कुछ अमूल्य यादें माँ की
हरियाणा के एक कस्बे कलानौर जिला रोहतक .पहली संतान के रूप मे मेरा जन्म हुआ १४ अप्रैल १९६३ ....दादा जी का घर .....कच्ची मिटटी की कोठरी...... वही पर हमारा आगमन हुआ माँ पापा ने नाम दिया रंजू | पहली संतान होने के कारण मम्मी पापा की बहुत लाडली थी | और बुआ बताती है कि बहुत शैतान भी | जितना याद आता है कि पापा की ट्रान्सफर वाली नौकरी थी सो जब कुछ होश आया तो कुछ बहुत धुंधली सी यादे बांदा , झाँसी और तालबेहट की हैं ...मेरे बाद मेरी दो छोटी बहने और हुई और फ़िर पापा जो पहले रेलवे में थे उन्होंने ने मिलट्री इंजनियर सर्विस ज्वाइन कर ली | वह शायद उस वक्त हिंडन मे जॉब करते थे और मम्मी आगे जॉब करना चाहती थी सो वह नाना नानी के पास रह कर बी एड की तैयारी मे लग गई | दोनों छोटी बहने तो दादी जी के पास रही पर मैं मम्मी पापा से कभी अलग नही रही|
हरियाणा के एक कस्बे कलानौर जिला रोहतक .पहली संतान के रूप मे मेरा जन्म हुआ १४ अप्रैल १९६३ ....दादा जी का घर .....कच्ची मिटटी की कोठरी...... वही पर हमारा आगमन हुआ माँ पापा ने नाम दिया रंजू | पहली संतान होने के कारण मम्मी पापा की बहुत लाडली थी | और बुआ बताती है कि बहुत शैतान भी | जितना याद आता है कि पापा की ट्रान्सफर वाली नौकरी थी सो जब कुछ होश आया तो कुछ बहुत धुंधली सी यादे बांदा , झाँसी और तालबेहट की हैं ...मेरे बाद मेरी दो छोटी बहने और हुई और फ़िर पापा जो पहले रेलवे में थे उन्होंने ने मिलट्री इंजनियर सर्विस ज्वाइन कर ली | वह शायद उस वक्त हिंडन मे जॉब करते थे और मम्मी आगे जॉब करना चाहती थी सो वह नाना नानी के पास रह कर बी एड की तैयारी मे लग गई | दोनों छोटी बहने तो दादी जी के पास रही पर मैं मम्मी पापा से कभी अलग नही रही|
घर
मे पढ़ाई का बहुत सख्त माहौल था | होना ही था जहाँ नाना , नानी प्रिंसिपल
दादा जी गणित के सख्त अध्यापक हो वहां गर्मी की छुट्टियों मे भी पढ़ाई से
मोहलत नही मिलती थी| साथ ही दोनों तरफ़ आर्य समाज माहोल होने के कारण उठते
ही हवन और गायत्री मन्त्र बोलना हर बच्चे के लिए जरुरी था | सारे कजन मिल
कर गर्मी की छुट्टियों मे मिल कर खूब धामा चोकडी मचाते और नित्य नए शरारत
के ढंग सोचते जिस मे पतंग उडाने से ले कर नानी की रसोई मे नमकीन बिस्किट
चोरी करना और दादा जी के घर मे वहां पर बाग़ से फल चोरी करना शामिल होता|
शुरू की पढ़ाई वहीँ रोहतक मे हुई पर मम्मी की पढ़ाई पुरी होते ही हमारा तीन
जगह बिखरा परिवार पापा के पास हिंडन आ गया | यहाँ आर्मी स्कूल मे पढ़ाई
शुरू की| बहुत सख्त था यहाँ स्कूल का माहौल| पर घर आते ही वहां के खुले घर
मे जो शरारत शुरू होती वह पापा के आफिस के वापस आने के बाद ही बंद होती |मम्मी की डाँट साथ साथ चलती रहती पर शरारतें बंद न होती
दोपहर में जब बड़े सो जाजाते तो हम
बच्चो को टोली चुपके से बाहर निकल आती और फ़िर शुरू होता तितली पकड़ना
चिडिया के घोंसले में झांकना ....यूँ ही एक बार हमारे घर की परछती पर रहने
वाली एक चिडिया पंखे से टकरा मर गई उसको हमारी पूरी टोली ने बाकयदा एक कापी
के गत्ते को पूरी सजा धजा के साथ घर के बगीचे में उसका अन्तिम संस्कार किया
था और मन्त्र के नाम पर जिसको जो बाल कविता आती थी वह बोली थी बारी बारी
..:)मैंने बोली थी..चूँ चूँ करती आई चिडिया स्वाहा ..दाल का दाना लायी
चिडिया स्वाहा.:) सब विषय मे पढ़ाई मे अच्छी थी सिर्फ़ गणित को छोड़ कर
.पापा से इस के लिए मार खा जाती थी पर मम्मी से मैं कभी नही पिटी... हाँ
दोनी बहने कई बार पीट जाती थी ..| मम्मी को सरस्वती शिशु बाल मन्दिर मे
स्कूल मे नौकरी मिल गई और पापा भी पालम आ गए और हम सब नारायणा मे रहने लगे
कुछ कुछ याद आता है तब लड़ाई के दिन थे शायद ब्लेक आउट
होता था और हम सब खेलते खेलते घर के पास बने खड्डों मे छिप जाते थे | या घर
की तरफ़ भागते थे | फ़िर जनकपुरी पंखा रोड पर हमने अपना घर लिया | शिफ्ट
करते ही हम अमृतसर और माता के दर्शन के लिए गए थे पहली बार | मम्मी तब तक
स्कूल की प्रिसिपल बन चुकी थी और पढ़ाई का माहौल घर मे हर वक्त रहता था | जब बड़ी माँ थी तो वह कई बार
हमें "हरिवंश राय बच्चन "की कविता का वह अंश लोरी के रूप मे सुनाती थी "जो
बीत गई वह बात गई ..जीवन मे एक सितारा था ..माना वह बेहद प्यारा था " ..वह
कविता अब समझ मे आने लगी थी और जो लिखती थी वह भी लफ्ज अब अर्थ देने लगे थे
.. ..मम्मी के बुक शेल्फ मे प्रेमचंद और गुरुदत्त को पढ़ा था ...मीना
कुमारी की फिल्मों से जो उनकी बेपनाह मोहब्बत देखी थी ....इतनी की उनके मरने पर घर मे खाना नही बना था .
मम्मी के साथ बहुत ही कम वक़्त मिला ,बस जो मिला उस में यही याद है कि पढ़ना और अच्छा मीठा बोलना ज़िन्दगी की दो अहम चीजें हैं ,वक़्त का मूल्य उन्होंने सिखाया और अच्छे सहित्य को पढ़ने की आदत भी उन्होंने हो डाली ,बहुत कुछ सीखती उनसे यदि ईश्वर उन्हें लम्बी आयु देता ,महज जब मैं १२ साल की थी तब वह अपनी छोटी सी ज़िन्दगी में बहुत कुछ सीखा के हमें चली गयी ,आज उनकी यादें हैं बस वही जो उस वक़्त तक रही मेरे साथ। . पर मेरा मानना है कि माँ कभी खत्म नहीं होती वह रहती है ता उम्र हमारे साथ अपनी अमूल्य यादों से अपनी कही गयी बातों से और दिए गए संस्कारों से
5 comments:
बहुत सुंदर ....माँ वो शब्द है जिसकी व्याख्या करना असंभव सा है.....एक समंदर .....एक अच्छी प्रस्तुति !!
बहुत प्यारा संस्मरण है रंजू. बचपन की यादें होती ही इतनी प्यारी हैं कि पढने वाला उन यादों से खुद का तालमेल बिठाने लगता है. आनन्दम..
यादों के गलियारे से कुछ भी लिखना अच्छा लगता है .. फिर माँ तो माँ है ... वो तो सदा साथ ही रहती हैं ...
सच कहा, माँ हमेशा हमारे साथ होती है
sundar rachna
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