Friday, April 12, 2013

कुछ यूँ ही .........

जाने ये कैसे ख्याल  आते हैं ...
जो थाम नहीं पाते
खुशनुमा वक़्त
के सिरे को
और
दर्द के हर पल को
एक कसक ....
न बीतने की दे जाते हैं ..........
आँखों में ठिठकी रह जाती है
ख्वाबो के देखने की चाहत
और
नींद अब बिकती है
चंद गोलियों की शकल में
जो कहीं गहरे नशे में
बिना ख्वाब के डूबी जाती है
सही में
बातें बेवजह हैं और बहुत सी हैं

10 comments:

सदा said...

नींद अब बिकती है
चंद गोलियों की शकल में .............
वाह ... बहुत सही कहा आपने .... अनुपम भाव संयोजन

रेखा श्रीवास्तव said...

vaakai neend aaj ke smay men khareedani hi padati hai . bahut sateek bat pakadi hai apane.

ANULATA RAJ NAIR said...

बात बेवजह नहीं....
हर बात की, हर दर्द की कोई वजह होती ज़रूर है.....

अनु

Tamasha-E-Zindagi said...

वाह!!! बहुत बढ़िया | आनंदमय | आभार

कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

नींद अब बिकती है
चंद गोलियों की शकल में ,,
बहुत उम्दा भाव अभिव्यक्ति ,आभार
Recent Post : अमन के लिए.

shalini rastogi said...

नींद अब बिकती है
चंद गोलियों की शकल में
जो कहीं गहरे नशे में
बिना ख्वाब के डूबी जाती है ... बहुत खूब कहा है रंजना जी!

प्रवीण पाण्डेय said...

बाँध कहाँ पाया मैं सुख को,
वह आता और जाता रहता।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

इतनी छोटी इतनी तीखी. बहुत सुंदर.

दिगम्बर नासवा said...

नींद बिकती है ... सच कहा है ...
क्या इन सब के लिए खुद ही जिमेवार नहीं हैं हम ... सहजता को जीवन से मिटा कर ओर हो भी क्या सकता है ...

संजय भास्‍कर said...

बहुत खूब कहा है रंजना दीदी !