श्रीनगर का आखिरी दिन .जैसे जाने के नाम से दिल खींच रहा हो कोई ..और डल लेक के बीचो
बीच नाम उसका ज़ूम ज़ूम ..वाकई "ज़ूम ज़ूम "बस दिल कहे यही रुक जा रे रुक जा
यहीं पर कहीं जो बात इस जगह है वो कहीं भी नहीं |सही तो है श्रीनगर जाना
और वहां से वापस आने में बहुत ही अलग एहसास है |जाते हुए बहुत से डर बहुत
से सुझाव और बहुत से भ्रम है आपके साथ और वापस आते हुए आपके साथ वहां के
लोगों का स्नेह ..भोलापन ..मासूमियत वहां के हवा में फैली चिनार की महक है
.और भी बहुत कुछ ..जो आपके साथ ता उम्र रहने वाला है ..
डल लेक अगर धरती पर
कहीं स्वर्ग है तो यहीं है, यहीं है, यहीं है। ये बात बचपन से
सुनते आएं हैं कश्मीर के लिए । और कश्मीर का ताज है है डल झील।
डल झील जिसने सदियों से यहां की परंपरा यहां की संस्कृति को सहेज कर रखा।
डल झील जिस पर न जाने कितनी फिल्मों की शूटिंग हुई, जहाँ साठसत्तर के दशक में बहुत से लोगों ने इस डल झील की नजर से ही श्रीनगर के सौन्दर्य को निहार कर अपनी नजरों में बसाया है ..जहाँ के कई गाने आज भी जुबान पर हैं | वह डल झील आज भी उतनी ही खूबसूरत है | | समुद्र तल से 1500 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद
डल एक प्राकृतिक झील है और तकरीबन 50,000 साल पुरानी है। बर्फ के गलने या
बारिश की एक-एक बूंद इसमें आती है और अपने साफ़ जल से इसको भरती रहती है । इस झील में दो पिकनिक स्थान हैं। चार चिनार के नाम से जाने वाले इस धरती के टुकड़े को चार-चार चिनार के पेड़ होने से जाना जाता है। झील के दुसरे भाग में स्थित हरिपर्वत भी देखने लायक है |वहीँ से शंकराचार्य मंदिर भी दिखता है|डल झील के बीच में भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल
नेहरू की स्मृति में नेहरू पार्क भी है।
कभी डल झील के साफ़ पानी के आईने में कुदरत खुद को निहार लेती थी पर आज लगातार बढ़ते हाउस बोट और ध्यान न देने से वहां का पानी काला होता जा रहा है यह बहुत ही दुःख का विषय है | पर यह भी सच है
कि कश्मीर की सैर के लिए जाकर डल झील के हाउस बोट में न ठहरा जाये तो कश्मीर की सैर अधूरी रह जाती है। यहाँ के तैरते बाजार और वहां झील में ही सब्जी उगाने वाले लोगो के घर मन मोह लेते हैं | तरह तरह की पेड़ पौधो की झलक झील की सुंदरता को और निखार देती है। कमल के फूल, पानी में बहती कुमुदनी, झील की सुंदरता में चार चाँद लगा देती है। यहाँ आने वालों के लिए विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधन जैसे शिकारे पर घूमना पानी पर सर्फिंग करना और मछली पकड़ना बहुत अच्छे लगते हैं |झील में तैरते हाउसबोट और शिकारे शांति, सुकून और मनमोहक खूबसूरती से भरी एक ऐसी दुनिया में होने का अहसास कराते हैं, जिससे कभी दूर होने का मन न करे। यहां आकर आपको एक ही गाना याद आएगा ‘सोचो कि झीलों का शहर हो, लहरों पर अपना एक घर हो..’ पर वहीँ कुछ कडवे सच भी है इस देव भूमि के साथ जुड़े हुए ..
आज का कश्मीर और वहां की सोच वहां जितने लोगों से बात हुई सभी अमन शान्ति चाहते हैं कोई भी लड़ाई आतंक नहीं चाहता ...वहां का मुख्य जीवन पर्यटक से जुडा है जब जब वहां कुछ आशांति होती है तब तब वहां यह प्रभवित हो जाता है ..लोग उदास हो जाते हैं ..वो चाहते हैं कि लोग यहाँ आये घुमे और यहाँ की सुन्दरता से जुड़े इस तरह की फिर फिर वापस आना चाहे ..पर शायद न वहां पर आंतक फैलाते आतंकवादी को यह पसंद है न ही सरकार को ...और यही वजह है की कुदरती सुन्दरता तो वहां बिखरी है पर साथ ही साथ यहाँ कोई तरक्की नहीं हुई है वहां .सड़के कई जगह से बहुत खराब है ..बाग़ हैं सुन्दर पर लोगों के चेहरे उदास हैं कई जगह बहुत अजीब लगी ..जैसा कि पहले जिक्र किया था कि पहलगाम के रास्ते में एक जगह है जहाँ बेट ही बेट बनते हैं जहां दुकानों के बाहर सचिन धोनी तो थे पर अधिकतर पाकिस्तानी प्लेयर नजर आते हैं बच्चे भी पाकिस्तान की हरी ड्रेस में खेलते दिखे| आगे ही अनंत नाग है. यहाँ से कुछ दूर ही वह जगह है जहाँ पीछे बी एस ऍफ़ के जवानों पर गोलियां चली |
कश्मीरी पंडितों को जिस तरह से वहां से निकाल बाहर कर दिया गया वह आज भी वहां रहने वाले लोगों को ही चुभता है ..जो लोग अपने ही घर से बेघर है, वहां नहीं रह पाते वो कितना निराश होंगे सोचने वाली बात है | कोई नहीं सोचता इस बारे में शायद सिर्फ वहां के लोकल लोगों के अलवा | जो लोग वहां रह गए हैं शिकारे वाले ने बताया कि वह उन हिन्दू परिवारों का पूरा ध्यान रखते हैं | फिर सरकार क्यों नहीं सोचती है ?कश्मीरी पंडितो को अपने घर कश्मीर को छोड़े हुए कई वर्ष बीत गए लेकिन घर वापसी की रास्ता अभी भी कहीं गुम है । लगभग 7 लाख कश्मीरी परिवार भारत के विभिन्न हिस्सों व् रिफ्यूजी कैम्प में शरणार्थियो की तरह जीवन बिताने को मजबूर है। आतंकी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि जब तक कश्मीरी पंडित कश्मीर में है, तब तक वह अपने इरादो में कामयाब नहीं हो पायेगें। इसलिए सबसे पहले इन्हें निशाना बनाया गया।
कश्मीरी पंडित थे तो घाटी मन्त्रों से गूंजती थी अजान के साथ साथ पर उन्ही के जब मुख्य सदस्यों को मारा गया तो उन्हें अपने जान बचाने के लिए अपनी जन्म भूमि को छोड़कर शरणार्थियो की तरह जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा। कश्मीर के धरती पर जितना हक बाकि लोगो का है, उतना ही हक इन कश्मीरी पंडितों का भी है।
राज्य व केन्द्र सरकार यह दावा तो करती है कि कश्मीर अब कश्मीरी पंडितो के लिए खुला है और वह चाहे तो घर वापसी कर सकते है, पर इसकी सच्चाई कितनी है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। अगर यह घर वापसी कर भी ले, तो जाये कहां, क्योंकि उनका अधिकतर घर अब टूट चुके हैं और उनकी सुरक्षा कौन लेगा ?
वहां पढ़े एक लेख के अनुसार जिन नौ परिवारो ने घर वापसी की थी, उनका अनुभव अच्छा नही रहा। उनका कहना है कि कश्मीर के अधिकारी उन्हें वहाँ फिर से बसने में हतोत्साहित करते हैं।.वे अपने गाँवों में फिर से घर बनाना चाहते हैं, लेकिन सरकार उनसे ज़मीन छीन रही है। इन सब के अनुभव यह बताते है कि कश्मीर में अभी भी कश्मीरी पंडितो के लिए हालात इस लायक नहीं हुए है कि वह अपनी घर वापसी की सोच सके।
कश्मीर की सुन्दरता इन लोगों के बिना अधूरी है | यहाँ मंदिर अब बहुत कम दिखायी दिए | लगातार आती आजान की आवाज़ ने सच ब्यान कर दिया और कुछ हैरानी वाली बात यह लगी कि गुरूद्वारे भी बहुत अधिक दिखे | श्रीनगर घूमते हुए बहुत से सच ब्यान हुए वहां रहने वाले मुस्लिम गाइड ने बताया कि वह अब अब अपना छोटा नाम रखना पसंद करते हैं | सर्दी में कारगिल की तरफ से आने वाले आतंकवादियों को अपने घर में दो कमरे देने पड़ते हैं और वो जो भी मांगे वह मांग अनुचित भी हो तो पूरी करनी पड़ती है ..सत्रह वर्ष के उस गाइड की आँखों में आतंक के प्रति नफरत और दर्द एक साथ दिखा | मैं वह उसकी आँखे भूल नहीं पा रही हूँ | कुदरत के हर सर्द गर्म को सहने वाले इंसान के जुल्म के आगे कितने बेबस हैं यह उसकी बातों से ब्यान हुआ | फिर भी श्रीनगर की यादे मधुर है | कोई कहे फिर से जाने को तीसरी बार भी मैं जाना चाहूंगी| और वहां के लोगो से खूब बतियाना चाहूंगी| वो मेरे देश से जुडा हुआ एक अटूट हिस्सा है जिसकी सुन्दरता के आगे शायद कभी आतंक हार जाएगा यही उम्मीद के साथ फिर अगली किसी यात्रा से आपसे बाते करुँगी ..
लिखते हुए मीना कुमारी की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है ..
फ़िर वही नहाई नहाई सी सुबह
वही बादल
दूर दूर तक घूमती फिरती वादी भी उसी शक्ल में
घूमते फिरते थे
ठहरे हुए से
कितनी चिडियां देखी
कितने कितने सारे फूल, पत्ते चुने पत्थर भी...
कभी डल झील के साफ़ पानी के आईने में कुदरत खुद को निहार लेती थी पर आज लगातार बढ़ते हाउस बोट और ध्यान न देने से वहां का पानी काला होता जा रहा है यह बहुत ही दुःख का विषय है | पर यह भी सच है
कि कश्मीर की सैर के लिए जाकर डल झील के हाउस बोट में न ठहरा जाये तो कश्मीर की सैर अधूरी रह जाती है। यहाँ के तैरते बाजार और वहां झील में ही सब्जी उगाने वाले लोगो के घर मन मोह लेते हैं | तरह तरह की पेड़ पौधो की झलक झील की सुंदरता को और निखार देती है। कमल के फूल, पानी में बहती कुमुदनी, झील की सुंदरता में चार चाँद लगा देती है। यहाँ आने वालों के लिए विभिन्न प्रकार के मनोरंजन के साधन जैसे शिकारे पर घूमना पानी पर सर्फिंग करना और मछली पकड़ना बहुत अच्छे लगते हैं |झील में तैरते हाउसबोट और शिकारे शांति, सुकून और मनमोहक खूबसूरती से भरी एक ऐसी दुनिया में होने का अहसास कराते हैं, जिससे कभी दूर होने का मन न करे। यहां आकर आपको एक ही गाना याद आएगा ‘सोचो कि झीलों का शहर हो, लहरों पर अपना एक घर हो..’ पर वहीँ कुछ कडवे सच भी है इस देव भूमि के साथ जुड़े हुए ..
आज का कश्मीर और वहां की सोच वहां जितने लोगों से बात हुई सभी अमन शान्ति चाहते हैं कोई भी लड़ाई आतंक नहीं चाहता ...वहां का मुख्य जीवन पर्यटक से जुडा है जब जब वहां कुछ आशांति होती है तब तब वहां यह प्रभवित हो जाता है ..लोग उदास हो जाते हैं ..वो चाहते हैं कि लोग यहाँ आये घुमे और यहाँ की सुन्दरता से जुड़े इस तरह की फिर फिर वापस आना चाहे ..पर शायद न वहां पर आंतक फैलाते आतंकवादी को यह पसंद है न ही सरकार को ...और यही वजह है की कुदरती सुन्दरता तो वहां बिखरी है पर साथ ही साथ यहाँ कोई तरक्की नहीं हुई है वहां .सड़के कई जगह से बहुत खराब है ..बाग़ हैं सुन्दर पर लोगों के चेहरे उदास हैं कई जगह बहुत अजीब लगी ..जैसा कि पहले जिक्र किया था कि पहलगाम के रास्ते में एक जगह है जहाँ बेट ही बेट बनते हैं जहां दुकानों के बाहर सचिन धोनी तो थे पर अधिकतर पाकिस्तानी प्लेयर नजर आते हैं बच्चे भी पाकिस्तान की हरी ड्रेस में खेलते दिखे| आगे ही अनंत नाग है. यहाँ से कुछ दूर ही वह जगह है जहाँ पीछे बी एस ऍफ़ के जवानों पर गोलियां चली |
कश्मीरी पंडितों को जिस तरह से वहां से निकाल बाहर कर दिया गया वह आज भी वहां रहने वाले लोगों को ही चुभता है ..जो लोग अपने ही घर से बेघर है, वहां नहीं रह पाते वो कितना निराश होंगे सोचने वाली बात है | कोई नहीं सोचता इस बारे में शायद सिर्फ वहां के लोकल लोगों के अलवा | जो लोग वहां रह गए हैं शिकारे वाले ने बताया कि वह उन हिन्दू परिवारों का पूरा ध्यान रखते हैं | फिर सरकार क्यों नहीं सोचती है ?कश्मीरी पंडितो को अपने घर कश्मीर को छोड़े हुए कई वर्ष बीत गए लेकिन घर वापसी की रास्ता अभी भी कहीं गुम है । लगभग 7 लाख कश्मीरी परिवार भारत के विभिन्न हिस्सों व् रिफ्यूजी कैम्प में शरणार्थियो की तरह जीवन बिताने को मजबूर है। आतंकी इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि जब तक कश्मीरी पंडित कश्मीर में है, तब तक वह अपने इरादो में कामयाब नहीं हो पायेगें। इसलिए सबसे पहले इन्हें निशाना बनाया गया।
कश्मीरी पंडित थे तो घाटी मन्त्रों से गूंजती थी अजान के साथ साथ पर उन्ही के जब मुख्य सदस्यों को मारा गया तो उन्हें अपने जान बचाने के लिए अपनी जन्म भूमि को छोड़कर शरणार्थियो की तरह जीवन बिताने के लिए मजबूर होना पड़ा। कश्मीर के धरती पर जितना हक बाकि लोगो का है, उतना ही हक इन कश्मीरी पंडितों का भी है।
राज्य व केन्द्र सरकार यह दावा तो करती है कि कश्मीर अब कश्मीरी पंडितो के लिए खुला है और वह चाहे तो घर वापसी कर सकते है, पर इसकी सच्चाई कितनी है, यह किसी से छुपा हुआ नहीं है। अगर यह घर वापसी कर भी ले, तो जाये कहां, क्योंकि उनका अधिकतर घर अब टूट चुके हैं और उनकी सुरक्षा कौन लेगा ?
वहां पढ़े एक लेख के अनुसार जिन नौ परिवारो ने घर वापसी की थी, उनका अनुभव अच्छा नही रहा। उनका कहना है कि कश्मीर के अधिकारी उन्हें वहाँ फिर से बसने में हतोत्साहित करते हैं।.वे अपने गाँवों में फिर से घर बनाना चाहते हैं, लेकिन सरकार उनसे ज़मीन छीन रही है। इन सब के अनुभव यह बताते है कि कश्मीर में अभी भी कश्मीरी पंडितो के लिए हालात इस लायक नहीं हुए है कि वह अपनी घर वापसी की सोच सके।
कश्मीर की सुन्दरता इन लोगों के बिना अधूरी है | यहाँ मंदिर अब बहुत कम दिखायी दिए | लगातार आती आजान की आवाज़ ने सच ब्यान कर दिया और कुछ हैरानी वाली बात यह लगी कि गुरूद्वारे भी बहुत अधिक दिखे | श्रीनगर घूमते हुए बहुत से सच ब्यान हुए वहां रहने वाले मुस्लिम गाइड ने बताया कि वह अब अब अपना छोटा नाम रखना पसंद करते हैं | सर्दी में कारगिल की तरफ से आने वाले आतंकवादियों को अपने घर में दो कमरे देने पड़ते हैं और वो जो भी मांगे वह मांग अनुचित भी हो तो पूरी करनी पड़ती है ..सत्रह वर्ष के उस गाइड की आँखों में आतंक के प्रति नफरत और दर्द एक साथ दिखा | मैं वह उसकी आँखे भूल नहीं पा रही हूँ | कुदरत के हर सर्द गर्म को सहने वाले इंसान के जुल्म के आगे कितने बेबस हैं यह उसकी बातों से ब्यान हुआ | फिर भी श्रीनगर की यादे मधुर है | कोई कहे फिर से जाने को तीसरी बार भी मैं जाना चाहूंगी| और वहां के लोगो से खूब बतियाना चाहूंगी| वो मेरे देश से जुडा हुआ एक अटूट हिस्सा है जिसकी सुन्दरता के आगे शायद कभी आतंक हार जाएगा यही उम्मीद के साथ फिर अगली किसी यात्रा से आपसे बाते करुँगी ..
लिखते हुए मीना कुमारी की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही है ..
फ़िर वही नहाई नहाई सी सुबह
वही बादल
दूर दूर तक घूमती फिरती वादी भी उसी शक्ल में
घूमते फिरते थे
ठहरे हुए से
कितनी चिडियां देखी
कितने कितने सारे फूल, पत्ते चुने पत्थर भी...
6 comments:
yaaden taja ho gayee, 3 saal ho gaye, jab ham gaye the, aur houseboat me gujare gaye teen din......iss jindagi ka sabse khubsurat lamha tha...
aapne shabd se saja kar rakh diya iss ytara ko :)
behtreen report!
nice clicks!
विस्तृत यात्रा वृतांत .... काश सरकार कश्मीर से भागे वहाँ के निवासियों की वापसी पर ध्यान दे ।
सुन्दर स्थान, बिगड़े हालात।
एक बार फिर से आपके कैमरे और पेनी कलम का कमाल हो गया ... अच्छा संस्मरण ...
इस सचित्र यात्रा वृतांत एवं शब्दों का जादू अपना असर कायम रखे हुए है ...
आभार
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