Sunday, May 10, 2015

माँ.....



जब ईश्वर ने दुनिया रची तो कुदरत के भेद समझाने के लिए इंसान को और नैतिक मूल्यों को विचार देने के लिए हर विचार को एक आकार दिया .यानी किसी देवी या देवता का स्वरूप चित्रित किया ..यह मूर्तियाँ मिथक थी ..पर हमारे अन्दर कैसे कैसे गुण भरे हुए हैं यह उन मूर्तियों में भर दिया ताकि एक आम इंसान उन गुणों को अपने अन्दर ही पहचान सके ...

भारत में सदियों से माता की शक्ति को दुर्गा का रूप माना जाता रहा है | एक ऐसी शक्ति का जिनकी शरण में देवता भी जाने से नही हिचकचाते हैं | शक्ति प्रतीक है उस सत्ता का जो नव जीवन देती है .जिसका माँ सवरूप सबके लिए पूजनीय है | प्रत्येक महिला वह शक्ति है वह देवी माँ हैं जिसने जन्म दिया है .अनेक पेगम्बरों को ,मसीहों को ,अवतारों को और सूफियों संतों को .....वह अपने शरीर से एक नए जीवन को जन्म देती है ..

पुराने समय में अनेक पति या पत्नी को दर्शाया जाता है .इसका गहरा अर्थ ले तो मुझे इसका मतलब यह समझ आता है कि अधिकाँश पति व पत्नी अनेक गुणों के प्रतीक हैं ...जैसे जैसे समरूपता हमें देवी देवताओं में दिखायी देती है वह हमारे ही मनुष्य जीवन के कई रूपों और कई नामों की समरूपता ही है ..

लक्ष्मी का आदि रूप पृथ्वी है कमल के फूल पर बैठी हुई देवी | यह एक द्रविड़ कल्पना थी | आर्यों ने उस को आसन से उतार कर उसका स्थान ब्रह्मा को दे दिया |पर अनेक सदियों तक आम जनता में पृथ्वी की पूजा बनी रही तो लक्ष्मी को ब्रह्मा के साथ बिठा कर वही आसान उसको फ़िर से दे दिया ...बाद में विष्णु के साथ उसको बिठा दिया .विष्णु के वामन अवतार के समय लक्ष्मी पद्मा कहलाई ,परशुराम बनने के समय वह धरणी बनी .राम के अवतार के समय सीता का रूप लिया और कृष्ण के समय राधा का ..बस यही समरूपता का आचरण है ...

इसी प्रकार ज्ञान और कला की देवी सरस्वती वैदिक काल में नदियों की देवी थी .फ़िर विष्णु की गंगा लक्ष्मी के संग एक पत्नी के रूप में आई और फ़िर ब्रहमा की वाक् शक्ति के रूप में ब्रह्मा की पत्नी बनी ..यह सब पति पत्नी बदलने का अर्थ है कि यह सब प्रतीक हुए अलग अलग शक्ति के .. समरूपता का उदाहरण महादेवी भी हैं जो अपने पति शिव से गुस्सा हो कर अग्नि में भस्म हो गयीं और सती कहलाई ..परन्तु यह उनका एक रूप नही हैं ..वह अम्बिका है ,हेमवती ,गौरी और दुर्गा पार्वती भी .काली भी है ..काली देवी का रूप मूल रूप में अग्नि देवता की पत्नी के रूप में था फ़िर महादेवी सती के रूप में हुआ |

सरस्वती के चारों हाथों में से दो में वीणा लय और संगीत का प्रतीक है ..एक हाथ में पाण्डुलिपि का अर्थ उनकी विदुषी होने का प्रमाण है और चौथे हाथ में कमल का फूल निर्लिप्तता का प्रतीक है ..उनका वहां है हंस दूध ,पानी यानी सच और झूठ को अलग कर सकने का प्रतीक ..एक वर्णन आता है कि ब्रह्मा ने सरस्वती के एक यज के अवसर पर देर से पहुँचने के कारण गायत्री से विवाह कर लिया था ..अब इसकी गहराई में जाए तो पायेंगे की वास्तव में गायत्री से विवाह करना मतलब गायत्री मन्त्र से ,चिंतन से ,जीवन के शून्य को भरने का संकेत है ..गायत्री की मूर्ति में उसके पाँच सिर दिखाए जाते हैं यह एक से अधिक सिर मानसिक शक्ति के प्रतीक हैं ...........इसी तरह गणेश जी की पत्नियां रिद्धि सिद्धि उनकी शक्ति और बुद्धि की प्रतीक हैं

और स्त्री इन्ही सब शक्तियों से भरपूर है ..इस में भी सबसे अधिक सुंदर प्रभावशाली रूप माँ का है ...असल में जब आंतरिक शक्तियां समय पा कर बाहरी प्रतीकों के अनुसार नहीं रहती हैं तो सचमुच शक्तियों का अपमान होता है ..बात सिर्फ़ समझने की है और मानने की है ..कि कैसे हम अपने ही भीतर सत्ता और गरिमा को पहचाने क्यों कि हम ही शक्ति हैं और हम ही ख़ुद का प्रकाश ..

4 comments:

Nitish Tiwary said...

sundar prastuti.
happy mother's day
mere blog par bhi aaiye.
http://iwillrocknow.blogspot.in/

Nitish Tiwary said...

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Onkar said...

सुन्दर लेख

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

माये नी माये
माताओ के बारे भावपुर्ण शब्दो से अभिसिंचित आपके बिचार देखे धन्यवाद आभार