मैं कौन हूँ "? यह सवाल अक्सर हर इंसान के दिल में
उभर के आता है कुछ इसकी खोज में जुट जाते हैं ...और कुछ रास्ता भटक कर
दिशाहीन हो जाते हैं .यह मैं की यात्रा इंसान की कोख से आरम्भ होती है और
फिर निरन्तर साँसों के अंतिम पडाव तक जारी रहती है ....
मैं की तलाश ............रश्मि जी के बहुत ही खूबसूरत ब्लॉग "मैं "पर यह प्रकाशित हुआ ..यहाँ आप मैं से जुडी और भी बहुत खूबसूरत पोस्ट पढ़ सकते हैं ...:)
खुद में खुद को पाने की लालसा
खुद में खुद को पाने की तलाश
उस सुख को पाने का भ्रम
या तो पहुंचा देता है
मन को ऊँचाइयों में
या कर देता है
या कर देता है
दिग्भ्रमित
और तब
लगता है जैसे
मानव मन पर
कोई और हो गया है ..........यदि यह मैं
कौन हूँ का सवाल मिल जाता है तो इंसान बुद्धा हो जाता है ..और नहीं मिलता
तो तलाश जारी रहती है ..इसी तलाश में जारी है मेरी एक कोशिश भी ..
सुबह की उजली ओस
और गुनगुनाती भोर से
मैंने चुपके से ..
एक किरण चुरा ली है
बंद कर लिया है इस किरण को
अपनी बंद मुट्ठी में ,
इसकी गुनगुनी गर्माहट से
पिघल रहा है धीरे धीरे
"मेरा "जमा हुआ अस्तित्व
और छंट रहा है ..
मेरे अन्दर का
जमा हुआ अँधेरा
उमड़ रहे है कई जज्बात,
जो क़ैद है कई बरसों से
इस दिल के किसी कोने में
भटकता हुआ सा
मेरा बावरा मन..
पाने लगा है अब एक राह
लगता है अब इस बार
तलाश कर लूंगी "मैं "ख़ुद को
युगों से गुम है ,
मेरा अलसाया सा अस्तित्व
अब इसकी मंजिल
"मैं "ख़ुद ही बनूंगी !!
सुबह की उजली ओस
और गुनगुनाती भोर से
मैंने चुपके से ..
एक किरण चुरा ली है
बंद कर लिया है इस किरण को
अपनी बंद मुट्ठी में ,
इसकी गुनगुनी गर्माहट से
पिघल रहा है धीरे धीरे
"मेरा "जमा हुआ अस्तित्व
और छंट रहा है ..
मेरे अन्दर का
जमा हुआ अँधेरा
उमड़ रहे है कई जज्बात,
जो क़ैद है कई बरसों से
इस दिल के किसी कोने में
भटकता हुआ सा
मेरा बावरा मन..
पाने लगा है अब एक राह
लगता है अब इस बार
तलाश कर लूंगी "मैं "ख़ुद को
युगों से गुम है ,
मेरा अलसाया सा अस्तित्व
अब इसकी मंजिल
"मैं "ख़ुद ही बनूंगी !!
19 comments:
talaash jari rakhiye ek na ek din talash mukammal ho hi jayegi
talaash jari rakhiye ek na ek din talash mukammal ho hi jayegi
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन खुद को बचाएँ हीट स्ट्रोक से - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
भला हो ब्लॉग बुलेटिन का जो इधर आना हो पाया... जाने 'मैं' खुद ही कहाँ भटक रही हूँ... हमेशा की तरह मन को राहत पहुँचाती रचना... साल से भी ऊपर हुआ ब्लॉग़ जगत से कहीं दूर भटक गई थे अब लौटी हूँ .... :)
हर दिन गहराती है और आवश्यक हो जाती है स्वयं की खोज।
बहुत खूब रंजू जी .. सुन्दर भावभिव्यक्ति!
आपने लिखा....हमने पढ़ा
और भी पढ़ें;
इसलिए आज 23/05/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर (यशोदा अग्रवाल जी की प्रस्तुति में)
आप भी देख लीजिए एक नज़र ....
धन्यवाद!
बहुत अच्छी रचना ...
अब इसकी मंजिल मैं खुद ही बनूंगी ... अनुपम भाव
वाकई....इस मैं की तलाश में हम उलझ जाते हैं...सुंदर लिखा है आपने..हमेशा की तरह
ranju aapki abhivyakti.. dil ko chhooti hain...
बहुत सुन्दर....
यहाँ रश्मि दी के blog का लिंक भी दीजिये न...पता लगे की रंजू ख़ास हैं :-)
सस्नेह
अनु
किस के सर पर ठीकरा फोड़ें अब इस भटकाव का
दूर के हर अक्स को आला समझ बैठे थे हम
लाजवाब, बढ़िया
मैं की तलाश आसान कहाँ .... खुद से मिल कर भी हर बार खुद को नया ही पाया जाता है ...
सही कहा अनु ..शुक्रिया यह लिखने के लिए :) रश्मि जी के बहुत ही खूबसूरत ब्लॉग "मैं "पर यह प्रकाशित हुआ ..यहाँ आप मैं से जुडी और भी बहुत खूबसूरत पोस्ट पढ़ सकते हैं ...:)
सुन्दर शव्द संयोजन बेहतरीन पंक्तियां
वाह ...कितनी खूबसूरत है ..ये मन की तलाश
वाह!!! लाजवाब रचना | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत खूब .. सुन्दर भावभिव्यक्ति!
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