलजार साहब कहते हैं की एक आधी रात को पंचम दा और वह दोनों यूँ ही घुमने निकल पड़े और तब इस गाने को लिखा गया ...मुसाफिर हूँ यारों न घर है न कोई ठिकाना ...एक राह रुक गई तो और जुड़ गई ..कितना जिंदगी के सच को बताता है की जिंदगी चलने का नाम है ..|


जरा याद  कीजिये घर का वह  गाना ...आप की आँखों में ..इस से ज्यादा रोमांटिक गाना मेरे ख्याल से कोई नही हो सकता  है | इस में गाये किशोर दा की वह पंक्ति जैसे दिल की तारों को हिला देती है ..लब खिले तो मोंगरे के फूल खिलते हैं कहीं ...और फ़िर लो पिच पर यह आपकी आंखों  में  क्या साहिल भी मिलते हैं कहीं .....आपकी खामोशियाँ भी आपकी आवाज़ है ...और लता जी की एक मधुर सी हलकी हँसी के साथ आपकी बदमाशियों के यह नए अंदाज़ है ....का कहना जो जादू जगा देता है वह कमाल सिर्फ़ गुलजार ही कर सकते हैं अपने लफ्जों से .....

Gulzar

ज़िंदगी के हर रंग को छुआ है उन्होंने अपनी कही नज्मों में गीतों में ...कुदरत के दिए हर रंग को उन्होंने इस तरह अपनी कलम से कागज में उतारा है जो हर किसी को अपना कहा और दिल के करीब लगता है इतना कुदरत से जुडाव बहुत कम रचना कार कर पाये हैं फिल्मों में भी और साहित्य में भी .

#रंजूभाटिया



गुलज़ार जी की न भूलने वाली पंक्तियां

1 comment:

Onkar said...

बहुत सुन्दर