Monday, April 08, 2013

प्यार का यह रंग

मौसमों सी रंग बदलती
इस दिल की शाखाएँ
कहीं गहरे भीतर
पनपी हुई है
जड़ों सी
जो ऊपर से सूखी दिखती
अन्दर से हरीभरी है
इन्हें कभी "बीते मौसम"
की बात न समझना
जरा सी फुहार मिलते ही
"सींच देगी यह"
दिल की उस जमीन को
जो दूर से दिखने में
बंजर सी दिखती है
प्यार का यह रंग है
सिर्फ उस" एहसास "सा
जो पनपता है सिर्फ
अपने ही दिए दर्द से
और "अपनी ही बुनी हुई ख्वाइशों से !!"
#रंजू भाटिया ..............

12 comments:

ANULATA RAJ NAIR said...

बहुत सुन्दर....
प्रेमपगी रचना <3

अनु

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बस एहसास ही तो हैं जो मन की धरती को लहलहा देते हैं या फिर बंजर बना देते हैं ॥ बहुत सुंदर रचना

Rajendra kumar said...

बहुत ही बेहतरीन भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.

सदा said...

वाह ... बेहतरीन

Maheshwari kaneri said...

सुन्दर प्रस्तुति -

Arvind Mishra said...

संवेदित अभिव्यक्ति

Madan Mohan Saxena said...

बहु खूब . सुन्दर . भाब पूर्ण कबिता . बधाई .

धीरेन्द्र अस्थाना said...

प्रेम में पगी पूरी रचना !

दिगम्बर नासवा said...

प्यार का रंग देते ही पनपने लगती हैं ये जड़ें ...
इन्हें तो पनपने देना चाहिए .. दर्द ही तो दवा है ..

प्रवीण पाण्डेय said...

अपने भाव उभरते रहते, रह रह कर ही।

Rajput said...

जरा सी फुहार मिलते ही
"सींच देगी यह"
दिल की उस जमीन को
जो दूर से दिखने में
बंजर सी दिखती है
बहुत खूबसूरत रचना, नव वर्ष की मंगल कामनाऐ.

सदा said...

क्‍या बात है .... बहुत ही बढिया