तुम कहते हो
"यह नहीं होगा "
मैं कहती हूँ
"वो नहीं होगा "
जिदों की दीवारों से टकराते हैं
हम दोनों के "अहम् .."
कब तक खुद को
यूँ ही झुलझाए जलाएं
चलो एक फैसला कर लें
अपने अपने वजूद की तलाश में
इस ज़िन्दगी के
दो जुदा किनारे ढूंढ़ लें !!
आज का आस पास का माहौल बस कुछ यह है कहता दिखता है ..और ज़िन्दगी मिल कर फिर नदी के दो किनारों सी बहती चली जाती है ..रंजू भाटिया
8 comments:
कई बार दो किनारे बन के भी अलग कहां हो पाते हैं ...तरलता होती है पानी की जो जोड़े रखती है ...
शायद दो किनारे बन कर ही मिल पाएँ ... बहुत खूब ।
दो किनारों के बीच भी जल तो बह सकता है।
शायद वजूद की तलाश में अलग-अलग किनारे पर रहकर भी एक ही मंजिल पर पहुँचे...
do kinre alag alag hokar bhi saath hi chalte hain......
दोनों किनारों का पृथक होना ही नदी को बनाये रखता है .....
लघु पर प्रभावी .
vistaar ki awashyakta ke liye yogyata hi saarthakta ki janak hoti hai..!!
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