माये नी माये
मेरे गीतां दे नैणा विच
बिरहों दी रड़क पवे
अद्दी अद्दी राती उठ
रोण मोये मितरां नूं
माये सानूं नींद न पवे.
आपे नी मैं बालड़ी
मैं हाले आप मत्तां जोगी
मात्त केड़ा एस नूं दवे
आख सूं नि माये इहनूं
रोवे बुल चिथ के नी
जग किते सुन न लवे.
पंजाबी में लिखे इस गीत के बोल जब जब मैंने सुने ,चाहते न चाहते हुए भी न जाने क्यों मेरी आँख भर आती है ,यह गीत पंजाबी के मश्हूर कवि शिव कुमार बटालवी का लिखा हुआ है ,इनके लिखे के बारे में मैंने कई जगह लिखा हुआ तलाशा पर कहीं बहुत अधिक जानकारी नहीं मिली ,कुछ मिला भी तो पंजाबी भाषा में था ,और अनुवाद न के बराबर ,कहते हैं न जिस चीज को दिल से चाहो वह मिलती जरूर है ,मुझे मनविंदर भिंभर की "वो देखो तारा" जब मिली तो दिल की यह मुराद पूरी हो गयी ,भले ही इसको पढ़ते हुए प्यास और बढ़ गयी ,यह शिव कुमार पर लिखी एक अनमोल तोहफा है उन लोगों के लिए जो अपने इस प्रिय कवि के बारे में हिंदी में पढ़ना चाहते हैं," विराह दा सुल्तान नाम से मशहूर इस कवि की रचनाये जगजीत सिंह ,चित्रा सिह, सुरेंदर कौर आदि ने खूब गयी और बहुत सुनी गयी पर इसके रचने वाले पर अधिकतर लोगों का ध्यान नहीं गया ,मैंने भी इनका लिखा पहला गीत
तुसीं केड़ी रुते आये, मेरे राम जी ओ
जदों बागी फूल कुम्हलावे, मेरे राम जी ओ
सुना था तो लिखने वाले का नाम नहीं जानती थी ,बस यह सुना और जम के सुना फिर जम्मू में एक पंजाबी पिक्चर देखी "लौंग दा लिश्कारा' उसमें सुने गीत जैसे मेरी आत्मा में बस गए ,
मैं कंडयाली थोर वे सजना ,न कोई छांवे बैठा मेरे ,न कोई बैठना चाहे ,सुन के लिखने वाले के बारे में जानने की उत्सुकता हुई ,अमृता प्रीतम के लिखे में शिव कुमार बटालवी का नाम पढ़ा और फिर बहुत कुछ तलाश करने पर भी बहुत कम जानकारी मिल पायी ,
जोबन ऋतु में आशिक मरते
या कोई कर्मों वाला
जोबन ऋतु में जो भी मरता
फूल बने या तारा ,,,और "वो देखो तारा" मुझे इस कवि के हर पहलु से रूबरू करवा गया ,शिव कुमार नाम के साथ बटालवी का जुड़ना ,क्यों उन्हें बिरह दा सुल्तान कहा गया ,उनके असफल प्रेम की कहानी ,और भी न जाने कई उनके बारे में लिखी रोचक बातें जो मनविंदर जी ने शिव कुमार जी से जानने वाले डॉ चन्द्र त्रिखा ,मोहन भंडारी ,डॉ मनमोहन सिंह,सुरजीत सिंह आदि से ले इस कवि को हिंदी भाषा के सुन्दर लफ़्ज़ों में पिरो कर पहुंचाया ,शिव कुमार की ज़िन्दगी से जुड़े रोचक लम्हे और उनके लिखे गीत अभी एक पारिवारिक शादी में हुए रतजगों को भुला कर एक सांस में पढ़वा गए
एह मेरा गीत किसे ना गाणा
एह मेरा गीत मैं आपे गा के
भलके ही मर जाणा.
माये नी माये
मैं इक शिकरा यार बनाया.
ओदे सिर ते कलगी
ओदे पैरीं झांजर
ते ओ चोग चुगेंदा आया.
इक ओदे रूप दी धुप तिखेरी
दुजा महकां दा तिरहाया
तीजा ओदा रंग गुलाबी
किसे गोरी मां दा जाया.
शिव कुमार बटालवी पंजाबी के ऐसे आधुनिक कवि हैं जिनके गीतों में पंजाब के लोकगीतों का आनंद भी हैं।
की पुछदे ओ हाल फकीरां दा
साडा नदियों विछड़े नीरां दा
साडा हंज दी जूने आयां दा
साडा दिल जलयां दिल्गीरां दा.
साणूं लखां दा तन लभ गया
पर इक दा मन वी न मिलया
क्या लिखया किसे मुकद्दर सी
हथां दियां चार लकीरां दा.
क्या पूछते हो हाल फ़कीरों का/हमारा नदियों बिछड़े नीरों का /हमारा दिल जला दिलगीरों का
शिव कुमार जी का लिखा पंजाबी साहित्य में इतना ताक़तवर है कि अब तक लोकगीतों की तरह सुनी-गाई जाती है.शिव ने जिस लड़की से प्यार किया वह शादी करके लंदन चली गयी तो उस 'खो गई लड़की' के लिए शिव ने यह कविता लिखी थी, जिसका असली शीर्षक है इश्तेहार. सरल-सी यह कविता सरल-सी पंजाबी में है.
गुम है गुम है गुम है/इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
सूरत उसदी परियां वरगी
न रात खत्म होती है , न मेरे गीत खत्म होते हैं
अक्षरधाम प्रकाशन
करनाल रोड ,कैथल 136027
मूल्य २५० रूपये
मेरे गीतां दे नैणा विच
बिरहों दी रड़क पवे
अद्दी अद्दी राती उठ
रोण मोये मितरां नूं
माये सानूं नींद न पवे.
आपे नी मैं बालड़ी
मैं हाले आप मत्तां जोगी
मात्त केड़ा एस नूं दवे
आख सूं नि माये इहनूं
रोवे बुल चिथ के नी
जग किते सुन न लवे.
पंजाबी में लिखे इस गीत के बोल जब जब मैंने सुने ,चाहते न चाहते हुए भी न जाने क्यों मेरी आँख भर आती है ,यह गीत पंजाबी के मश्हूर कवि शिव कुमार बटालवी का लिखा हुआ है ,इनके लिखे के बारे में मैंने कई जगह लिखा हुआ तलाशा पर कहीं बहुत अधिक जानकारी नहीं मिली ,कुछ मिला भी तो पंजाबी भाषा में था ,और अनुवाद न के बराबर ,कहते हैं न जिस चीज को दिल से चाहो वह मिलती जरूर है ,मुझे मनविंदर भिंभर की "वो देखो तारा" जब मिली तो दिल की यह मुराद पूरी हो गयी ,भले ही इसको पढ़ते हुए प्यास और बढ़ गयी ,यह शिव कुमार पर लिखी एक अनमोल तोहफा है उन लोगों के लिए जो अपने इस प्रिय कवि के बारे में हिंदी में पढ़ना चाहते हैं," विराह दा सुल्तान नाम से मशहूर इस कवि की रचनाये जगजीत सिंह ,चित्रा सिह, सुरेंदर कौर आदि ने खूब गयी और बहुत सुनी गयी पर इसके रचने वाले पर अधिकतर लोगों का ध्यान नहीं गया ,मैंने भी इनका लिखा पहला गीत
तुसीं केड़ी रुते आये, मेरे राम जी ओ
जदों बागी फूल कुम्हलावे, मेरे राम जी ओ
सुना था तो लिखने वाले का नाम नहीं जानती थी ,बस यह सुना और जम के सुना फिर जम्मू में एक पंजाबी पिक्चर देखी "लौंग दा लिश्कारा' उसमें सुने गीत जैसे मेरी आत्मा में बस गए ,
मैं कंडयाली थोर वे सजना ,न कोई छांवे बैठा मेरे ,न कोई बैठना चाहे ,सुन के लिखने वाले के बारे में जानने की उत्सुकता हुई ,अमृता प्रीतम के लिखे में शिव कुमार बटालवी का नाम पढ़ा और फिर बहुत कुछ तलाश करने पर भी बहुत कम जानकारी मिल पायी ,
जोबन ऋतु में आशिक मरते
या कोई कर्मों वाला
जोबन ऋतु में जो भी मरता
फूल बने या तारा ,,,और "वो देखो तारा" मुझे इस कवि के हर पहलु से रूबरू करवा गया ,शिव कुमार नाम के साथ बटालवी का जुड़ना ,क्यों उन्हें बिरह दा सुल्तान कहा गया ,उनके असफल प्रेम की कहानी ,और भी न जाने कई उनके बारे में लिखी रोचक बातें जो मनविंदर जी ने शिव कुमार जी से जानने वाले डॉ चन्द्र त्रिखा ,मोहन भंडारी ,डॉ मनमोहन सिंह,सुरजीत सिंह आदि से ले इस कवि को हिंदी भाषा के सुन्दर लफ़्ज़ों में पिरो कर पहुंचाया ,शिव कुमार की ज़िन्दगी से जुड़े रोचक लम्हे और उनके लिखे गीत अभी एक पारिवारिक शादी में हुए रतजगों को भुला कर एक सांस में पढ़वा गए
एह मेरा गीत किसे ना गाणा
एह मेरा गीत मैं आपे गा के
भलके ही मर जाणा.
(ये मेरा गीत किसी ने नहीं गाना /ये मेरा गीत मैंने खुद गा के /अगले दिन मर जाना )
उनके लिखे यह गीत दर्द की उस ऊंचाई को छु लेते हैं की अमृता प्रीतम ने कहा "बस कर वीरा अब यह दर्द और नहीं सुन सकती "माये नी माये
मैं इक शिकरा यार बनाया.
ओदे सिर ते कलगी
ओदे पैरीं झांजर
ते ओ चोग चुगेंदा आया.
इक ओदे रूप दी धुप तिखेरी
दुजा महकां दा तिरहाया
तीजा ओदा रंग गुलाबी
किसे गोरी मां दा जाया.
शिव कुमार बटालवी पंजाबी के ऐसे आधुनिक कवि हैं जिनके गीतों में पंजाब के लोकगीतों का आनंद भी हैं।
की पुछदे ओ हाल फकीरां दा
साडा नदियों विछड़े नीरां दा
साडा हंज दी जूने आयां दा
साडा दिल जलयां दिल्गीरां दा.
साणूं लखां दा तन लभ गया
पर इक दा मन वी न मिलया
क्या लिखया किसे मुकद्दर सी
हथां दियां चार लकीरां दा.
क्या पूछते हो हाल फ़कीरों का/हमारा नदियों बिछड़े नीरों का /हमारा दिल जला दिलगीरों का
शिव कुमार जी का लिखा पंजाबी साहित्य में इतना ताक़तवर है कि अब तक लोकगीतों की तरह सुनी-गाई जाती है.शिव ने जिस लड़की से प्यार किया वह शादी करके लंदन चली गयी तो उस 'खो गई लड़की' के लिए शिव ने यह कविता लिखी थी, जिसका असली शीर्षक है इश्तेहार. सरल-सी यह कविता सरल-सी पंजाबी में है.
गुम है गुम है गुम है/इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोहणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है
सूरत उसदी परियां वरगी
सीरत दी ओह मरियम लगदी
हसदी है तां फुल्ल झड़दे ने
तुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी
लम्म सलम्मी सरूं क़द दी
उम्र अजे है मर के अग्ग दी
शिव कुमार बटालवी एक ऐसे कवि थे जिन्होंने दर्द को पूरी तरह जिया था, जिसे दर्द से मुहब्बत थी. तभी तो अपने गीत में एक जगह शिव लिखते हैं ‘मैं दर्द नूं काबा कैह बैठा, रब ना ( नाम) रख बैठा पीडां दा / की पूछदे ओ हाल फकीरां दा’। सिर्फ दर्द ही नहीं इससे हटकर भी शिव के गीतों में झलक दिखाई देती है वो झलक है शरारत की. उनका लिखा एक गीत है: इक मेरी अख काशनी, दूजा रात दे उनींदरे ने मारया, शीशे नूं तिरेड़ पै गई बाल वोंदी ने ध्यान जो हटा लया.(एक तो मेरी आँखें नीली हैं, दूसरे रात को नींद न आने का कष्ट है, उस समय दर्पण चटक गया, जब बाल बनाते हुये मेरा ध्यान हट गया)
शिव के गीतों में पहाड़ की महक भी थी - खासकर चंबा शहर की। इसका जिक्र उनके काव्य-नाटक "लूना" में मिलता है। इसी काव्य के लिए उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजा गया था और वह सबसे छोटे उम्र के साहित्यकार हैं जिन्हें ये सम्मान मिला, उस समय उनकी उम्र मात्र 28 साल थी। लूणा शिव की अमर प्रस्तुति है। पुरुष होकर एक औरत के दर्द को समझा महसूस किया और उसे अपनी कलम से बयां किया।
ऐसी ही कई रोचक बातें और उनके लिखे शब्दों को आप पढ़ना चाहते हैं तो" वो देखो तारा "में पढ़े ,मनविंदर ने बहुत ही रोचक तरीके से हर किस्से ,हर गीत को अपने सुन्दर लफ़्ज़ों में हम तक पहुंचाया है ,जैसा की मैंने शुरुआत में लिखा था कि प्यास बढ़ गयी और भी उनके सभी गीतों का हिंदी अनुवाद स्पेशल "लूना" का हिंदी अनुवाद भी वो आगे करें तो हम हिंदी पढ़ने वालों के लिए यह एक अनमोल तोहफा होगा ,और कोई शिव कुमार जी के लिखे हुए गीतों के हिंदी अनुवाद के बारे में जानता है तो जरूर बताये , उनके लिखे गीत की इन पंक्तियों से तो आज की यंग जेनरेशन भी वाकिफ है "आज दिन चढ्या तेरे रंग जैसा /तेरे चुंबन पिछले संग जैसा "
शिव कुमार बटालवी एक ऐसे कवि थे जिन्होंने दर्द को पूरी तरह जिया था, जिसे दर्द से मुहब्बत थी. तभी तो अपने गीत में एक जगह शिव लिखते हैं ‘मैं दर्द नूं काबा कैह बैठा, रब ना ( नाम) रख बैठा पीडां दा / की पूछदे ओ हाल फकीरां दा’। सिर्फ दर्द ही नहीं इससे हटकर भी शिव के गीतों में झलक दिखाई देती है वो झलक है शरारत की. उनका लिखा एक गीत है: इक मेरी अख काशनी, दूजा रात दे उनींदरे ने मारया, शीशे नूं तिरेड़ पै गई बाल वोंदी ने ध्यान जो हटा लया.(एक तो मेरी आँखें नीली हैं, दूसरे रात को नींद न आने का कष्ट है, उस समय दर्पण चटक गया, जब बाल बनाते हुये मेरा ध्यान हट गया)
शिव के गीतों में पहाड़ की महक भी थी - खासकर चंबा शहर की। इसका जिक्र उनके काव्य-नाटक "लूना" में मिलता है। इसी काव्य के लिए उन्हें साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजा गया था और वह सबसे छोटे उम्र के साहित्यकार हैं जिन्हें ये सम्मान मिला, उस समय उनकी उम्र मात्र 28 साल थी। लूणा शिव की अमर प्रस्तुति है। पुरुष होकर एक औरत के दर्द को समझा महसूस किया और उसे अपनी कलम से बयां किया।
ऐसी ही कई रोचक बातें और उनके लिखे शब्दों को आप पढ़ना चाहते हैं तो" वो देखो तारा "में पढ़े ,मनविंदर ने बहुत ही रोचक तरीके से हर किस्से ,हर गीत को अपने सुन्दर लफ़्ज़ों में हम तक पहुंचाया है ,जैसा की मैंने शुरुआत में लिखा था कि प्यास बढ़ गयी और भी उनके सभी गीतों का हिंदी अनुवाद स्पेशल "लूना" का हिंदी अनुवाद भी वो आगे करें तो हम हिंदी पढ़ने वालों के लिए यह एक अनमोल तोहफा होगा ,और कोई शिव कुमार जी के लिखे हुए गीतों के हिंदी अनुवाद के बारे में जानता है तो जरूर बताये , उनके लिखे गीत की इन पंक्तियों से तो आज की यंग जेनरेशन भी वाकिफ है "आज दिन चढ्या तेरे रंग जैसा /तेरे चुंबन पिछले संग जैसा "
मनविंदर जी को इस अनमोल तारे के लिए बहुत बहुत बधाई और शुक्रिया इसको मुझ तक पहुंचाने का , अभी उत्सुकता से
पढ़ कर लिखे गए यह मेरे शुरूआती शब्द हैं जो पढ़ते ही बरबस लिखे गए , और
पढ़ते पढ़ते कई बार आँखों को गीला कर गए ,दर्द के लिखे यह शब्द जब हिंदी
भाषा में मिले तो आँखे ख़ुशी से भी भर आती हैं ,इस तारे को बार बार पढ़ कर देखूंगी और हो सकता है फिर से कुछ कहूँ इस के बारे में ,
उन्ही का लिखा खूबसूरत गीत जो मेरे दिल के बेहद करीब है
गमा दी रात लम्बी ऐ या मेरे गीत लम्बे ने
ना भेढ़ी रात मुकदी ऐ ना मेरे गीत मुकदे ने .......
गमो की रात लम्बी है या मेरे गीत लम्बे हैं ना भेढ़ी रात मुकदी ऐ ना मेरे गीत मुकदे ने .......
न रात खत्म होती है , न मेरे गीत खत्म होते हैं
अक्षरधाम प्रकाशन
करनाल रोड ,कैथल 136027
मूल्य २५० रूपये
5 comments:
बहुत सुन्दर. अगली बार उनकी कविताओं का हिंदी में अनुवाद भी बताइयेगा
oh wah...pehla gana inka likha hua hai. Apni video mein jab jab sunti hun, senti ho jaati hun :) Very touching song... baki songs bhi bohot sundar hain.
एक अनोखे कवि का परिचय देने का और ुनकी रचनाओं की झलक का शुक्रिया। रंजना जी पंजाबी बहुत थोडी समझती हू दिल्ली में रहने की वजह से पर विरह के अदबुत गीत हैं ये।
रंजना जी बहुत बहुत आभार आपका इस समीक्षा के लिये और जानकारी के लिये ....इस किताब को ऑनलाइन कहाँ से खरीदा जा सकता है ...सादर
शिव कुमार जी के गीत जगजीत जी ने भी गाये हैं ... और दिल को छूते हुआ उनका लिखा आँखों में आंसू ला देता है ... अच्छी समीक्षा ...
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